इतिहास के कई उदाहरण बताते हैं कि पौधारोपण का कार्य कितनी भावना, निष्ठा एवं आनंदमयी तरीके से किया जाता था, हमें इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। वर्षाकाल प्रारंभ होते ही देशभर में पौधारोपण के आयोजन होने लगते हैं, जो वृक्ष-रोपण के नाम से ज्यादा प्रचलित हैं। पिछले 10-15 वर्षों में यदि ये आयोजन पेड़ों से लगाव पैदाकर नैतिक जिम्मेदारी से किए जाते तो शायद घटती हरियाली का संकट इतना गम्भीर नहीं होता। ज्यादातर अब ये आयोजन एक वार्षिक त्यौहार की भांति हो गए हैं, जो अपने लोगों को आमंत्रित करने तथा दूसरे दिन फोटो प्रकाशित होने तक सीमित हो गए हैं। हमारी सभ्यता एवं संस्कृति में पेड़ों का विशेष महत्व रहा है एवं वे देवतुल्य माने गए हैं। इतिहास में जाकर देखें तो हमें कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जहां पौधारोपण का कार्य कितने हर्षोल्लास एवं जिम्मेदारी से किया जाता था।