फैज अहमद फैज की नज्म को हिंदू विरोधी बताने को मशूहर गीतकर जावेद अख्तर मानसिक दिवालियापन करार देते है। वह इसे बेतुका बताते हुए कहते हैं कि फैज वास्तव में तानाशाह के विरोधी थे और लोग उन्हें एंटी पाकिस्तानी कहते थे। फैज को हुक्मरान के विरोध के चलते ही अपने जीवन का बहुत सा वक्त पाकिस्तान के बाहर गुजारना पड़ा। वह कहते हैं कि ‘हम देखेंगे’ नज्म उन्होंने पाकिस्तान के तानाशाह और राष्ट्रपति जियाउल हक के बारे में लिखा था।
वहीं फैज की कविता हिंदू विरोधी बताने को गलत बताते हुए मशूहर शायर मंजर भोपाली कहते हैं कि बहुत सी ऐसी नज्में होती है जो हालात पर लिखी जाती है और उसके एक हजार मतलब निकाले जाते है। वह कहते हैं कि अगर किसी शायर की नज्म आज के हालात पर ठीक बैठती है तो उसकी जिम्मेदारी किसी शायर की नहीं होती है। वह कहते हैं कि एक शायर जब लिखा है तो वर अपने अतीत को भी देखता,हाल पर भी नजर रखता और अपने मुस्तबकिल के बारे में भी सोचता है। वह फैज की नज्म को हिंदू विरोधी बताने को सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं कि ऐसा हो ही नहीं सकता। वह कहते हैं कि फैज साहब कभी भी किसी धर्म या मजहब को ध्यान में रखकर कोई भी नज्म नहीं लिखते थे, फैज और फिराक का जामना वह था जब हिंदू और मुस्ल्मि की बात न होकर पूरी लड़ाई अग्रेजों से थी।
वह कहते हैं कि आज रोजगार और मंहगाई की बात न होकर केवल लोग अपने धर्म की बात में फंसे रहे इसके लिए हुक्मरान जानबूझकर ऐसे विवाद खड़े कर रहे है। मंजर भोपाली कहते हैं कि इसे हुक्मरान का डर बताते हुए कहते हैं कि दुनिया में सबसे डरने वाले व्यक्ति हुकूमत करने वाला हाकिम होता है उसको अपनी सत्ता के जाने का डर और लोगों को अपने खिलाफ सड़क पर उतरने का डर हमेशा सताता रहता है इसलिए वह हमेशा खौफजदा रहता है। वह कहते हैं आज फैज की नज्म को हिंदू विरोधी बताना हुक्मरान का एक डर भी हो सकता है।
क्या है पूरा विवाद - जामिया में छात्रों पर लाठीचार्ज के विरोध में 17 दिसंबर को कानपुर आईआईटी में छात्रों का विरोध प्रदर्शन हुआ था जिसमें छात्रों ने फैज अहमद फैज की मशूहर नज्म ‘हम देखेंगे’ को गाया था। इसके बाद अब पूरे मामले की जांच के लिए आईआईटी ने एक समिति की गठन किया है जो तीन बिंदुओं पर जांच करेगी। समिति जिन तीन बिंदुओं पर जांच करेगी उसमें धारा 144 तोड़कर जुलूस निकालना,सोशल मीडिया पर छात्रों की पोस्ट और तीसरा फैज अहमद फैज की नज्म हिंदू विरोधी है या नहीं।
कब लिखी थी नज्म - फैज अहमद फैज की जिस नज्म को हिंदू विरोधी बताकर जांच करने की बात कही जा रही है वह उन्होंने 40 साल पहले पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के विरोध में लिखी थी। फैज के निधन के बाद 1985 में लाहौर के अलहमरा ऑडिटिरोयिम में गायिका इकबाल बानो ने 50 हजार लोगों के सामने इस नज्म को गाया था।