क्‍या है 5जी तकनीक, कैसे काम करती है, क्‍यों अमेरिका समेत दुनिया में शुरू हुआ विवाद, और क्‍या है विमानों की उड़ान से इसका कनेक्‍शन?

नवीन रांगियाल
5जी तकनीक की पूरी दुनिया में चर्चा है। इस चर्चा की दो वजहें हैं। एक ‘नेटवर्क की स्‍पीड’ और दूसरी वजह है इसे लेकर बताया जा रहा विमान उड़ान को लेकर खतरा।

जी, हां 5जी से खतरा भी हो सकता है ये कहा जा रहा है। विमानों की उड़ान से संबंधि‍त किस खतरे की बात की जा रही है, क्‍यों दुनिया में इसका विरोध हो रहा है और क्‍यों डरी हुईं हैं विमान कंपनियां। यह सब जानने से पहले समझते हैं, आखि‍र होता क्‍या है 5जी और यह कैसे काम करता है या करेगा।

अभी हम इंटरनेट स्‍पीड के लिए 4जी तकनीक का इस्‍तेमाल कर रहे हैं। इसके पहले 3जी था। और अब हम इंटरनेट सेवाओं को और ज्‍यादा ताकतवर या यूं कहें कि उसे रफ्तार देने के लि‍ए 5जी की ओर बढ़ रहे हैं। जाहिर है आज दुनिया इंटरनेट पर ही चल रही है। ऐसे में इंटरनेट सेवाओं, तकनीक और इसकी रफ्तार को लेकर समय समय पर अपग्रेडेशन होते रहेंगे।

जी, हां, ये सही है। 5जी आ जाने के बाद पूरी दुनिया में निश्‍चित तौर पर इससे इंटरनेट की स्‍पीड कई गुना बढ़ जाएगी, शायद सौ गुना तक।

क्‍या है 5जी और विमान का ड़ान कनेक्‍शन’?
बता दें कि अभी सिर्फ अमेरिका में 5जी की आहट सुनाई दे रही है, लेकिन इसके पहले कि 5जी का इस्‍तेमाल पूरी दुनिया में शुरू हो, एक बेहद बड़ा विवाद शुरू हो गया है। दरअसल, हाल ही में अमेरिका में 5जी नेटवर्क की शुरुआत हुई है, जिसकी वजह से अब एयरलाइन कंपनियां पूरी तरह से दहशत में हैं। वहां 19 जनवरी से इस नेटवर्क की शुरुआत हुई है। जिसके बाद एयर इंडिया ने कहा है कि 5जी नेटवर्क के आने से अब अमेरिकी उड़ानों में कटौती और बदलाव किया जा सकता है।

क्‍या है विमान कंपनियों का डर’?
दूसरी तरफ अमेरिकी उड्डयन नियामक फैडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (एफएए) का कहना है की 5जी नेटवर्क की वजह से विमान के रेडियो अल्टीमीटर इंजन और ब्रेक सिस्टम में बाधा उत्पन्न हो सकती है। जिस का सीधा असर विमान के लैंड करने पर होगा। रनवे पर विमान को लैंडिंग में प्रॉब्लम आ सकती है। यहां तक कि लैंडिंग और टेक-ऑफ के वक्‍त पायलट को गलत सूचनाएं मिल सकती हैं। नजीता यह है कि कई फ्लाइट ने अमेरिकी रूट से गुजरने से मना कर दिया है।

बता दें कि इसी सप्ताह से एटीएंडटी और वेरिजोन कंपनियां अपने नए 5जी नेटवर्क शुरू करने वाली थीं।
एटीएंडटी और वेरिजोन कंपनियां अपने 5जी वायरलेस सर्विस के लिए अल्टीमीटर में इस्तेमाल होने वाले रेडियो स्पेक्ट्रम के काफी करीब वाले स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करती हैं। बता दें कि अल्टीमीटर की मदद से विमान और धरती के बीच की दूरी मापी जाती है। ऐसे में विमान और धरती की सटीक ऊंचाई मापने में दिक्कत हो सकती है।

क्‍या कह रही हैं टेलीकॉम कंपनियां?
एटीएंडटी और वेरीजोन ने कहा है कि सुरक्षा को लेकर कोई खतरा नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका में वायरलेस संचार उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाले (सीटीआईए) ने कहा है कि दुनिया के 40 देशों ने सी बैंड को 5जी के लिए उपलब्ध कराया है, लेकिन वहां की विमानन कंपनियों ने इस तरह की शिकायत नहीं की है। एटीएंटडी के सीईओ जॉन स्टैंकी और वेरिजोन के सीईओ हांस वेस्टबर्ग ने यह जरूर कहा है कि वे एयरपोर्ट के पास 5जी नेटवर्क की ताकत को कम करेंगे। इससे पहले फ्रांस ने भी इसी तरह का प्रयोग किया है।

