मंदिर सुंदर,शहर सुंदर, हम सबके आज मन भी है सुंदर, विचार और भाव सुंदर, अहसास सुंदर....इन सबके बीच एक विचार एक भाव उस दर्शनार्थी का भी जोड़ लीजिए जो यह चाहता है कि घड़ी भर ठहर कर दर्शन कर लें भगवान बाबा महाकाल के.... जो लम्बी यात्रा के कष्ट झेलकर और लम्बी लाइन के संताप सहकर बाबा तक पहुंचा है मगर धकिया दिया गया है, गलिया दिया गया है,जिसके साथ छीना छपटी हुई और तिलक लगा कर लूटने के लिए पंडे जिसे बेताब मिले...
आम जनता के साथ हर दर्शनाभिलाषी का बस एक ही सवाल एक ही उलझन.....क्या बाबा के दर्शन होंगे शांति से....दिव्यता और साज सज्जा सब शिरोधार्य है मगर क्या सौम्यता और शिष्टता से पेश आएंगे पंडे, पुजारी और पुलिस?
स्थानीय लोग भोले हैं खुशी में खुश हैं लेकिन इसलिए कि वे अब ज्यादा अपेक्षा नहीं रखते...जिस महाकाल वन के आंगन में वे खेलकर बड़े हुए जहाँ हर रूप चतुर्दशी पर सबसे पहली फूलझड़ी वे जलाते थे वह तो उनसे कब से छीन लिया गया है... अब तो व्यवस्था के नाम पर फैलाई अव्यवस्था का जो आलम है वह असहनीय हो चला है.... इसलिए यह विचार उन दर्शनार्थियों के पक्ष में ज्यादा है जो जाने कौन कौन सी जगहों से आते हैं बाबा की शरण में और पुजारियों के दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं....
क्या जगमगाहट और झिलमिलाहट के बीच यह आश्वस्ति मिलेगी कि दर्शन को आतुर भक्त धकियाएंगे नहीं जाएंगे, गलियाएंगे नहीं जाएंगे, उनके साथ छीना छपटी, नोचा खसोटी नहीं होगी... तिलक लगा कर लूट नहीं होगी।