वह कहते हैं कि भाजपा ने जिस तरह शाहीन बाग और नागरिकता का मुद्दा उठाकर पूरा चुनाव लड़ा वह उसी के गले की फांस बन गया। दिल्ली के उन वोटरों को शाहीन बाग और नागरिकता के मुद्दे से कोई खास मतलब ही नहीं था जो इससे प्रभावित ही नहीं था। ऐसे वोटर जिनको शाहीन बाग के प्रदर्शन से कोई परेशानी नहीं थी और उस पर इस मुद्दे का कोई प्रभाव भी नहीं पड़ा।
वह कहते हैं कि दूसरी तरफ नागरिकता के मुद्दें को लेकर भी कोई डर, भय या उन्माद का माहौल नहीं था। वह कहते हैं कि भाजपा ने जिस तरह चुनाव में इसको मुद्दा बनाया है उसके साफ लगता है कि वह अपने प्रोपेगेंडा का शिकार बन गई। भाजपा को लगा कि इस संवदेनशील मुद्दें पर लोग डिवाइड हो जाएंगे लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं।