मैं अपने सेवक वर्ग की,जो हमेशा ही मेरे काम आते हैं, उनकी यथासंभव सहायता कर रही हूं.. और यकीन मानिए.., ये सुकून देने वाला है..।
अपने घरों में काम करने वाले सेवक भी मनुष्य हैं।। उनकी भी अपनी जरूरतें हैं, परिवार है, डर है, असुरक्षा है, चिकित्सा आवश्यकताएं हैं। क्या हम एक हाथ बढ़ाकर उनका साथ दे सकते हैं, जरूर दे सकते हैं। मन से जुड़कर देखिए, थोड़ा मुड़कर देखिए, रूककर सोचिए कि कैसे उनके और आपके हालातों में अंतर है... और किस तरह से आपकी एक छोटी सी मदद उनकी आंखों की चमक बढ़ा देती है। उनको तसल्ली और हौसला देकर पहल कीजिए।