हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई, सीएम शिवराज ने रच दिया इतिहास

कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
आजादी के अमृतकाल में निरन्तर नव परिवर्तन एवं सृजन के साथ- साथ राष्ट्रीय स्वाभिमान की पुनर्प्रतिष्ठा एवं सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण सम्वर्द्धन के सार्थक प्रयास देखने को मिल रहे हैं। इसी बीच मप्र के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में हिन्दी माध्यम में मेडिकल की शिक्षा का शुभारम्भ कर एक नया इतिहास रच दिया है। इसी वर्ष जब मुख्यमंत्री ने गणतंत्र दिवस के मौके पर इन्दौर से मध्यप्रदेश में हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई शुरू करवाने की घोषणा की थी। उसी समय से लोग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर इसे हास्यास्पद बताने में जुटे रहे आए। सभी को यह कार्य असम्भव सा लग रहा था। इतना ही नहीं उस समय शिवराज की यह घोषणा चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े हुए विद्वानों- विशेषज्ञों के भी गले नहीं उतर रही थी। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आजादी के अमृतकाल में इस घोषणा को अपनी भीष्म प्रतिज्ञा मानी। और इस अभियान में स्वयं की मॉनिटरिंग में तन्मयता के साथ मूर्तरुप देने में जुट गए।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाषा को लेकर विविध मंचों से विचार साझा करते हुए कहते हैं कि ‘साथियों, हमें एक ही वैज्ञानिक बात समझने की जरूरत है कि भाषा, शिक्षा का माध्यम है, भाषा ही सारी शिक्षा नहीं है। जिस भी भाषा में बच्चा आसानी से सीख सके, वही भाषा पढ़ाई की भाषा होनी चाहिए। दुनिया के ज्यादातर देशों में भी आरंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही दी जाती है। हमारे देश में खासकर ग्रामीण क्षेत्र में पढ़ाई मातृभाषा से अलग होने पर ज्यादातर पालक, बच्चों की पढ़ाई से जुड़ भी नहीं पाते। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा के अलावा कोई अन्य भाषा सीखने-सिखाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, कोई रोक नहीं लगाई गई है। अंतर्राष्ट्रीय पटल पर जो भी सहयोगी भाषा सीखने की बच्चों को आवश्यकता है वह जरूर सीखें। जितना ज्यादा सीखेंगे अच्छा ही होगा, लेकिन साथ-साथ सभी भारतीय भाषाओं को भी प्रमोट किया जाएगा, ताकि हमारे देश के युवा अलग-अलग राज्यों की भाषा, संस्कृति से परिचित हो सकें’

प्रधानमंत्री मोदी के 'विजन को मिशन' बनाने तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 की संकल्पना को धरातल पर उतारने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 26 जनवरी को इंदौर में गणतंत्र दिवस समारोह में घोषणा करते हुए कहा था कि मध्यप्रदेश में मेडिकल, इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिन्दी में भी कराई जाएगी ताकि अंग्रेजी न जानने वाले प्रतिभावान विद्यार्थी भी डॉक्टर, इंजीनियरिंग बनकर जीवन में आगे बढ़ सकें।

उनका यह संकल्प अब अपने शुभारम्भ की ओर है। भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में देश के गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के हाथों एमबीबीएस की हिन्दी में तैयार पाठ्यक्रम- पुस्तकों का विमोचन भी सम्पन्न हो चुका है‌। ध्यान देने योग्य बात यह है कि केन्द्रीय गृहमंत्रालय के अधीन ही राजभाषा विभाग सञ्चालित होता है। इसी कारण से गृहमंत्री अमित शाह की उपस्थिति में इस ऐतिहासिक लकीर को खींचा गया। और स्वतन्त्र भारत के इतिहास में हिन्दी में एमबीबीएस की पढ़ाई करवाने वाले प्रथम राज्य का कीर्तिमान स्थापित करने का यह सौभाग्य भी मध्यप्रदेश को मिला है। इसके पीछे नि: सन्देह सीएम शिवराज और उनकी कैबिनेट के साथ इस आन्दोलन से जुड़े हुए प्रत्येक व्यक्ति बधाई के पात्र हैं। वास्तव में हिन्दी के प्रति अनन्य निष्ठा, समर्पण, लगाव, असंदिग्ध श्रध्दा के भाव ही स्वर्णिम भारत का भविष्य गढ़ेंगे।

