संघ शताब्दी वर्ष: सौ वर्षों से तीन स्तंभों पर बढ़ रहा है

अवधेश कुमार

सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 (16:19 IST)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर चुका है। इसकी आलोचना में विरोधियों के स्वर और विषयवस्तु आज भी वही हैं जो हम दशकों से सुनते आ रहे हैं। इसकी स्थापना से लेकर आज तक की यात्रा पर दृष्टि डालें तो विश्व इतिहास में ऐसा शायद ही कोई संगठन होगा जिसे इतने विरोधों और प्रतिकूलताओं का सामना करना पड़ा।ALSO READ: भागवत के शताब्दी संवाद से निकले संदेश

बावजूद यदि संगठन अपनी कार्य पद्धति और सोच के साथ लगातार समाज के बीच विस्तार करते हुए जीवित है एवं भारत के साथ विश्व के अनेक देशों में कम या ज्यादा मात्रा में प्रभावकारी भूमिका निभा रहा है तो इसे हर कसौटी पर अद्भुत उपलब्धि कहना होगा। 
 
किसी भी संगठन का मूल्यांकन उसके स्वयं द्वारा बनाई गई कसौटियों एवं समाज की आवश्यकता- प्रासंगिकता के ही आधार पर हो सकती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्थापना से अपना एकमात्र चरित्र बनाए रखा है कि वह देशभक्ति से ओतप्रोत स्वयंसेवकों का निर्माण करेगा और उसके बाद स्वयंसेवक अपनी सोच के अनुसार भारत को विश्व के उच्चत्तम शिखर पर एक आदर्श देश के रूप में ले जाने व बनाए रखने के लिए स्वेच्छा से काम करते रहेंगे। इसका अर्थ हुआ कि संघ अपने नाम और बैनर से देशभक्त स्वयंसेवक खड़ा करने के अलावा कुछ नहीं करेगा, स्वयंसेवक सब कुछ करेंगे। करने का एक ही उद्देश्य होगा, भारत का सतत अभ्युदय और वह भी दुनिया पर दबदबा या प्रभुत्व के लिए नहीं, बल्कि हिंदुत्व की व्यापक सोच विश्व कल्याण की भावना से।
 
संघ पर गहराई से अध्ययन करने वाले जिन लोगों ने भी उसकी लंबी यात्रा पर दृष्टि रखी है उन सबका एक ही निष्कर्ष है कि केवल भारत नहीं, संपूर्ण विश्व में राजनीतिक, गैर राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, स्वयंसेवी, एनजीओ, थिंक टैंक आदि को दृष्टि में रखकर इसे नहीं समझा जा सकता। अर्थात यह अन्य संगठनों या संस्थाओं की तरह संगठन और संस्था नहीं है। 
 
इसके संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने भारत या समाज के अंदर एक संगठन की जगह संपूर्ण समाज के साथ एकाकार होने वाले या उसके पर्याय के तौर पर संगठन की कल्पना की और उस चरित्र को हर परिस्थिति में बनाए रखा।

इसका सबसे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है? आप सार्वजनिक तौर पर किसी पार्टी, संगठन, संस्था पर आरोप लगाइए वह उपलब्ध माध्यमों से खंडन करने, विरोध करने और आरोप लगाने वालों के विरुद्ध प्रत्यारोप करने आ जाएगा। यह आम स्वाभाविक चरित्र है।

ऐसा कोई दिन नहीं जब संघ पर सीधे हमले नहीं होते, उसकी निंदा या आलोचना नहीं होती। क्या कभी आपने संघ के अधिकारियों द्वारा पत्रकार वार्ता बुलाकर या बयान जारी कर पक्ष रखने, खंडन करने या प्रत्यारोप की भूमिका में देखा है? अन्य को छोड़ दीजिए तो यही एक पहलू इसे सभी संगठनों से बिल्कुल अलग चरित्र का सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है।
 
यही संघ संस्थापक के दूरदृष्टि आश्चर्यचकित करती है। संघ की बैठकों में अधिकारी बताते हैं कि अगर हमारी कोई निंदा करे, विरोध करे तो उसका उत्तर देने में समय नहीं लगाना है, अपना काम करते रहना है। जब दूसरे सरसंचालक माधव सदाशिव गोलवलकर या गुरु गोलवलकर के आवास पर हमले हुए और स्वयंसेवकों ने विरोध किया तो उन्होंने ऐसा करने से रोका और कहा कि विरोध करने वाले भी हमारे अपने हैं। कल हमारा समर्थन करते थे आज विरोध कर रहे हैं तो वह भी हमें स्वीकार करना चाहिए।
 
