कांग्रेस के विद्रोही नेताओं का कपिल सिब्बल शो!

श्रवण गर्ग

गुरुवार, 12 अगस्त 2021 (16:54 IST)
क्या अब यह मान लिया जाए कि कांग्रेस पार्टी विभाजन के कगार पर पहुंच गई है? राहुल गांधी के ख़िलाफ़ पार्टी के बाहर और भीतर नियोजित तरीक़े से प्रारंभ हुए हमले अगर कोई संकेत हैं तो आशंका सही भी साबित हो सकती है। इस आशंका के सिलसिले में दो खबरें हैं। दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। पहली यह है कि राहुल का ट्विटर अकाउंट उनके एक विवादास्पद ट्वीट को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म द्वारा 'अस्थायी रूप से' बंद कर दिया गया है। राहुल का अंतिम ट्वीट 6 अगस्त को देखा गया था जिसमें उन्होंने कहा था : 'चूल्हा मिट्टी का, मिट्टी तालाब की, तालाब 'हमारे दो' का! बैल 'हमारे दो' का, हल 'हमारे दो' का, हल की मूठ पर हथेली किसान की, फसल 'हमारे दो' की! कुआं 'हमारे दो' का, खेत-खलिहान 'हमारे दो' के, PM 'हमारे दो' के, फिर किसान का क्या? किसान के लिए हम हैं।'
 
दूसरी खबर कुछ ज़्यादा सनसनीख़ेज़ है। वह यह कि राहुल गांधी की दो दिन की कश्मीर यात्रा के दौरान नई दिल्ली में पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने 9 अगस्त ('भारत छोड़ो दिवस') को अपने निवास स्थान पर अपना 74वां जन्मदिन मना लिया। उनकी जन्म तारीख़ वैसे 8 अगस्त है। इस अवसर पर आयोजित दावत में (बसपा को छोड़कर) अधिकांश विपक्षी दलों के नेता अथवा उनके प्रतिनिधि उपस्थित थे। इनमें वे भी थे जो राहुल की चाय पार्टी में नहीं पहुंचे थे। भाजपा के ख़िलाफ़ विपक्षी एकता की ज़रूरत के साथ-साथ इस चर्चित बर्थडे दावत में इस बात की चर्चा भी की गई कि कांग्रेस को गांधी परिवार के आधिपत्य से मुक्त कराए जाने की आवश्यकता है। सिब्बल उन 23 नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी नेतृत्व में परिवर्तन की मांग की थी। उस पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकांश नेता इस दावत में उपस्थित थे (जैसे ग़ुलाम नबी आज़ाद, चिदंबरम और उनके बेटे, आनंद शर्मा, शशि थरूर, मनीष तिवारी, पृथ्वीराज चव्हाण, मुकुल वासनिक, राज बब्बर, विवेक तनखा आदि) पर एक ख़ास बड़े नाम को छोड़कर। यह बड़ा नाम सलमान ख़ुर्शीद का है। 
 
सलमान ख़ुर्शीद ने पिछले दिनों एक अंग्रेज़ी अख़बार में प्रकाशित आलेख में कपिल सिब्बल से पहली बार सार्वजनिक रूप से पंगा ले लिया था। कारण सिब्बल का वह इंटरव्यू था जिसमें उन्होंने यह कह दिया था कि सभी तरह की सांप्रदायिकता ख़राब है- बहुसंख्यकों की हो या अल्पसंख्यकों की। सलमान ने सिब्बल की कही बात को यह कहते हुए पकड़ लिया कि : ऊपरी तौर पर तो ऐसा कहने में कोई ग़लत बात नहीं है पर बारीकी से जांच करने पर उसके (सिब्बल के कहे के) ऐसे निहितार्थ व्यक्त होते हैं जो शायद उनका (सिब्बल का) इरादा नहीं रहा होगा। सलमान ने अपने आलेख में मई 1958 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के खुले सत्र में दिए गए पंडित जवाहर लाल नेहरू के उद्बोधन की ओर सिब्बल का ध्यान आकर्षित किया। 
 
सलमान के मुताबिक़, नेहरू ने कहा था कि अल्पसंख्यकों की तुलना में बहुसंख्यकों की सांप्रदायिकता ज़्यादा ख़तरनाक है। यह सांप्रदायिकता राष्ट्रवाद का मुखौटा चढ़ाए रहती है। इस सांप्रदायिकता ने गहरी जड़ें बना लीं हैं और ज़रा सी उत्तेजना पर वह फूट पड़ती है। इस सांप्रदायिकता के जागृत किए जाने पर भले लोग भी ख़ूंख़ार व्यक्तियों की तरह बरताव करने लगते हैं। 
 
