प्रेम दिवस पर प्यार के ढाई आखर की पूंजी सहेजना जरूरी है

रीमा दीवान चड्ढा
Love Relation 
 
आइए आज प्रेम पर बात करते हैं। मदनोत्सव मनाने वाले देश में प्रेम पर बात करना वर्जित है। आप यदि किसी से प्रेम करते हैं तो कह नहीं सकते, कह भी दिया तो प्रेम निभा नहीं सकते़, क्योंकि भारत में प्रेम हमेशा कविता-कहानियों में होता है या फिर होता है छुप-छुपा कर। खुलेआम प्रेम करना पाप है, अपराध है।

ये हमारे दौर की बात थी या फिर हमसे पहले के ज़माने की बात थी। जहां माता-पिता की अनुमति के बिना प्रेम नहीं किया जा सकता था। हमारे दौर में प्रेम की अभिव्यक्ति सही न थी। कहना बुरा था, प्रेम करना भी बुरा था। शादी से पहले किया गया प्रेम स्वीकार न था। 
         
नए दौर में बहुत खुलापन है। प्रेम का प्रदर्शन शीर्ष पर है। दिल के इमोजी अब फेसबुक के कमेंट में लगने लगे हैं। युवा अपने साथी के साथ घूमने लगे हैं। लड़कियों ने वर्जनाओं को पीछे छोड़ दिया है। अब संबंध बनाने से भी उन्हें परहेज नहीं रहा। यदि पुरुष कर सकता है तो महिला क्यों नहीं? वासना शीर्ष पर है। अश्लीलता, पोर्न और व्यभिचार चारों तरफ बस यही दिखता है। 
           
प्रेम तो प्रकृति की सबसे सुंदर नेमत है जो हमें मिली है। कण-कण से प्यार किया जा सकता है। दो पंछियों की तरह निश्छल प्रेम बहुत ज़रूरी है। दुख इस बात का है कि यही निश्छल प्रेम सिरे से समाज से गायब है। शादीशुदा जोड़े में जीवन के संघर्ष ने इतनी कटुता भर दी है कि प्रेम बचा ही नहीं है। आये दिन तलाक की खबरें आती हैं। लिव इन की परिणति श्रद्धा के 36 टुकड़ों की तरह होती जा रही है। 
         
वसंतोत्सव के देश में वेलेंटाइन पर्व के बहाने से आइए विचार तो करें कि प्रेम जो सबसे ज़रूरी है, वह प्रेम क्यों इस तरह वासना की गिरफ्त में है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी उसने कहा था का प्रेम अब नहीं दिखता।

राधा कृष्ण सा प्रेम कहां है ? मीरा सी दीवानगी कहां है ? शिव पार्वती सा प्रेम कहां है ? कहां बची सीता के स्वयंवर सी परंपरा कि स्त्री अपने लिए जीवन साथी का चुनाव कर सके। और वही जीवनसाथी यदि 14 बरस के वनगमन के साथ के बावजूद चरित्र पर संदेह करे तो मानिनी बन स्त्री उसका परित्याग कर सके। 
              
हमारे देश में मां की आज्ञा मानने की परंपरा है। वस्तु की तरह द्रौपदी को पांच पतियों में बांट दिया गया क्योंकि मां ने कहा था। मां की बात को हमारे भारतीय पुरुष कभी नहीं नकारते। मां के कहने पर पत्नी बांट लेते हैं या त्याग देते हैं।

भारतीय मां स्त्री होने के बावजूद अपनी बहू का सुख नहीं देख सकती। बेटे का मोह इस कदर हावी है कि बहू-बेटे के अलगाव की वजह बन जाती है। भारतीय पति पत्नी के रूप में सदा ही एक दासी की कामना करता है। हाथ बांधे जो खड़ी रहे। हुकुम की गुलामी करे और जब उसे शरीर का सुख चाहिए औरत हमेशा उसके लिए उपलब्ध रहे। पत्नी यदि पसंद न आए तो ये भारतीय पुरुष बाहर चार औरतों से बेहिचक संबंध बनाता है। पहले औरतें घुटती थीं, अब वे भी बगावत पर उतर आईं हैं। 
 
विवाहेत्तर संबंध बहुत बन रहे हैं- 
       
ऊपरी रूप से भारतीय संस्कृति का ढोल पीटता हमारा समाज छुपकर प्रेम संबंध बनाने की अनुमति दे देता है। खुले आम प्रेम पर प्रतिबंध है, पर आप आधी रात को दूसरी औरत के पास जाकर आ जाइए, किसी को कुछ पता नहीं चलता। औरतों के पास तन बेचने के लिए कई विवशताओं का रोना है, आर्थिक प्रमुख है। अब स्थिति इस कदर बिगड़ रही है कि मोबाइल और नए कपड़ों के लिए तन बेच दिया जा रहा है। 
 
क्षणिक सुख के लिए भी नई लड़कियां न कपड़े उतारने से परहेज़ करतीं हैं, ना शरीर बेचने से इनकार करती हैं। 
             
ऐसे माहौल में भी कुछ लोग अभी बचे हैं जो जाति धर्म से परे केवल विशुद्ध प्रेम करते हैं। अपने साथी के सुख की परवाह करते हैं। प्रेम के मायने समझते हैं। समर्पण, सहयोग और त्याग का अर्थ जानते हैं। ढाई आखर की पूंजी सहेजना ज़रूरी समझते हैं। 
          
प्रेम के इस मौसम में आइए प्रेम करें। खुलेआम प्रेम करें। प्रकृति से प्रेम करें। अपने आप से प्रेम करें। अपने माता-पिता, भाई-बहन, अपने बच्चों से प्रेम करें। पति-पत्नी आपस में प्रेम करें। एक-दूसरे का सम्मान करें। एक-दूसरे की भावना का मान रखें। अपने पड़ोसी से प्रेम करें। अपने ऑफिस के सहयोगियों से मित्रवत प्रेम करें। 

अपने मित्रों से प्रेम करें। अपने दुश्मनों से प्रेम करें, क्योंकि वे ही हैं जो प्रगति से जलते हैं, अंत अनजाने आप को आगे बढ़ाते हैं। अपने काम से प्रेम करें। हर एक प्राणी से प्रेम करें। पशुओं से प्रेम करें। पौधों से प्रेम करें। पैसे से प्रेम करें, पर ध्यान रखें कि ये प्रेम इतना ना बढ़ जाए कि बाकी सारे प्रेम लील जाए। 
  
प्रकृति के इस सुहाने मौसम में आइए प्रकृति से प्रेम करें, खुलेआम करें और प्रकृति के रंग में रंगकर पूरी कायनात को प्रेम के रंग में डूब जाने दें। 
 
कबीर ने कहा है- 
प्रेम न बाड़ी ऊपजे, प्रेम न हाट बिकाय !
राजा पिरजा जेहि रुचे, शीश देई लेजाए !!
 
याद रहे....

Love Relationship 
 

ALSO READ: ब्लॉग: प्रेम विवाह यानी लड़कियों के लिए जोखिमभरा फैसला

ALSO READ: महाभारत में राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा जानकर चौंक जाएंगे
                                       

सम्बंधित जानकारी

अगला लेख