ध्यातव्य है कि एमबीबीएस के पाठ्यक्रम को तैयार करने में पूर्णरुपेण सतर्कता- सावधानी- प्रमाणिकता तथ्य एवं तर्कों के साथ चिकित्सा एवं भाषा क्षेत्र से जुड़े विद्वानों, विषय विशेषज्ञों की उच्चस्तरीय समिति गठित कर इसे मूर्तरूप देने का काम किया गया है। इसके लिए मप्र सरकार ने निम्न ढंग से चरणबद्ध प्रक्रिया को अपनाते हुए इस अभियान को आन्दोलन बनाया।

• हिन्दी में पाठयक्रम तैयार करने के लिए सत्यापन समितियों का गठन किया गया।
• पाठ्यक्रम निर्माण में चिकित्सा विद्यार्थियों एवं अनुभवी चिकित्सकों के सुझाव शामिल किए गए
• EOI जारी कर MBBS के विषयों के लेखक / प्रकाशक का चिह्नांकन किया गया‌।
• हिन्दी रूपांतरण का कार्य शासकीय चिकित्सा
महाविद्यालय के संबंधित विषयों के प्राध्यापक एवं सह प्राध्यापकों द्वारा किया गया।
• चिकित्सा महाविद्यालय भोपाल में हिन्दी प्रकोष्ठ वाररूम 'मंदार' तैयार किया गया
• पाठ्यक्रम तैयार किये जाने का कार्य चरणबद्ध रुप से वॉल्यूम (Volume) आधारित प्रणाली से किया जा रहा है।
•MBBS पाठ्यक्रम के संबंध में सकारात्मक वातावरण बनाये जाने, क्रियान्वयन एवं मॉनिटरिंग हेतु संस्थान स्तर पर समिति बनायी गई।

मेडिकल शिक्षा में हिन्दी भाषा में शिक्षण का यह शुभारम्भ और सार्थक प्रयास वास्तव में ऐतिहासिक है। हमारे महापुरुषों, भाषा शास्त्रियों व वैज्ञानिक चिन्तकों ने मातृभाषा में शिक्षा देने पर सदैव जोर दिया है। तमाम वैज्ञानिक अनुसंधानों- शोधों के द्वारा यह बारम्बार सिद्ध हुआ है कि मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने पर विद्यार्थी शीघ्रतापूर्वक- आत्मिक लगाव के साथ ज्ञान प्राप्त करने में सफल होता है। लेकिन स्वातंत्र्योत्तर भारत में अंग्रेजी के प्रति मोह, दासत्व व प्रतिष्ठा एवं श्रेष्ठता का मानक समझने की प्रवृत्ति ने मटियामेट करके रखा हुआ है। वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में भी अँग्रेजियत का भूत सबके सिर चढ़के बोल रहा है। अपनी भाषा के प्रति नाक- भौं सिकोड़ने का चलन अब भी बना हुआ है।

ऐसे में मातृभाषा राजभाषा हिन्दी के प्रति जब कोई सरकार अथवा राजनेता ऐसे दुस्साहसी कदम उठाएं, तब उसका बिना किसी न- नुकुर के स्वागत होना चाहिए। क्योंकि जैसा व्यापक सामाजिक वातावरण एवं विचार होगा; उसी अनुरूप राजनीति, सरकार एवं प्रशासन तन्त्र की विचार प्रणालियों में परिवर्तन देखने को मिलता है। ऐसे जनभागीदारी एवं समाज की सामूहिक शक्ति अहम भूमिका निभाती है।

