ब्रह्मोस मिसाइल प्रोजेक्ट के संस्थापक सीईओ और एमडी रहे डॉ. एएस पिल्लई ने कहा कि इस दिशा में काम किया जा रहा है कि भगवान कृष्ण के सुदर्शन चक्र की तरह ब्रह्मोस-2 अपने लक्ष्य पर निशाना साधकर वापस लौट आए और इसे पुन: प्रयोग भी किया जा सके। पद्मभूषण से सम्मानित डॉ. पिल्लई आज यहां दिल्ली-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित जीएलए विश्वविद्यालय के छठे दीक्षांत समारोह में आए थे।
उन्होंने कहा, सुपरसोनिक प्रक्षेपास्त्र के बाद भारत हाइपरसोनिक प्रक्षेपास्त्र विकसित कर रहा है। जो उससे भी 9 गुना ज्यादा शक्तिशाली होगा। इसे किसी भी खोजी उपकरण से पकड़ा भी नहीं जा सकेगा। वैज्ञानिक प्रयास कर रहे हैं कि यह प्रक्षेपास्त्र एक बार लक्ष्यभेद करने के बाद पुनः उपयोग में लाया जा सके।
इसरो में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) टीम के सदस्य रहे वैज्ञानिक ने बताया, इस प्रक्षेपास्त्र की सबसे बड़ी उपलब्धि यह होगी कि इसका संचालन केवल सोचने भर से किया जा सकेगा। इससे इस प्रक्षेपास्त्र, इसके प्रोग्राम अथवा संचालन करने वाले कम्प्यूटर को किसी भी अत्याधुनिक डिवाइस के सहारे खोजा नहीं जा सकेगा।
उन्होंने दूसरे बड़े प्रोजेक्ट की जानकारी देते हुए बताया, शांतिप्रिय कार्यों में परमाणु ऊर्जा का उपयोग कर बिजली पैदा करने के मामले में हीलियम-3 नामक ऐसा पदार्थ खोजा गया है जो यूरेनियम के समान रेडियो एक्टिव भी नहीं है और पर्यावरण अथवा जीव-जंतुओं को किसी भी प्रकार का नुकसान पहुंचाए बिना पूरे देश की जरूरत आसानी से पूरी कर सकता है।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, भारतीय सेना बहुत शक्तिशाली है। बेशक, उनके पास कुछ आयुध उपकरणों की कमी हो सकती है। लेकिन वे उसे पूरा करने में सक्षम हैं। बेहतर होगा कि हम इन आयुधों का निर्माण देश में ही, और देश की तकनीकी से ही करें। तभी हमारा ‘मेक इन इण्डिया’ का सपना पूरी तरह से पूरा होगा। (भाषा)