Chirag Paswan's statement caused a stir: केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान (Chirag Paswan( ने पटना में कहा कि वे अपने दिवंगत पिता रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) द्वारा स्थापित मिसाल को ध्यान में रखते हुए अपने सिद्धांतों से समझौता करने के बजाय मंत्री पद छोड़ना पसंद करेंगे। उनके इस बयान से हलचल मच गई है।
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने यहां सोमवार शाम पार्टी के अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ के एक समारोह में यह टिप्पणी की और यह भी कहा कि जब तक नरेन्द्र मोदी मेरे प्रधानमंत्री हैं, तब तक हम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में रहेंगे।ALSO READ: Jharkhand Elections : चिराग पासवान का ऐलान, झारखंड में चुनाव लड़ेगी लोजपा
उनकी टिप्पणी कि 'मैं अपने पिता की तरह मंत्री पद छोड़ने में संकोच नहीं करूंगा' के बारे में पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए चिराग ने दावा किया कि वे कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के बारे में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि मेरे पिता भी संप्रग सरकार में मंत्री थे और उस समय बहुत सी ऐसी चीजें हुईं, जो दलितों के हितों में नहीं थीं। यहां तक कि बाबा साहब आंबेडकर की तस्वीरें भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में नहीं लगाई जाती थीं इसलिए हमने अपने रास्ते अलग कर लिए।ALSO READ: मोदी के हनुमान के तीखे तेवर, जातिगत जनगणना को लेकर चिराग पासवान का बड़ा बयान
चिराग पासवान के बारे में माना जाता है कि उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने पिता को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राजग के साथ फिर से गठबंधन करने के लिए सहमत कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मोदी की प्रशंसा की : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करते हुए पासवान ने कहा कि मौजूदा सरकार दलितों के बारे में उनकी चिंताओं के प्रति संवेदनशील रही है और उन्होंने अपनी बात को पुष्ट करने के लिए नौकरशाही में 'क्रीमी लेयर' और 'लेटरल एंट्री' (सीधी भर्ती) पर केंद्र के रुख का उदाहरण दिया। हालांकि राजग और 'इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया) के सूत्रों का मानना है कि पासवान के भाषण में बाद में दिए गए उनके स्पष्टीकरण से कहीं अधिक बयानबाजी थी।
दोनों प्रतिद्वंद्वी गठबंधनों के सूत्रों का यह भी मानना है कि चिराग के पिता के इस्तीफे का मुद्दा उठाना कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के लिए शर्मिंदगी की बात है, क्योंकि अटल बिहारी वाजपेई सरकार के दौरान ही रामविलास पासवान ने गुजरात के 2002 के दंगों के विरोध में अपना कैबिनेट पद छोड़ दिया था। इसके बाद वे संप्रग में शामिल हो गए और पांच साल तक मंत्री पद पर रहे।ALSO READ: चिराग पासवान फिर बने लोजपा के अध्यक्ष, कार्यकारिणी की बैठक में हुआ फैसला
रामविलास पासवान 2009 में अपनी लोकसभा सीट हार गए और मनमोहन सिंह के दूसरे मंत्रिमंडल में उन्हें जगह नहीं मिली। सूत्रों का यह भी मानना है कि राहत कार्यों की निगरानी के लिए बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा कर रहे चिराग पासवान अपना जनाधार मजबूत करने और भाजपा की छाया से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं।
इसके अलावा यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि चिराग पासवान ने अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा नेतृत्व को यह जताने की कोशिश की है कि वे अपने चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ भाजपा नेतृत्व की नजदीकियों से खुश नहीं हैं। पारस ने चिराग के दिवंगत पिता की लोक जनशक्ति पार्टी को तोड़ दिया था।(भाषा)