जनता पूछती क्‍यों नहीं सरकारों से कि आपके घोषणा पत्रों में पहाड़, जंगल और नदियों का संरक्षण शामिल है या नहीं?

केदारनाथ हादसे की त्रासदी के घाव भी ठीक से भरे ही नहीं थे कि अब उत्‍तराखंड के चमोली में एक बार फि‍र से यह दिल दहला देने वाली प्राकृतिक घटना से कई सवाल उठ गए हैं।

ग्‍लेशि‍यर पि‍घलने की इस घटना में अब तक कि खबरों के मुताबि‍क 150 लोग लापता हैं, संख्‍या इससे कहीं ज्‍यादा हो सकती है। त्रासदी इससे कहीं ज्‍यादा भयावह हो सकती है, लेकिन सबसे अहम सवाल और चिंता यह है कि हम अब भी प्राकृतिक आपदाओं से सबक नहीं ले रहे हैं।

एक तरफ उत्‍तराखंड को देवभूमि का दर्जा द‍िया जा रहा है तो इसी के साथ वहां पहाड़ों को काटा जा रहा है, प्रोजेक्‍ट लगाए जा रहे हैं, प्‍लांट स्‍थापित किए जा रहे हैं, पर्यटन के लिए प्रोजेक्‍ट चलाए जा रहे हैं।

इस सब के लिए कितने पहाड़ों की बलि दी जा रही होगी, कितने पेड़ों के गले रेते जा रहे होंगे, कितनी नदियों को सुखाया जा रहा होगा और सड़कों कों के लिए कितने जंगलों का रास्‍ता बंद किया जा रहा होगा, इसका अंदाजा लगाना बेहद मुश्‍किल है।

पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुंचाकर जिस विकास को तरजीह दी जा रही है, वो अतीत में भी ऐसी त्रासदियां लेकर आया था और भविष्‍य में भी ऐसी भयावह त्रासदियां लेकर आता रहेगा।

दरअसल हम हर त्रासदी पर पर्यावरण के संरक्षण और जंगल, जमीन और नदियों को बचाने की बहस करते हैं, लेकिन यह बहस कभी न्‍यूज चैनल के एयर कंड‍ि‍शनिंग कमरों से बाहर नहीं आ पाती है। पर्यावरणव‍िद पूरी दुनिया के सामने अपना माथा पीटते रहते हैं, लेकिन न राज्‍य सरकार और न ही किसी केंद्र सरकार के कान पर जूं रेंगती है।

अपनी आंखें और कान बंद कर के हर सरकार विकास के नाम पर साल दर साल प्रकृति और पर्यावरण का नाश करने पर तुले रहते हैं और जब ऐसी घटनाएं होती हैं तो उनके पास मतृकों के लिए रेस्‍ट इन पीस कहने और उनके परिवारों को कुछ हजार मुआवजा देने के अलावा कोई विकल्‍प नहीं बचता है।

केदारनाथ के समय लाखों लोगों के परिवारों के लोगों पर प्रकृति तबाही बनकर उनके ऊपर ग‍िरी। इस बार भी उत्‍तराखंड के चमोली में कुछ वैसी ही तबाही देखने को मिली। गनिमत सिर्फ इतनी भर थी कि यहां पर्यटकों का या भक्‍तों का कोई बड़ा हुजूम नहीं था। नहीं तो क्‍या नजारा होता इसका अंदाजा लगाया नहीं जा सकता!

अब समय आ गया है कि सरकार अपने एजेंडों में पर्यावरण को मुख्‍य रूप से शामिल करें और देश की जनता भी विकास के नाम पर भ्रमित न होकर सरकार से यह पूछे कि आपके घोषणा पत्र में पर्यावरण, पहाड़, नदियों और जंगलों के संरक्षण के लिए कुछ है या नहीं।

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