दिपास के एक वैज्ञानिक ने बताया कि अब तक दंगे आदि के समय आरएएफ की महिला जवान भी पुरुषों वाले बॉडी प्रोटेक्टर ही पहनती थीं जो पुरुषों की शारीरिक संरचना के हिसाब से बना हुआ है। इससे उन्हें कई बार दिक्कत होती थी और वे इन्हें उतार कर रख देती थीं। आरएएफ के अनुरोध पर दिपास में महिलाओं के फुल बॉडी प्रोटेक्टर पर काम शुरू हुआ।
वैज्ञानिक ने बताया कि डीआरडीओ ने भारतीय महिलाओं की शारीरिक संरचना के हिसाब से बॉडी प्रोटेक्टर विकसित किया है। इसमें शरीर के उपरी हिस्से के लिए प्रोटेक्टर का अलग हिस्सा है। इसके अलावा बाहों, घुटनों, पिंडली आदि के लिए अलग—अलग हिस्से तैयार किए गए हैं। जरूरत के हिसाब से जवान इनका इस्तेमाल कर सकती हैं। बॉडी प्रोटेक्टर आग या नुकीलों चीजों से भी बचाव करता है और उनका इस पर कोई असर नहीं होता। यह भींगता भी नहीं जिससे बारिश या पानी की बौछार में भी इसका वजन नहीं बढ़ता।
उन्होंने बताया कि पहले महिला जवानों को जोखिम वाले इलाकों में नहीं भेजा जाता था इसलिए इसकी जरूरत नहीं महसूस की गयी। आरएएफ से अनुरोध मिलने के बाद इसे बनाने में छह महीने का समय लगा। अभी आरएएफ बॉडी प्रोटेक्टर का ट्रायल कर रहा है। साथ ही पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया गया है और पेटेंट मिलने के बाद औद्योगिक उत्पादन सस्ता हो जाएगा। (वार्ता)