शुरू हुआ चमलियाल मेला, लगातार 5वीं बार नहीं बंटेगा सीमा पर ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ दोनों मुल्कों में?

सुरेश एस डुग्गर
गुरुवार, 23 जून 2022 (09:13 IST)
जम्मू। चमलियाल सीमा चौकी पर स्थित बीएसएफ के अधिकारियों द्वारा बाबा चमलियाल की दरगाह पर तड़के चादर चढ़ाने के साथ ही मेले का आगज तो हुआ पर देर रात तक पाक रेंजरों द्वारा इसमें शिरकत करने के न्यौते को स्वीकार न किए जाने के कारण उनकी उपस्थिति इस बार न होने का ही परिणाम होगा कि लगातार पांचवें साल पाकिस्तानी जनता बाबवा के ‘शक्कर’ व ‘शरबत’ के प्रसाद से मरहूम रहेगी।
 
रामगढ़ सेक्टर में चमलियाल पोस्ट पर आज आयोजित किए जाने वाले के मेले में इस बार भी लगातार 5वीं बार दोनों मुल्कों के बीच ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ के बंटने की उम्मीद कम ही है। कारण स्पष्ट है। अभी तक पाक रेंजरों ने इसकी बाबत बुलाई गई बैठक में शिरकत करने के बीएसएफ के न्यौते का भी कोई जवाब नहीं दिया।
 
वर्ष 2020 और 2021 में कोरोना के कारण इस मेले को रद्द कर दिया गया था और वर्ष 2018 व 2019 में पाक रेंजरों ने न ही इस मेले में शिरकत की थी और न ही प्रसाद के रूप में ‘शक्कर’ और ’शर्बत’ को स्वीकारा था क्योंकि वर्ष 2018 में 13 जून के दिन पाक रेंजरों ने इसी सीमा चौकी पर हमला कर चार भारतीय जवानों को शहीद कर दिया था तथा पांच अन्य को जख्मी। तब भारतीय पक्ष ने गुस्से में आकर पाक रेंजरों को इस मेले के लिए न्यौता नहीं दिया था। पर अबकी बार वे इसका जवाब ही नहीं दे रहे हैं।
 
नतीजतन यही लगता है कि देश के बंटवारे के बाद से चली आ रही परंपरा इस बार भी टूट जाएगी। वैसे यह कोई पहला अवसर नहीं है कि यह परंपरा टूटने जा रही हो बल्कि अतीत में भी पाक गोलाबारी के कारण कई बार यह परंपरा टूट चुकी है। नतीजतन इस बार भी परंपराओं पर राजनीति के साथ-साथ  सीमा के तनाव का भयानक साया पड़ गया है।
 
यही कारण है कि पिछले लगभग 70 सालों से पाकिस्तानी श्रद्धालु जिस ’’शक्कर‘‘ तथा ’’शर्बत‘‘ को भारत से लेकर अपनी मनौतियों के पूरा होने की दुआ मांगते आए हैं इस बार उन्हें ये दोनों नसीब नहीं हो पाएंगें। और यह भी पक्का हो गया है कि सीमा पर पाक रेंजरों के अड़ियलपन के कारण यह परंपरा जीवित नहीं रह पाएगी।
 
यह कथा है उस मेले की जो देश के बंटवारे से पूर्व ही से चला आ रहा है। देश के बंटवारे के उपरांत पाकिस्तानी जनता उस दरगाह को मानती रही जो भारत के हिस्से में आ गई। यह दरगाह, जम्मू सीमा पर रामगढ सेक्टर में चमलियाल सीमा चौकी पर स्थित है। इस दरगाह मात्रा की झलक पाने तथा सीमा के इस ओर से पाकिस्तान भेजे जाने वाले ’’शक्कर‘‘ व ’’शर्बत‘‘ की दो लाख लोगों को प्रतीक्षा होती है। हालांकि बीच में दो-तीन साल उन्हें यह प्राप्त नहीं हो पाए थे।
 
चमलियाल सीमा चौकी पर बाबा दलीप सिंह मन्हास की दरगाह है। उसके आसपास की मिट्टी को ‘शक्कर‘ के नाम से पुकारा जाता है तो पास में स्थित एक कुएं के पानी को ’शर्बत‘ के नाम से। जीरो लाइन पर स्थित इस चौकी पर जो मजार है वह बाबा की समाधि है जिनके बार में यह प्रचलित है कि उनके एक शिष्य को एक बार चम्बल नामक चर्म हो गया था और बाबा ने उसे इस स्थान पर स्थित एक विशेष कुएं से पानी तथा मिट्टी का लेप शरीर पर लगाने को दिया था। जिसके प्रयोग से शिष्य ने रोग से मुक्ति पा ली थी। इसके बाद बाबा की प्रसिद्ध बढने लगी तो गांव के किसी व्यक्ति ने उनकी गला काट कर हत्या कर डाली। बाद में हत्या वाले स्थान पर उनकी समाधि बनाई गई। प्रचलित कथा कितनी पुरानी है जानकारी नहीं है।
 
मेले का एक अन्य मुख्य आकर्षण भारतीय सुरक्षाबलों द्वारा ट्रालियों व टैंकरों में भरकर ‘शक्कर’ व ‘शर्बत’ को पाक जनता के लिए भिजवाना होता है। इस कार्य में दोनों देशों के सुरक्षा बलों के अतिरिक्त दोनों देशों के ट्रैक्टर भी शामिल होते हैं और पाक जनता की मांग के मुताबिक उन्हें प्रसाद की आपूर्ति की जाती रही है जिसके अबकी बार संपन्न होने की कोई उम्मीद नहीं है। यह लगातार पांचवी बार होगा की न ही पाक रेंजर पवित्र चाद्दर को बाबा की दरगाह पर चढ़ाने के लिए लाएंगें जिसे पाकिस्तानी जनता देती है और न ही वे प्रसाद को स्वीकार करेंगें।

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