वैसे तो प्रतिवर्ष कागजों में एवं राजभाषा पखवाड़े के रूप में हिन्दी को लेकर अनेकानेक प्रकार की औपचारिकताएं शासन- प्रशासन स्तर पर अक्सर निभाई जाती हैं। किन्तु हिन्दी को समृद्ध एवं सशक्त करने की दिशा में हिन्दी में अकादमिक पाठ्यक्रम, सृजन, शिक्षा देने के संकल्प एवं जीवन के समस्त सोपानों के कार्यव्यवहार में हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग ही राजभाषा से राष्ट्र भाषा के तौर पर स्थापित करा सकता है। और इस दिशा में समाज की अपनी भाषा एवं संस्कृति के प्रति अनन्य निष्ठा, अगाध श्रद्धा, समर्पण भरा हुआ लगाव- सबसे महत्वपूर्ण पक्ष बनकर उभरता है। कोई भी सरकार याकि कोई भी तन्त्र अपने किसी उद्देश्य में तब तक सफल नहीं बन सकता; जब तक की समाज की सामूहिक शक्ति उससे न जुड़ जाए। और वह अभियान न बन जाए।

मप्र सरकार द्वारा हिन्दी में मेडिकल शिक्षा के शुभारम्भ के ऐतिहासिक निर्णय की आधारशिला रखे जाने के बावजूद भी अंग्रेजी के प्रति अन्धश्रध्दा के चलते विभिन्न प्रकार की आशंकाएं चर्चा में आएंगी। ऐसे में हमें अपने संविधान निर्माताओं - महापुरुषों की विचार दृष्टि की ओर रूख करने की जरूरत है। मध्यप्रदेश सरकार ने उस काम की ऐतिहासिक शुरुआत की है, जिसे बहुत पहले हो जाना चाहिए‌‌। लेकिन देर आए दुरुस्त आए की भांति आजादी के अमृत काल में 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020' की संकल्पना को साकार करने की दिशा में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा उठाया गया यह ऐतिहासिक कदम समूचे देश के सामने प्रेरणा बनकर उपस्थित है। आगामी भविष्य में हिन्दी में शिक्षण के इतिहास में यह कदम मील का पत्थर बनेगा‌।

सच्चाई तो यह भी है कि अकादमिक जगत में हिन्दी भाषा एक प्रकार से चिर उपेक्षित ही रही आई है। यह इसी की परिणति रही है कि उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, मेडिकल शिक्षा में हिन्दी भाषा में उत्कृष्ट विषय सामग्री एवं पुस्तकों का अभाव लगातार बना हुआ है। इसी के चलते उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र से धीरे- धीरे हिन्दी तिरस्कृत एवं बहिष्कृत होती चली गई। और अंग्रेजी- हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं को मुंह चिढ़ाते हुए ठसक के साथ श्रेष्ठता का मानक बनकर लोगों में आत्मग्लानि एवं हीनता का बोध भरती चली गई।

जबकि वैश्विक परिदृश्य में उन्नति की सीढ़ियां चढ़ने वाले विविध देश यथा फ्रांस, जापान,  जर्मनी, चीन, रुस, अमेरिका इत्यादि ने सम्पूर्ण ज्ञान को अपनी भाषा में रुपान्तरित/ अनुवादित करके अपनी शिक्षा- अपनी भाषा में दी है। अब जबकि मध्यप्रदेश ने एमबीबीएस की पढ़ाई को हिन्दी में करवाने के संकल्प को मूर्तरूप देना प्रारम्भ किया है। ऐसे में यह नितान्त आवश्यक हो जाता है कि हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति दुराग्रह- पूर्वाग्रह का भाव त्यागा जाए। साथ ही आगे एमबीबीएस की पढ़ाई के कार्यान्वयन में स्फूर्ति एवं उत्साह के साथ लगने की अनिवार्य आवश्यकता है।

इस दिशा में सरकारों की नीतियां और शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए विद्वतजन, विषय विशेषज्ञ, भाषाविद्, लेखकगण इसे एक राष्ट्रीय अभियान बनाएं। और समस्त उत्कृष्ट- मानद् शैक्षणिक विषय सामग्री को हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में उपलब्ध करवाने की दिशा में प्रयास करें। साथ ही आगे एमबीबीएस की पढ़ाई के कार्यान्वयन में स्फूर्ति एवं उत्साह के साथ लगने की अनिवार्य आवश्यकता है। ताकि राष्ट्र की प्रगति के लिए नई पीढ़ी को समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की थाती सौंपकर भारतवर्ष के चहुंमुखी विकास का महापुरुषों राष्ट्र ऋषियों के स्वप्नों को साकार किया जा सके।
Edited: By Navin Rangiyal/ PR

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