एक हृदय रोग विशेषज्ञ मरीजों को यह समझाने में मदद कर सकते हैं कि उनके लक्षण सिर्फ हृदय से नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य से भी जुड़े हो सकते हैं, जैसे कि एंग्जायटी डिसऑर्डर या डिप्रेशन। इसके लिए सबसे पहले जरूरी है कि मरीज की बात को ध्यान से सुना जाए और उनके अनुभवों को समझा जाए।
मरीजों को यह समझाना कि एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसी स्थितियां तेज़ दिल की धड़कन, सीने में दर्द या सांस फूलने जैसे लक्षण पैदा कर सकती हैं, उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति के बीच के संबंध को स्पष्ट करता है। इससे वे यह समझने लगते हैं कि दोनों ही पहलू एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
यदि हृदय से जुड़ी सभी जांच सामान्य आती हैं, लेकिन मरीज के लक्षण फिर भी बने रहते हैं, तो यह संकेत हो सकता है कि समस्या मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी है। उदाहरण देकर समझाएं कि मानसिक तनाव के कारण भी हृदय संबंधी लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। इससे मरीज इस तथ्य को स्वीकार करने में अधिक सहज महसूस करेंगे।
मरीज को एक मनोचिकित्सक से मिलने का सुझाव देते समय इसे समग्र स्वास्थ्य की दिशा में एक कदम के रूप में पेश करें। उन्हें यह समझाने का प्रयास करें कि मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने से उनके शारीरिक लक्षणों में भी सुधार आ सकता है। इसके साथ ही, नियमित व्यायाम, ध्यान और अच्छी नींद जैसी जीवनशैली में बदलाव की चर्चा करें, जो मानसिक और शारीरिक दोनों ही स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकते हैं।