मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में फेल होने पर 10वीं की छात्रा ने फांसी लगाकर की खुदकुशी की, ग्वालियर में 12वीं की छात्रा ने फेल होने पर फांसी लगाकर आत्महत्या की, जबलपुर में भी सप्लीमेंट्री आने पर एक छात्र ने मौत को गले लगाया। दरअसल, परीक्षा परिणामों के बाद इस तरह की खबरों की बाढ़ सी आ जाती है। विद्यार्थी असफलता से निराशा होकर या फिर अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने पर निराशा होकर अवसाद में मौत को गले लगा लेते हैं।
जीवन अनमोल है, ईश्वर का दिया गया सर्वश्रेष्ठ वरदान है, इसे थोड़े से अवसाद या निराशा में खत्म करना देना तो कायरता ही तो है। ठीक है यदि हमें परीक्षा में असफलता मिली है तो क्या हुआ? हमें इस असफलता से निराश होने के बजाय पूरी मेहनत के साथ अगले वर्ष की परीक्षा के लिए जुट जाना चाहिए। हो सकता है बड़ी सफलता हमारा इंतजार कर रही है। क्योंकि कोई भी परिणाम अंतिम नहीं होता, किन्तु जीवन को फिर से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
बच्चों के इस कदम से उनके माता-पिता पर क्या बीतती होगी, जिन्होंने उसे प्राप्त करने के लिए न जाने कितने मंदिरों में माथा टेका होगा, कई दरगाहों पर दुआएं की होंगी, किसी ने चर्च में प्रार्थनाएं की होंगी, जब वही बचचा मौत को गले लगा लेता है तो उनके दुख की कल्पना ही करना संभव नहीं है। लेकिन, अभिभावकों को भी चाहिए कि वे बच्चों पर न तो अनावश्यक बोझ डालें न ही अपने सपनों को थोपें क्योंकि जब जीवन ही नहीं रहेगा तो सपने किसके लिए देखेंगे। विद्यार्थियों को सोचना चाहिए कि ईश्वर प्रदत्त जीवन को खत्म करने का अधिकार किसी को भी नहीं है, आपको भी नहीं।