अंग्रेजी में एक पंक्ति है ‘Media makes people, media breaks people’ इसका मतलब है मीडिया ही लोगों को बनाता है और मीडिया ही उन्हें खत्म करता है। यह मीडिया की ताकत दर्शाने वाली पंक्ति है। यह पंक्ति बताती है कि यह माध्यम कितना ताकतवर है। इससे सिस्टम बदल सकता है, सरकारें झुक सकती हैं, मंत्री बदल सकते हैं और मीडिया से क्रांति भी आ सकती है।
लेकिन क्या मीडिया की तस्वीर आज भी ऐसी नजर आती है, जितनी ताकतवर वो अब तक बताई जाती रही है? यह तस्वीर तब थी जब किसी पत्रकार के सवाल पर न्यूज रूम में सन्नाटा पसर जाता था और किसी मंत्री के माथे से पसीना टपकने लगता था।
अब आपकी टीवी स्क्रीन पर एंकर्स चिल्ला रहे हैं, चीख रहे हैं। वे सवाल पूछ रहे हैं, लेकिन जवाब नहीं सुन रहे हैं। वे एक सवाल को 10 बार पूछते हैं और जवाब एक बार भी नहीं सुनते। उनकी एंकरिंग में तर्क और तथ्य कम होते हैं भाषण ज्यादा होते हैं।
उनकी आवाज का हाई वॉल्यूम, बोलने का टेम्पो या स्पीड इतना होता है कि सबकुछ एक चीख में तब्दील हो जाता है। अंत में आपको कुछ समझ नहीं आता है कि यह सब क्या था।
वो सनसनी फैलाते हैं, दिखाते हैं और आपके ब्लड प्रेशर को इतनी ऊंचाई पर ले जाते हैं कि आपको लगता है कि सच में सबकुछ बहुत खराब और विभत्स है।
इतना कुछ देखने सुनने के बाद आप तनाव में हैं, आपको लगता है कि सबकुछ बर्बाद हो चुका है। पूरा सिस्टम खराब है, लोग खराब हैं और जिंदगी के लिए अब कोई उम्मीद नहीं बची रह गई है। इसके बाद आपकी निजी जिंदगी में भी आपको कुछ ऐसे ही परिणाम मिलते हैं। आपका मन करता है कि टीवी स्क्रीन पर आप जोर से अपना रिमोट दें मारे।
यह किसकी गलती है? न्यूज चैनल्स की? घटनाओं की? या खुद आपकी?
यह ठीक आपकी, व्यूअर्स की और देखने वालों की गलती है। बल्कि यह आपका अपराध है कि आप ऐसे न्यूज चैनल्स को लगातार देख रहे हैं, हजम कर रहे हैं और सहन कर रहे हैं।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने आपकी नब्ज पकड़ ली है, उन्हें पता चल गया है कि आप क्या देखना चाहते हैं, क्या सुनना चाहते हैं? इसलिए वो आपको वही सुना रहे, दिखा रहे जो आप चाहते हैं। आप यह सब देखने-सुनने के लिए इतने लाचार हो चुके हैं कि अपने हाथ में पकड़े रिमोट से चैनल को स्विच भी नहीं कर सकते। इस तरह से आप चैनल की नहीं, बल्कि सनसनी की, चीख-पुकार की और न्यूज चैनल के एंकरों की नौटंकी की टीआरपी बढ़ा रहे हैं।
गलती आपकी है, आप खबरों में मनोरंजन खोज रहे हैं, इसलिए पत्रकारों ने खुद को कलाकारों और ड्रामेबाज में तब्दील कर लिया है। आप खबर देखना चाहेंगे तो आपको खबर ही दिखाई जाएगी, अगर आप मनोरंजन देखना चाहेंगे तो आपको मनोरंजन ही दिखाया जाएगा। क्योंकि यह बाजार है, धन के लिए बदलता रहता है।
दरअसल यह ठीक किसी बाजार की तरह ही है। किसी भी उत्पाद का बाजार अपने ग्राहकों के हिसाब से या तो खुद को ढाल लेता है या फिर वो आपको बदलकर अपने बाजार के मुताबिक बना देता है। दोनों ही स्थितियों में आप मजबूर हैं।
मीडिया का यह बाजार आपको दूसरे बाजारों की तरह सिर्फ एक प्रोडक्ट मानता है, रीडर्स या व्यूअर्स नहीं।
इसलिए आपको तय करना होगा कि आपकी प्राथमिकता क्या है। आपको तय करना होगा कि मनोरंजन देखने के लिए मनोरंजन का ही चैनल लगाया जाए, ड्रामे और नौटंकी के लिए उसी का चैनल और समाचार के लिए समाचार का ही चैनल लगाया जाए। प्राथमिकता आपकी है और मजबूरी भी आपकी। तय कीजिए दोनों में से आपको क्या चाहिए?
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)