(WHO हर साल 18 से 24 नवम्बर तक वर्ल्ड एंटीमाइक्रोबियल अवेयरनेस वीक मनाता है)
एंटीबायोटिक दवाएं शरीर में पनपे बैक्टीरिया को मारने की दवाइयां होती हैं, इन्हें एंटीबायोटिक भी कहा जाता है, यह एंटीबायोटिक अलग-अलग संक्रमण के इलाज में काम आती हैं, लेकिन जिस तेजी से इन दिनों डॉक्टरों द्वारा ये दवाएं दी जा रही हैं, और मरीज भी एक ही पर्चे (प्रिस्क्रिप्शन) पर ये दवाएं ले लेता है, वो भविष्य के लिए खतरनाक होने वाला है। WHO के मुताबिक एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधक के कारण हर साल करीब 7 लाख मौतें हो जाती हैं।
कोरोना काल में भी अंधाधुंध तरीके से एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया गया। यहां तक कि डॉक्टर मामूली बीमारियों में भी एंटिबायोटिक प्रिस्क्राइब कर देते हैं। जबकि एंटीबायोटिक्स के बारे में सबसे जरूरी बात यह समझना है कि ये बैक्टीरिया को मारती है न कि वायरस को।
विशेषज्ञ तो यहां तक कहते हैं कि 2030 तक मनुष्य के शरीर के लिए ये दवाएं बेअसर हो जाएगीं, यहां तक कि अगली महामारी बैक्टेरिया से संबंधित हो सकती है, ऐसे में एंटीबायोटिक दवाएं भी मरीज को बचा नहीं पाएगी।
दरअसल, एंटीबायोटिक देने के लिए कल्चर टेस्ट किया जाना जरूरी होता है, लेकिन भारत में ज्यादातर मामलों में यह टेस्ट होता ही नहीं और मरीज लगातार एंटीबायोटिक्स लेता रहता है।
क्यों दुनिया में है एंटीबायोटिक का बोलबाला?
दरअसल, एंटीबायोटिक्स से मिलने वाली ताकत और आसानी से उपलब्ध होने की वजह से इन्हें पूरी दुनिया में स्वकृति मिली हुई है। लेकिन अब ये बहुत ज्यादा इस्तेमाल की जा रही हैं। हर छोटे-मोटे रोग के लिए एंटिबायोटिक दवाएं दे दी जाती हैं, या मरीज खुद ही मेडिकल से ले आता है। रिपोर्ट्स कहती है कि एंटिबायोटिक इतनी ज्यादा मात्रा में शरीर में आ चुकी है कि अब ये बेअसर हो सकती हैं।
अमेरिका में 0.4, भारत में 1.5 प्रतिशत इस्तेताल
हेल्थ रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में एंटीबायोटिक्स के उपयोग को लेकर पॉलिसी होने के कारण वहां 0.4 प्रतिशत एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल होता है, जबकि भारत में 1.5 एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल हो रहा है, जबकि मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ और फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया ने डॉक्टर्स को 0.4 प्रतिशत से ज्यादा एंटीबायोटिक दवाएं इस्तेमाल नहीं करने के निर्देश जारी कर रखे हैं।
ड्रग रेसिस्टेंस हो जाता है मरीज
आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं की खुराक कम से कम 10 दिन के लिए होती है। लेकिन डॉक्टर मरीज को सिर्फ 3 दिन की दवा देते हैं, ऐसे में बैक्टीरिया पूरी तरह से नष्ट नहीं होता है, नतीजन डॉक्टर को फिर से एंटीबायोटिक देना पड़ती है, इससे मरीज ड्रग रेसिस्टेंस हो जाता है और बीमारी के लिए निर्धारित दवा का असर नहीं हो पाता है। वहीं ज्यादा एंटीबायोटिक खाने से शरीर कमजोर हो जाता है और रोगाणुओं में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। इसके चलते उन पर दवाओं का असर नहीं होता और बीमारी घटने की बजाए बढ़ने लगती है।
क्या होता है कल्चर टेस्ट?