इस तरह संघ का चरित्र विकसित हो गया कि आलोचना और निंदा करने वाले को भी अपना मानकर ही व्यवहार करना है। तीसरा विषय है विचारधारा का। अगर वर्तमान विचारधारा के ढांचे को देखेंगे तो एक ही शब्द है, हिंदुत्व…. इसके अनुसार हिंदुओं का संगठन और हिंदू राष्ट्र के रूप में भारत की रचना की कल्पना। शाखाओं से लेकर शिक्षा वर्गों एवं कार्यक्रमों में हिंदुत्व का अर्थ यह बताया जाता है कि सभी के अंदर एक ही तत्व है इसलिए कोई और कुछ भी हमसे अलग नहीं है। 
 
तो जैसा व्यवहार हम अपने साथ करते हैं, अपने को उन्नत करने के लिए परिश्रम करते हैं वही सोच और व्यवहार सबके साथ करना है। यह भी कि कोई इसे हिंदू राष्ट्र कहे, कोई भारत कहे, कोई हिंदुस्तान कहे कुछ भी कहे उससे अंतर नहीं आता , इस राष्ट्र का चरित्र वही है। हिंदुत्व अर्थात सर्वधर्म समभाव और सब के सुखी होने ,सबके निरोग होने सबके भद्र होने का व्यापक विचार।
 
संक्षेप में कहा जाए तो 100 वर्षों की यात्रा में संघ इन्हीं तीन स्तंभों पर आगे बढ़ता रहा है। इसीलिए इतनी प्रतिकूलताओं, हमलों, निंदा व प्रतिबंधों के बावजूद वह अविचल है तथा स्वयंसेवकों ने समाज के हर क्षेत्र में अपनी दृष्टि से कार्य खड़ा किया है। इसी कारण आज संघ मातृसंगठन के रूप में बट वृक्ष के रूप में खड़ा है और विश्व के 100 से ज्यादा देशों तक कार्य पहुंचा है।
 
संघ संस्थापक की दूरदृष्टि देखिए। संघ कार्य के लिए प्रचारकों की परंपरा, जो परिवार से बाहर रहकर सन्यासी की तरह 24 घंटे संगठन  के लिए ही काम करेंगे। पारिवारिक व्यक्ति या परिवार बसाने की कामना करने वाले भी पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में निश्चित अवधि तक समय देंगे और तब केवल संघ कार्य ही करेंगे। जब आपका कोई निजी स्वार्थ नहीं तो भारत राष्ट्र ही सर्वस्व की भावना से सैकड़ों प्रचारक एक सोच और योजना से काम करेंगे , संगठन विस्तार करेंगे तो लक्ष्य निश्चित प्राप्त होगा। 
 
डॉक्टर हेडगेवार अपने आरंभिक काल में ही हिंसक क्रांतिकारी संगठनों, अहिंसक कांग्रेस, समाज सुधार आंदोलन आदि के साथ प्रत्यक्ष कार्य करते रहे और उसके अनुभव के आधार पर उनके लगा कि अगर अंग्रेजों से मुक्ति हो भी गई तो जब तक भारत राष्ट्र की सही समझ रखने वाले प्रतिबद्ध शत-प्रतिशत जीवन लगाकर काम करने वाले लोग नहीं होंगे, भारत को जैसा होना चाहिए जहां होना चाहिए वह नहीं होगा और फिर यह गुलाम नहीं होगा इसकी भी गारंटी नहीं रहेगी। तभी उन्होंने संघ की स्थापना की और फिर इसका क्रमिक विकास हुआ।ALSO READ: शताब्दी वर्ष में समाज परिवर्तन के लिए सक्रिय संघ
 
अंत में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू की ओर आइए। स्वतंत्रता के पूर्व संघ के स्वयंसेवकों की प्रतिज्ञा में हिंदू राष्ट्र को स्वतंत्र करने की बात थी लेकिन उन्होंने संगठन को प्रत्यक्ष कभी आंदोलन या विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं होने दिया।

उन्होंने देख लिया था कि अगर संघ सीधे आंदोलनों, विरोध प्रदर्शनों, समाज सुधार के कामों में लग गया तो यह खत्म हो जाएगा। इसलिए जब वे नमक सत्याग्रह में गए तो ससरसंचालक पद से त्यागपत्र दिया ताकि कोई भ्रम न रहे कि संगठन के रूप में संघ इस तरह का कार्य नहीं करेगा लेकिन स्वयंसेवक कर सकते हैं। 
 