कैसे काम करता है 5जी?
दरअसल 5जी में सी बैंड का रेंज 3.7 से 3.98GHz होता है और ये अल्टीमीटर 4.2 से 4.4GHZ की रेंज में काम करते हैं। ऐसे में 5जी के बैंड की फ्रीक्वेंसी और अल्टीमीटर रेडियो की फ्रीक्वेंसी काफी करीब हो रही है जो विमान कंपनियों के लिए डर का सबब बन रही है।

कहा जा रहा है कि 5जी में इस्तेमाल होने वाली सी बैंड की फ्रीक्वेंसी के कारण वे सभी उपकरण काम करना बंद कर सकते हैं, जो विमान की ऊंचाई बताते हैं, सेफ्टी को लेकर डाटा देते हैं। इसके अलावा नेविगेशन सिस्टम भी फेल हो सकता है।

कितने तरह का होता है 5जी?
5G नेटवर्क मुख्य तौर पर चार तरह की टेक्नोलॉजी Non-standalone 5G (NSA-5G), standalone 5G (SA-5G), Sub-6 GHz और mmWave पर काम करता है। किसी भी रीजन में इन चार टेक्नोलॉजी के जरिए से ही 5G नेटवर्क को यूजर्स के डिवाइस तक पहुंचाया जाता है।

Non-standalone 5G
इसे बेसिक 5G नेटवर्क बैंड कहा जाता है और शुरुआत में किसी भी रीजन में नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर्स इसी बैंड के आधार पर यूजर्स को 5G नेटवर्क उपलब्ध करवाती हैं। इसमें 4G LTE के लिए उपलब्ध इंफ्रास्ट्रक्चर को इस्तेमाल करके 5G नेटवर्क को डिप्लॉय किया जाता है। किसी भी रीजन में नेटवर्क की टेस्टिंग के लिए टेलिकॉम कंपनियां इसी स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करती हैं।

Standalone 5G
ये नेटवर्क बैंड पुराने 4G LTE नेटवर्क पर रिलाई नहीं करता है। ये खुद के क्लाउड नेटिव नेटवर्क कोर पर काम करता है। दुनिया के कई देशों में इस स्पेक्ट्रम को अडोप्ट किया है और वहां ये काम कर रहा है।

Sub-6 GHz
इसे मिड बैंड 5G स्पेक्ट्रम फ्रिक्वेंसी कहा जाता है। इसमें नेटवर्क की फ्रिक्वेंसी 6GHz से कम होती है और इसका इस्तेमाल लो बैंड टेलिकम्युनिकेशन्स कि लिए किया जाता है। चीन समेत कई देशों में इस नेटवर्क स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल किया जाता है।

mmWave
इसे हाई बैंड 5G नेटवर्क फ्रिक्वेंसी कहा जाता है। इसमें 24GHz से ऊपर की फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें ज्यादा बैंडविथ मिलता है। इसमें डाटा की स्पीड 1Gbps तक की होती है। mmWave को डिप्लॉय करने के लिए कई छोटे और लोअर रेंज के सेलफोन टॉवर का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि कवरेज को पूरा किया जा सके।

डायनैमिक नेटवर्क शेयरिंग
4G से 5G में नेटवर्क को अपग्रेड करने के लिए टेलिकॉम कंपनियां डायनैमिक नेटवर्क शेयरिंग का इस्तेमाल करती हैं। ये तकनीक NSA 5G स्पेक्ट्रम के साथ ही संभव है, क्योंकि इसमें 5G नेटवर्क एक साथ दो रेडियो फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल कर सकती है। जिसकी मदद से डाटा की स्पीड बढ़ जाएगी और डिवाइस 4G LTE के मुकाबले ज्यादा तेजी से नेटवर्क को एक्सेस कर सकेंगे।

sub-6 GHz फ्रिक्वेंसी का फायदा ये है कि ये फ्रिक्वेंसी किसी भी सॉलिड ऑब्जेक्ट जैसे कि बिल्डिंग आदि को पेनिट्रेट करके 5G नेटवर्क कनेक्टिविटी को बरकरार रखती है। इसकी वजह से इंडोर में भी आपको नेटवर्क कनेक्टिविटी मिलती रहगी।

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