नई दिल्ली। देश के 11 राज्यों में कैश की किल्लत के बीच सरकार और रिजर्व बैंक ने दावा किया है कि देश में कैश की कमी नहीं है और एटीएम में नोट न होने की समस्या अस्थायी और तकनीकी कारणों से है। लेकिन एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट ने अनुसार बाजार में जितना कैश का फ्लो होना चाहिए, उसमें 70,000 करोड़ रुपए की अभी भी कमी है। ऐसी हालत में नकदी संकट से जूझ रहे लोगों को राहत पहुंचाने में सरकार और आरबीआई को कम से कम दो-तीन सप्ताह लग सकते हैं। और यह भी संभव है कि लोगों को पूरी राहत मिलने में डेढ़ से दो माह भी लग जाएं।
जानकार अर्थशास्त्रियों का मानना है कि बाजार की मांग पूरी करने के लिए अतिरिक्त 70 हजार करोड़ से लेकर एक लाख करोड़ रुपए तक के नोट छापने में वक्त लगेगा। हालांकि आरबीआई दावा करती है लेकिन संभव है कि खुद आरबीआई के पास भी बैंकों को देने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं हो। इसलिए छपाई में इतना वक्त लग सकता है। आरबीआई की ओर से कहा जाता है कि बैंकों की प्रिंटिंग प्रेसों में छपाई का काम जारी है लेकिन बीच-बीच में यह समाचार भी आते हैं कि कुछेक जगहों पर छपाई नहीं हो पा रही है क्योंकि वहां स्याही नहीं है।
एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वित्त वर्ष 2018 में 10.8 पर्सेंट नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ के आधार पर मार्च तक लोगों के पास 19.4 लाख करोड़ रुपए की करंसी होनी चाहिए थी, लेकिन असल में करंसी 1.9 लाख करोड़ रुपए कम थी। हालांकि डिजिटल तरीकों से कम से कम 1.2 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन हो सकता है लेकिन फिर भी करीब 70000 करोड़ रुपए की कमी बनी हुई है।
सरकार ने कहा है कि वह 500 रुपए के नोटों की प्रिंटिंग पांच गुना बढ़ाएगी। भारत में चार सिक्यॉरिटी प्रिंटिंग प्रेस हैं। मैसूर और सालबनी के प्रेस आरबीआई के पूर्ण स्वामित्व वाली सब्सिडियरी भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड चलाती है। इन दोनों में 500 रुपए के नोट छापे जाते हैं पर अगर दोनों शिफ्ट्स में काम हो तो ये दोनों प्रेस हर साल बैंक नोट के 1600 करोड़ पीस ही छाप सकते हैं।
यह भी मान लिया जाए कि 70 हजार करोड़ रुपए की अनुमानित कमी को सरकार अगर केवल 500 रुपए के नोटों की छपाई से पूरी करेगी तो देश को लगभग 140 करोड़ अतिरिक्त बैंक नोटों की जरूरत होगी। ऐसे में मैसूर और सालबनी के छापाखानों को इन्हें छापने में कम से कम दो-तीन हफ्ते लगेंगे या संभव है कि और भी अधिक समय लग सकता है।