अपने सपनों को जिएं

हम सभी लोग सपने देखते हैं। नींद में देखे गए सपने हमारी कल्पनाएं और कभी हमारी चिंताएं होती हैं। इन सपनों को हम सुबह उठते ही अक्सर भूल जाते हैं। नींद में हम अपना ही एक स्वप्नलोक् सजा लेते हैं, जिसके असल जीवन में कोई मायने नहीं होते। 
 
पर दोस्तों...कुछ सपने ऐसे भी होते हैं जिन्हें हम दिन में अपनी पूरी चेतना और खुली आंखों से देखते हैं। उन सपनों को हम जीना चाहते हैं, अपने असल जीवन का हिस्सा बनाना चाहते हैं। उनको साकार करके आत्मसंतुष्ट होना चाहते हैं। 
 
कई लोग ऐसे सपनों को अपने बचपन से ही अपने पास सहेज कर रखते हैं और उनको पूरा करने के उद्देश्य से ही अपना जीवन जीते हैं। ये सपने बच्चों को सम्भवतः उनके माता पिता या शिक्षक से मिलते हैं। किसी को अपना आदर्श मानकर वे भी वैसा ही बनने की दिशा में कार्यरत रहते हैं । 
 
सपनों और इच्छाओं में क्या अंतर है? क्या ये दोनों शब्द समानार्थक हैं या पर्यायवाची हैं या दोनों साथ-साथ चलते हैं? इनका जवाब हमारे जीवन की परिस्थितियों  पर भी निर्भर करता है। सकारात्मक परिस्थितियों में बहुत आसान होता है वही सब करना, जो आप अपने मन से या अपनी इच्छानुसार करना चाहते हैं। 
 
पर जब जीवन की परिस्तिथियां अनुकूल न हों, तब कई बार हम अपने सपनों को भूल जाते हैं। विवशत: वही करना पड़ता है जो मन चाहा न हो ।
 
क्या आप किस्मत में विश्वास रखते हैं? अगर आप मुझसे पूछें तो मेरा जवाब हां और ना के बीच में ही अटका रह जाएगा। वो इसलिए, क्योंकि मैंने अपने जीवन में कई ऐसी परिस्थिति‍यों का सामना किया है जहां मेरे जीवन से जुड़ी कई बातों के रुख बदल गए। शायद यही आपकी बेबसी होती है जहां आप अपने लिए नहीं बल्कि अपनों के लिए जीते हैं। यही जीवन की परिस्थितियां होती हैं जो आपकी किस्मत को बदल देती हैं। 
 
पर ये बेबस परिस्थितियां कई बार थोड़े समय के लिए ही होती हैं और फिर ऐसे भी मोड़ आते हैं जब आप सकारात्मकता और विश्वास से भर जाते हैं। वैसे ही जैसे एक लंबे पतझड़ के बाद सावन का आना और एक लंबी काली रात के बाद भोर की उजली किरनों का आना तय होता है। तब ये समय आपका अपना होता है। इस समय का पूरा लाभ उठाने वाला व्यक्ति ही अपने हाथ की लकीरों को झूठा साबित कर सकता है।
 
प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने अनुसार बना लेना भी कई बार संभव होता है। जैसे कोई अपना आपसे नाराज़ है तो देर मत कीजिए उसे मनाने में। एक छोटा सा शब्द 'सॉरी' आपकी दुनिया बदल सकता है और आप सबकी नज़र में इतने बड़े हो जाते हैं कि आप यही सोचने लगते हैं कि यह पहले ही क्यों नहीं कर लिया। कोई नहीं देर से ही सही पर खुशियां आपके दरवाजे पर दस्तक जरूर देती हैं। 
 
परिस्थितियों के अलावा कभी-कभी हमारे मन में कुछ डर और कभी कुछ झिझक भी होती है जो हमें मनचाहा काम करने से रोकते हैं। डर कुछ भी नहीं होता, ये बस हमारे ही मन का बनाया एक हौवा है, जो हमें हमारे ही खोल से निकलने से रोके रखता है। 
 
और झिझक होती है हमें समाज की, अपनों की, लोग क्या कहेंगें। जैसे आपने पढ़ी तो सारी उम्र साइंस, अपने माता पिता की इच्छानुसार या कुछ भी कह लीजिए, आप बन गए इंजीनियर, पढ़ते ही रहे अपने मन को मारके, पर असल में तो आप एक पेंटर बनना चाहते थे। 
 
तो दोस्तों, ये प्रतिकूल परिस्थितियां, अपना ही डर, लोगों से झिझक, ये सब बातें होती ही हैं जीवन में। हम इंसान हैं और इसी समाज के अभिन्न अंग हैं, जिसने हमें ये सब दिया है, इनसे मुक्ति नहीं। 
 
मेरा मानना यही है कि अपने सपनों को मरने मत दीजिए। उन्हें अपने मन के अंदर पालिए और खूबसूरत बनाइये। उनको पूरा करने के लिए अपने ही अंदर एक जूनून भी पैदा कीजिए और सही वक्त का इंतज़ार कीजिए। जब आपको लगे कि हां, अब मैं अपने लिए और अपने सपने के लिए भी जी सकता हूं।

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