इस घटनाक्रम के संबंध में सवाल करने पर कांग्रेस में संचार विभाग के प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि यह चुनाव आयोग का काम नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसी नौकरशाही वाली सोच होती तो पिछले दशकों में कल्याण और सामाजिक विकास की कोई योजना धरातल पर उतर कर सफल नहीं हुई होती। उन्होंने कहा कि यह प्रतिस्पर्धी राजनीति की भावना के खिलाफ है और यह भारत के लोकतंत्र के ताबूत में और एक कील साबित होगा।
एक पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त के हवाले से समाचार एजेंसी पीटीआई ने कहा कि मुफ्त उपहार बनाम कल्याणकारी कदम वाले मुकदमे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद यह प्रस्ताव लाया जाना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त में कहा था कि इस मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है और इसे तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए।
उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग ने सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों से कहा है कि वे चुनावी वादों को पूरा करने को लेकर वित्तीय स्थिति के संबंध में मतदाताओं को सही जानकारी उपलब्ध कराएं क्योंकि आधी-अधूरी जानकारी का दूरगामी प्रभाव हो रहा है। आयोग ने राजनीतिक दलों से 19 अक्टूबर तक जवाब देने को कहा है।