इसीलिए जब आलोचक और विरोधी पूछते हैं कि संघ ने स्वतंत्रता आंदोलन में कब भाग लिया, संघ ने कौन सा आंदोलन किया तो वे उसके चरित्र के विपरीत बात करते हैं। संघ की कल्पना रही है कि स्वयंसेवक, जहां भी रहे वहां हवा और विद्युत की तरह प्रभाव डालकर परिणाम लाये परंतु प्रत्यक्ष शायद दिखें भी नहीं। बिजली दिखती नहीं है लेकिन बल्ब जलता है, पंखे चलते हैं, गाड़ियां चलतीं हैं। हवा भी दिखती नहीं है लेकिन अगर हवा नहीं हो तो दुनिया नष्ट हो जाएगी। 
 
सच यह है जहां भी स्वयंसेवक हैं, उनने अनियोजित -नियोजित जितने कार्य किए हैं कि उनका विवरण इकट्ठा करना मुश्किल है। सच्चाई यह है कि भारत में ऐसा कोई आंदोलन, सामूहिक बड़ा कार्य, परिवर्तन, सकारात्मक उपलब्धि ऐसी नहीं रही जिसमें संघ के स्वयंसेवकों की भूमिका नहीं। चूंकि स्वयंसेवक राजनीति, समाज, संस्कृति, तकनीक, विज्ञान, शिक्षा, रक्षा, आंतरिक सुरक्षा, कृषि, उद्योग, मनोरंजन, कला यानी समाज जीवन के हर क्षेत्र में हैं और उनके लक्ष्य निश्चित हैं तो वो अपनी भूमिका निभाते रहते हैं।

वहां संघ का कोई बैनर नहीं हो सकता। जो संगठन समाज के पर्याय के रूप में स्वयं को बढ़ा रहा हो या समाज के साथ एकाकार रहता हो वह न अपनी उपलब्धियां के बारे में बात करेगा न इसकी आवश्यकता उसे महसूस होगी। 
 
आप संघ से जुड़े नहीं है लेकिन स्वयंसेवकों को जानते हैं तो जरा शांत होकर उनकी गतिविधियों ,समाज में उनके योगदान आदि पर दृष्टि दौड़ाइए। आप देखेंगे कि जहां एक शाखा लगती है उसमें नियमित स्वयंसेवकों की संख्या भले कम हो लेकिन धीरे-धीरे समाज पर उसका प्रभाव पड़ता है, घरों में, एक दूसरे के साथ संबंधों में ,अलग-अलग जीवन के अंगों में ….ऐसे परिवर्तन होते रहते हैं जो हमें भी महसूस नहीं होता कि कैसे और कब हो गया।

उनके चलने, उठने, बैठने, खान-पान, किसी सामूहिक कार्यक्रम में भूमिका, व्यवहार से पूरा समाज प्रभावित होता है और कुछ उसके अनुरूप काम करने लगते हैं तो कुछ उनका समर्थन करते प्रशंसा करते हैं। स्थानीय स्तर पर राजनीतिक विरोधी भी ऐसे कार्यों में उनके सहयोगी या समर्थक के रुप में दिखते हैं। आप कल्पना करिए इस तरह संगठन ने नीचे से लेकर ऊपर तक कितने कार्य किए होंगे और कैसे परिणाम लाए होंगे। 
 
शताब्दी वर्ष में भी संघ का यही चरित्र सामने है। वह पंच परिवर्तन की बात कर रहा है। ये हैं, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समसरता, स्व आधारित व्यवस्था, कुटुंब प्रबोधन तथा नागरिक कर्तव्य। अर्थात स्वयंसेवक लोगों के बीच इन्हीं विषयों को लेकर जाएंगे जो एक राष्ट्र के रूप में भारत के लिए आवश्यक है।

इसके लिए विस्तृत गृह संपर्क अभियान, हिन्दू सम्मेलन, प्रबुद्ध नागरिक गोष्ठियां और समाज में आपसी सद्भाव संबंधी सभाओं-बैठकों का आयोजन होगा। तो शताब्दी वर्ष के पांच परिवर्तन और कार्यक्रम भी संघ के चरित्र को ही दिग्दर्शित करता है। वस्तुत: उसका हर कार्य अपने तीन मुख्य स्तंभों के अनुरूप ही रहा है रहेगा।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)ALSO READ: रामनगरी अयोध्या में मनेगा RSS शताब्दी वर्ष समारोह, पूर्ण गणवेश मे होंगे स्वयंसेवक

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