नई दिल्ली। मोदी सरकार सोमवार से शुरू होने जा रहे संसद के शीतकालीन सत्र में विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) विधेयक को पारित कराने पर जोर दे सकती है। विधेयक में पड़ोसी देशों से आने वाले गैर-मुस्लिम प्रवासियों को राष्ट्रीयता प्रदान करने का प्रावधान है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सरकार ने इस सत्र के कामकाज में इस विधेयक को सूचीबद्ध किया है। भाजपा नीत राजग सरकार ने पिछले कार्यकाल में भी विधेयक पेश किया था लेकिन विपक्षी दलों के कड़े विरोध के कारण इसे पारित नहीं करा सकी। विपक्षी दलों ने विधेयक को धार्मिक आधार पर भेदभावपूर्ण बताया था।
पिछली लोकसभा के भंग होने के बाद विधेयक निष्प्रभावी हो गया था। इस विधेयक के कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल की बजाय महज 6 साल भारत में गुजारने और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी।
असम और पूर्वोत्तर के दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों अरुणाचल प्रदेश के पेमा खांडू और मणिपुर के एन बीरेन सिंह ने विवादास्पद नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में अपनी आवाज उठाई और राज्यसभा में इसे पारित नहीं करने की गृहमंत्री राजनाथ सिंह से अपील की।
भाजपा के दोनों मुख्यमंत्रियों ने 30 मिनट की बैठक के दौरान गृहमंत्री को पूर्वोत्तर की मौजूदा स्थिति के बारे में अवगत कराया, जहां इस विधेयक के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
एक अधिकारी ने बताया कि दोनों मुख्यमंत्रियों ने गृहमंत्री से अनुरोध किया कि पूर्वोत्तर के लोगों को नागरिकता संशोधन विधेयक पर राजी करने से पहले इसे पारित नहीं कराया जाए। साथ ही उन्होंने पूर्वोत्तर के लोगों की सांस्कृतिक एवं भाषाई पहचान के संरक्षण की भी मांग की।
अधिकारी ने बताया कि गृहमंत्री ने मुख्यमंत्रियों को चिंता न करने को कहा और आश्वासन दिया कि पूर्वोत्तर के मूल निवासियों के अधिकारों को कमजोर नहीं किया जाएगा।