ऐसे विवाद क्यों

अवधेश कुमार

सोमवार, 26 मई 2025 (16:51 IST)
पहलगाम आतंकवादी हमले से लेकर ऑपरेशन सिंदूर की अभूतपूर्व कार्रवाई, उसके बाद 8 और 9 मई की रात्रि तक पाकिस्तान के साथ सीधे सैन्य टकराव और उसके बाद जिस तरह के वक्तव्य आए, प्रश्न उठाए गए हैं सामान्य तौर पर भी वे चिंतित करने वाले हैं। इसमें सबसे अंतिम विवाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर के ऑपरेशन संबंधित पाकिस्तान को जानकारी देने के स्वाभाविक वक्तव्य का राहुल गांधी और कांग्रेस के द्वारा विवादास्पद बनाया जाना है। 
 
राहुल गांधी ने एक निजी न्यूज चैनल का वीडियो शेयर करते हुए एक्स पर लिखा, 'हमारे हमले की शुरुआत में पाकिस्तान को सूचित करना एक अपराध था. विदेश मंत्री ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि भारत सरकार ने ऐसा किया.. 'इसे किसने अधिकृत किया? इसके परिणामस्वरूप हमारी वायुसेना ने कितने विमान खो दिए?' राहुल गांधी का पोस्ट था इसलिए हजारों की संख्या में शेयर हो गया और अपने देश के चरित्र के अनुरूप हंगामा भी।  
 
इस कांग्रेस मीडिया एवं कम्युनिकेशन के प्रमुख वरिष्ठ नेता जयराम रमेश पहले ही इससे आगे बढ़ कर विदेश मंत्री के इस्तीफे की मांग कर चुके थे। एक्स पर उनका पोस्ट था, 'विदेश मंत्री- अपने अमेरिकी समकक्ष की ओर से किए जा रहे दावों का जवाब तक नहीं देते हैं, उन्होंने एक असाधारण रहस्योद्घाटन किया है। वह अपने पद पर कैसे बने रह सकते हैं, ये समझ से परे है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून, 2020 को चीन को सार्वजनिक रूप से क्लीन चिट दे दी और हमारी बातचीत की स्थिति खत्म कर दी। जिस शख्स को उन्होंने विदेश मंत्री के तौर पर नियुक्त किया, उसने इस बयान से भारत को धोखा दिया है। 
 
कांग्रेस पार्टी के समर्थक और भाजपा विरोधियों के साथ अनेक आम लोगों को भी इन बड़े नेताओं के वक्तव्य के बाद लगा होगा कि क्या वाकई हमने ऑपरेशन सिंदूर के पहले ही पाकिस्तान को बता दिया? सामान्य दृष्टि से भी इससे हास्यास्पद बात कुछ नहीं हो सकती कि जो सरकार आतंकवादी हमले के बाद सीमा पार स्थित महत्वपूर्ण आतंकवादी केन्द्रों को ध्वस्त करने की साहसिक कार्रवाई की गोपनीय तैयारी कर चुकी हो वह इसके पूर्व ही दुश्मन को बता देगा? लेकिन हमारा देश में नेता, एक्टिविस्ट, मीडिया के कुछ साथी पत्रकार कुछ भी लिख और बोल सकते हैं। 
 
यह देश का दुर्भाग्य है और गहरी चिंता का विषय कि पूरे अभियान में, जिसने संपूर्ण दुनिया को विस्मित किया तथा पाकिस्तान को सकते में ला दिया उसे पर उत्सव मनाने की जगह अपने पय ही प्रश्न उठाकर देश का मनोबल कमजोर करने की भूमिका निभाई जा रही है। आखिर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा क्या था? उन्होंने कहा था, “ऑपरेशन की शुरुआत में हमने पाकिस्तान को एक संदेश भेजा था कि हमारा निशाना आतंकवादी ढांचे पर है, न कि उनकी सेना पर। हमने उन्हें हस्तक्षेप न करने का विकल्प दिया था, लेकिन उन्होंने इसे मानने से इनकार कर दिया।' 
 
