तारों के टूटने की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाते हैं न्यूट्रिनों कण

Webdunia
शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020 (12:13 IST)
नई दिल्ली, (इंडिया साइंस वायर) ब्रह्मांड में प्रचुरता से पाए जाने वाले न्यूट्रिनों कण के प्रभाव से तारे किस प्रकार विस्फोट के साथ टूट जाते हैं, यह गुत्थी अब शीघ्र ही सुलझ सकती है।

मुंबई स्थित टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) के वैज्ञानिक डॉ. बासुदेब दासगुप्ता का अध्ययन इस दिशा में सहायक सिद्ध हुआ है। सैद्धांतिक भौतिकी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ दासगुप्ता को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) की स्वर्ण जयंती फेलोशिप भी मिली है। डॉ. दासगुप्ता का शोध न्यूट्रिनों की क्वांटम अवस्था के अध्ययन के अतिरिक्त तारों के टूटने में न्यूट्रिनों की भूमिका और प्रयोग के लिए उनकी पहचान करने पर आधारित है।

न्यूट्रिनो अत्यंत सूक्ष्म परमाणु कण होते हैं। पदार्थों के साथ सीमित सक्रियता के कारण इनकी पहचान करना मुश्किल होता है। फिर भी तारों में होने वाले विस्फोट के अध्ययन में में इनकी भूमिका अहम है। ये ना केवल तारों में विस्फोट कर उनके टूटने का कारण बनते हैं बल्कि साथ ही साथ शोधकर्ताओं को महाविस्फोट की पूर्व चेतावनी भी देते हैं जिससे उन्हें अध्ययन के लिए तैयार हो जाने का संकेत मिल जाता है।

‘फिजिकल रिव्यु डी’ में प्रकाशित डॉ दासगुप्ता के अध्ययन का मुख्य बिंदु है ‘फ़ास्ट फ्लेवर कन्वर्जन’ के प्रभाव का विश्लेषण, जो तारों में उनके न्युट्रीनो घनत्व के साथ समानुपातिक रूप से घटित होता है। इस अधययन को डॉ दासगुप्ता ने अपने छात्रों के साथ मिलकर एक साधारण मॉडल के जरिये समझाया है।

इस मॉडल में बताया गया है कि किस प्रकार न्यूट्रिनो के कण एक साथ मिलकर द्रुत गति से  कंपन करते हैं। कंपन की वजह से कई न्यूट्रिनो मिश्रित हो जाते हैं। मिश्रण की इस प्रक्रिया में न्यूट्रिनो, तारों के भीतर बड़ी मात्रा में ऊष्मा संचित करते हैं. यही कारण है कि तारों के महाविस्फोट यानी सुपरनोवा में बड़ी मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है। डॉ दासगुप्ता का यह अध्ययन और उनके आगामी प्रयोग लगभग 100 वर्षों से चले आ रहे इस प्रश्न को सुलझाने में सहायक हो सकते हैं कि आखिर तारे टूटते क्यों हैं?

डॉ. बासुदेब दासगुप्ता ने ब्रहमांड के अदृश्य पदार्थ (डार्क मैटर) की प्रकृति की पहचान करने में भी अपना योगदान दिया है। इसमें सैद्धांतिक और प्रयोगात्मक विधियाँ शामिल हैं। उनके हाल के कार्यों से न्यूट्रिनो एवं पॉजिट्रॉन आधारित वो बाध्यताएं सामने आई हैं जो इस बात की सम्भावना को नकारती हैं कि विशाल डार्क मैटर के निर्माण में बिग-बैंग जन्य सूक्ष्म ब्लैक होल की भूमिका होती है।

वर्ष 2019 में डॉ. दासगुप्ता को प्रतिष्ठित इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरिटिकल फिजिक्स पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार ट्राइस्टी स्थित अबदुस सलाम इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरिटिकल फिजिक्स द्वारा सुब्रमण्यम चंद्रशेखर के सम्मान में दिया जाता है।

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