सलमान कांग्रेस की उस छानबीन समिति के सदस्य थे जिसने पिछले साल के अंत में हुए विधान सभा चुनावों के परिणामों की समीक्षा की थी। उत्तरप्रदेश और अन्य राज्यों में होने जा रहे चुनावों के संदर्भ में उनका यह कहना महत्वपूर्ण है कि : पार्टी को इस बात पर दु:ख मनाना बंद कर देना चाहिए कि उसकी हार का कारण मुस्लिम दलों के साथ गठबंधन करना रहा है। भाजपा के बहुसंख्यकवाद के दबाव में उसे अपनी उन नीतियों में परिवर्तन नहीं कर देना चाहिए जो राष्ट्रीय आंदोलनों के समय से उसका हिस्सा रही हैं। सलमान ने यह भी कहा कि वैसे तो इस तरह के मुद्दे पार्टी के भीतर ही उठाए जाने चाहिए पर उन्हें सार्वजनिक इसलिए होना पड़ा कि एक ही बात को जब बार-बार कहा जा रहा हो तो वे उसके प्रति मौन को सहमति मान लेने का लाभ नहीं देना चाहते। 
 
उत्तरप्रदेश में होने जा रहे चुनावों के ऐन पहले बहुसंख्यक सांप्रदायिकता को लेकर उभर रहे मतभेदों और उसके प्रति पार्टी आला कमान की चुप्पी में कांग्रेस में मचे हुए घमासान की इबारतें पढ़ी जा सकतीं हैं। 9 अगस्त की बर्थ डे दावत के दौरान ही यह भी उजागर हुआ कि कपिल सिब्बल की सोनिया गांधी के साथ पिछले 2 सालों में कोई मुलाक़ात ही नहीं हुई है। सिब्बल की दावत में सोनिया, राहुल और प्रियंका को आमंत्रित ही नहीं किया गया था। सिब्बल की दावत में उमर अब्दुल्ला ने ज़रूर कहा कि जब-जब कांग्रेस मज़बूत हुई है, विपक्ष ज़्यादा ताकतवर हुआ है। 
 
गांधी परिवार की ओर से सिब्बल की बर्थ डे दावत को लेकर अभी कोई भी प्रतिक्रिया बाहर नहीं आई है। शायद आएगी भी नहीं। लगभग एक महीने पहले (16 जुलाई को) राहुल गांधी ने पार्टी की सोशल मीडिया टीम के साथ बातचीत में यह ज़रूर कहा था कि कांग्रेस में जो भी डरपोक लोग हैं उन्हें बाहर कर दिया जाना चाहिए।' चलो भैया, जाओ आर एस एस की तरफ़। पार्टी को आपकी ज़रूरत नहीं है।'
 
कपिल सिब्बल द्वारा आयोजित दावत से तीन सवाल पैदा होते हैं : पहला तो यह कि (जैसा कि कथित तौर पर दावा भी किया गया है) बर्थडे पार्टी के आयोजक ही अब अपने आपको असली कांग्रेस मानते हैं। तो क्या मान लिया जाए कि कांग्रेस अनौपचारिक तौर पर विभाजित हो चुकी है? दूसरा यह कि क्या राहुल गांधी आगे भी कोई नई चाय पार्टी या डिनर आयोजित कर भाजपा के ख़िलाफ़ विपक्षी एकता की दिशा में पहल जारी रखना चाहेंगे या अब यह दायित्व सोनिया गांधी पर ही छोड़ देंगे और साथ ही अपनी लड़ाई भी जारी रखेंगे? (राहुल न सिर्फ़ कश्मीर से लौट आए हैं, संसद के सामने उन्होंने सत्र को समय-पूर्व समाप्त करने के सरकार के निर्णय के विरोध में गुरुवार सुबह प्रदर्शन भी कर दिया।) ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, हेमंत सोरेन और स्टालिन आदि ग़ैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों और अन्य विपक्षी नेताओं के साथ अगली वीडियो बातचीत अब 20 अगस्त को सोनिया गांधी करने वाली हैं, राहुल नहीं। तीसरा सवाल यह कि क्या कपिल सिब्बल की दावत बैठक के बाद कांग्रेस की अपने बीच उपस्थिति को लेकर विपक्षी एकता में दरार पड़ सकती है? अकाली दल जैसी क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस के ख़िलाफ़ हैं। 
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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