उन्होंने सवाल किया कि जनगणना में जाति के प्रश्नों को जोड़ने को लेकर सरकार का क्या विचार है, जैसा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य सभी राजनीतिक दलों द्वारा मांग की जा रही है। रमेश ने कहा कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की विस्तृत गणना 1951 से हर 10 साल में होती रही है। अब अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अन्य जातियों की भी ऐसी ही विस्तृत गणना की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि जाति आधारित जनगणना के माध्यम से ही शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में पूरी तरह से सार्थक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है। रमेश ने कहा कि 'नॉन-बायोलॉजिकल' प्रधानमंत्री जनगणना में देरी क्यों कर रहे हैं जिसमें जाति आधारित गणना भी होगी?(भाषा)