उनके अनुसार, 7 मई की रात 1 से 1:30 बजे के बीच, भारतीय सेना के डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने पाकिस्तान के डीजीएमओ मेजर जनरल काशिफ अब्दुल्ला को फोन कर यह जानकारी दी थी। भारत ने केवल सावधानी से चुने गए आतंकी ठिकानों को ही निशाना बनाया है, न कि सेना के ठिकानों को। इसमें कहां है कि पूर्व में ही सूचित कर दिया? राहुल गांधी के वक्तव्य के बाद विदेश मंत्रालय ने इसका खंडन भी कर दिया कि पाकिस्तान को ऑपरेशन शुरू होने के बाद सूचना दी गई थी, न कि उससे पहले। इस बयान को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। यह तथ्यों की तोड़-मरोड़ है।” 
 
बावजूद विवाद जारी है और रहने वाला है। सभी बड़े नेताओं को पता है कि सच क्या है। पहले की सरकारें ऐसा साहस नहीं कर सकी इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार जनता और दुनिया की नजर में ऐतिहासिक पराक्रमी न मान लिया जाए इसके भय से अनेक ऐसे विवाद खड़े किए जा रहे हैं।

इसका मतलब हुआ कि आगे भी ऐसे ही होता रहेगा। तभी तो जिस ऑपरेशन पर अब अमेरिका व यूरोप के सामरिक विशेषज्ञ भारत की रणनीतिक और कूटनीतिक सफलता ऐतिहासिक बताकर पाकिस्तान के झूठ को तथ्यों से उजागर कर चुके हैं वहां हमारे ही देश में दुश्मनों विशेषकर चीन, पाकिस्तान और अन्य के नैरेटिव को फैलाकर पूरी सफलता के स्वाद में मिट्टी तेल डालने का उपक्रम हो रहा है। 
 
भारत बहादुर देश है और जब हमने तैयारी से 1:05 बजे रात से 1:30 बजे तक यानी 25 मिनट के अंदर दो दर्जन से ज्यादा मिसाइलों के सटीक निशाने से महत्वपूर्ण आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त करना शुरू किया तो पाकिस्तान को बता दिया कि कार्रवाई आतंकवाद के विरुद्ध है, पाकिस्तान पर हमला नहीं। पाकिस्तान नहीं कह रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर की सूचना पहले मिल गई और हमने किसी मिसाइल को मार गिराया। वह सकते में आ गया कि इतनी बड़ी कार्रवाई की भनक कैसे नहीं लगी? 
 
दूसरे, यह हवाई बमबारी नहीं थी कि हमारे किसी वायुयान या पायलट को पाकिस्तान नुकसान पहुंचता। अगर नेताओं को इतनी समझ नहीं है तो उनके बारे में देश तय करें कि हमें कैसा व्यवहार करना है। अंतरराष्ट्रीय मानक है कि हम किसी देश की सीमा में घुसकर किसी अपराध या आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई करते हैं तो उसे सूचना देते हैं। इसका रिकॉर्ड भी रखा जाता है ताकि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने हमले का झूठ न फैला सके। 
 
10 मई को सैन्य टकराव रुकने के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ट्वीट के बाद विपक्ष ने सरकार पर हमला शुरू कर दिया यह जानते हुए कि नरेंद्र मोदी सरकार स्वयं अनेक बार कर चुकी है कि जम्मू कश्मीर के मामले में मध्यस्थता नहीं होगी। 10 मई की चार पत्रकार वार्ताओं मे सेना की दो महिला प्रवक्ताओं कर्नल सोफिया कुरेशी और‌ विंग कमांडर व्योमिका सिंह तथा विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने साफ कर दिया।