खून, पेशाब, ब्लड, बलगम आदि में बैक्टीरिया की मौजूदगी और उस पर दवाओं का असर जानने के लिए कल्चर टेस्ट किया जाता है। इससे यह पता चलता है किन-किन दवाओं का असर बैक्टीरिया पर हो रहा है और किसका नहीं हो रहा। इस जांच से मरीज बेअसर एंटीबायोटिक खाने से बच जाता है। लेकिन ज्यादातर मामलों में कल्चर टेस्ट होता ही नहीं है, ऐसे में बगैर जानकारी के भी मरीज लगातार एंटिबायोटिक दवाएं लेता रहता है।
24 से ज्यादा दवाओं के खिलाफ ताकतवर हुआ बैक्टेरिया
बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए दी जाने वाली दवाएं यानी एंटीबायोटिक्स अब बेअसर होती जा रही हैं। बैक्टीरिया अपनी भूमिका और तरीका बदल रहा है, इसलिए ये दवाएं उन पर काम नहीं कर रहीं। सबसे दुखद पहलू तो यह है कि 22 ग्रुप की 118 एंटीबायोटिक दवाएं अब भी चलन में हैं। जिनमें से 24 से ज्यादा दवाओं के खिलाफ बैक्टेरिया ने प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। मतलब अब ये दवाएं बेअसर हैं।
क्या होती है एंटीबायोटिक दवाएं?
बैक्टीरिया को मारने वाली दवाइयों को एंटीबायोटिक कहते हैं। एंटीबायोटिक अलग-अलग इंफेक्शन के इलाज में काम आती है। ये एक तरह एंटीमाइक्रोबियल पदार्थ (Antimicrobial Substance) होता है जो बैक्टीरिया के खिलाफ संघर्ष करता है। यह किसी भी तरह के बैक्टीरियल संक्रमण को रोकने में मदद करता है।
कैसे काम करता है?
यह जीवाणु के कोशिका दीवार या कोशिका झिल्ली पर वार करता है। एंटीबायोटिक्स को एंटीबैक्टीरियल के नाम से भी जाना जाता है। हमारे इम्यून सिस्टम यानी रोग-प्रतिरोधक तंत्र में बैक्टीरिया के कारण हुए संक्रमण को दूर करने की ताकत होती है।
क्या हैं साइड इफैक्ट?
एंटीबायोटिक के गैर जरूरी तौर पर इस्तेमाल करने से इसके साइड इफैक्ट्स भी होते हैं। ज्यादा दवा लेने से हाजमे से जुड़े अच्छे बैक्टीरिया भी कम हो जाते हैं। जिससे डायरिया, पेट दर्द और जी मिचलाने जैसी परेशानियां हो सकती हैं।
ज्यादा एंटीबायोटिक लेने के लक्षण
उल्टी महसूस होना या चक्कर आना
डायरिया या पेटदर्द
एलर्जिक रिएक्शन
महिलाओं में वेजाइनल यीस्ट इंफेक्शन
गंभीर बीमारियां या विकलांगता।
जिन रोगों का उपचार संभव होता है, वही रोग गंभीर हो जाते हैं।
बीमारी में ठीक होने में लंबा समय लग सकता है।
किसी भी इलाज का जल्दी असर नहीं होता है।
कल्चर टेस्ट
एंटीबायोटिक दवाओं का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों समेत 15 अस्पतालों में कल्चर टेस्ट की सुविधाएं बढ़ाए जाने की योजना थी। कल्चर टेस्ट की जांच से यह पता करना आसान हो जाएगा कि मरीज की बीमारी में कौन-सी दवा असर कर रही है। अभी भी मेडिकल कॉलेजों में कल्चर टेस्ट किया जाता है पर बहुत कम मरीजों के लिए। मरीज को कई तरह की एंटीबायोटिक खिलाने के बाद जब असर नहीं होता तो कल्चर टेस्ट किया जाता है। इसकी वजह जांच की पर्याप्त सुविधाएं नहीं होना है। अब ज्यादातर मरीजों के लिए कल्चर टेस्ट किया जाएगा। एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस (प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने) रोकने के लिए बनाई गई राज्य तकनीकी समिति की बैठक में यह फैसला लिया गया था।
स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में ही यह खुलासा
मध्यप्रदेश के भोपाल के बारे में हाल ही में एक रिपोर्ट में सामने आया कि यहां एंटीबायोटिक दवाओं का तेजी से उपयोग हो रहा है। जिस वजह से शरीर में एंटी बॉडी दवाएं बेअसर हो रही हैं। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में ही यह खुलासा हुआ है। इतना ही नहीं, सब्जी और फलों में भी इन दवाओं को मिलाया जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्री प्रभु राम चौधरी ने भी इस मामले में संज्ञान लिया है। एक कार्यक्रम के माध्यम से उन्होंने इस मामले में जागरूकता लाने की बात कही है। मामले में दखल के बाद स्वास्थ्य विभाग एनएचएम के सहयोग से अब प्रदेश भर में इसे लेकर जागरूकता अभियान शुरू करेगा।