यह भी स्पष्ट किया गया कि आतंकवादी कार्रवाई को युद्ध की तरह लिया जाएगा। उसके बाद दो दिन सेना के तीनों अंगों के डीजीएमओ की पत्रकार वार्ताओं,अगले दिन प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन और उसके बाद आदमपुर वायु सेना अड्डा भाषण में साफ कर दिया कि पाकिस्तान आतंकवाद रोकने और सैन्य दुस्साहह से बचने की गारंटी पर खरा नहीं उतरा तो ऑपरेशन सिंदूर जारी है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि यज्ञ अखंड प्रतिज्ञा है। यानी अगर आतंकवादी कार्रवाई हुई तो केवल आतंकवादियों के विरुद्ध नहीं, पाकिस्तान सरकार का काम मानकर उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। इससे स्पष्ट घोषणा और कुछ हो नहीं सकती। 
 
देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ नहीं हो सकता कि आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में विश्व के लिए नए मानक जैसे प्रतिमान को देश की उपलब्धि मानने की जगह संकुचित राजनीतिक स्वार्थ तथा रुग्ण वैचारिकता के आलोक में छोटा करने का आत्मघाती व्यवहार किया जा रहा है। जब पाकिस्तान को आईएफ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कर्ज दे दिया तो जयराम रमेश ने पोस्ट कर दिया कि भारत ने मतदान में विरोध नहीं किया। वे आर्थिक विषयों के पत्रकार रहे हैं और केंद्रीय मंत्री। 
 
उन्हें पता है कि विरोध में वोट करने का कोई प्रावधान नहीं और बहिर्गमन करन विरोध होता है जो भारत ने किया। इसी तरह बार-बार अमेरिकी दबाव में युद्ध विराम की बात हो रही है। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति हैं और उनको कुछ बोलने से हम रोक नहीं सकते। विदेश मंत्रालय ने साफ किया कि अमेरिका से कब-कब बात हुई लेकिन भारत पर कोई दबाव हो इसे न अमेरिका बोला न कहीं से कोई संकेत। बावजूद ऐसा साबित करने की कोशिश हुई कि ट्रंप और अमेरिका के डर से युद्ध विराम कर दिया। 
 
प्रधानमंत्री के संबोधन के बावजूद पाकिस्तान और चीन के नैरेटिव को प्रमुखता दी जा रही है। अब ट्रंप ने भी कह दिया कि उसने कोई मध्यस्थता नहीं की। तब भी ये मानने को तैयार नहीं। भारत में कभी सीजफायर या युद्ध विराम शब्द का प्रयोग नहीं किया। हमने सैन्य कार्रवाई और गोलाबारी रुकने पर सहमति की बात की। यह समाचार उड़ा कि युद्धविराम केवल 18 मई तक है। अब पाकिस्तान के डीजीएमियों की ओर से आ गया कि इसकी कोई समय सीमा नहीं है। 
 
प्रश्न है कि क्या इसके बावजूद हमारे नेता, एक्टिविस्ट, बुद्धिजीवी, पत्रकारों का एक समूह अपने देश को छोटा करने से बाज आएंगे? कांग्रेस कहती है कि वह सेना के साथ है। क्या सेना के साथ होना देश पर अहसान करना है? ऐसा कौन कहेगा हम सेना के साथ नहीं है। सेना पहले भी थी तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई? सेना राजनीतिक नेतृत्व के आदेश का ही पालन कर सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने साहस दिखाया तो श्रेय उसको जाएगा। विरोधी चटपटा कर आत्महत्या कर लें तब भी इसमें श्रेय नहीं मिलने वाला। ये लोग देश के स्तर पर एकजुटता दिखाई तो श्रेय पूरे देश का होता। 
 
क्या यह बार-बार पूछना देश हित का कार्य है कि हमको क्या क्षति हुई बताया जाए? युद्ध में क्षति एकपक्षीय नहीं होती। दोनों पक्षों की होती है, किसी का कम किसी की ज्यादा। किंतु जब अभी भारत स्वयं को युद्ध या ऑपरेशन सिंदूर की अवस्था में मानता है तो जिम्मेवार भारतीय का राष्ट्रीय कर्तव्य ऐसे प्रश्नों से दूर रहना है। जो लोग अपना राष्ट्रीय कर्तव्य इसमें नहीं समझते उनके बारे में हम क्या शब्द प्रयोग करें या देश कैसा व्यवहार करें यह आप तय करिए। 

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
 

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