जनादेश का क्या हुआ? : वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने शिवसेना की ओर से पक्ष रखते हुए कहा कि जनादेश का क्या हुआ? 10वीं अनुसूची से उलट काम किया गया और इसका दलबदल के लिए उकसाने में इस्तेमाल किया गया। पार्टी द्वारा नामित आधिकारिक सचेतक से इतर किसी अन्य सचेतक को अध्यक्ष की ओर से मान्यता मिलना दुर्भावनापूर्ण है। सिब्बल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय जब मामलों की सुनवाई कर रहा था तब महाराष्ट्र के राज्यपाल को नई सरकार को शपथ नहीं दिलानी चाहिए थी।
लोकतंत्र के लिए खतरा : इससे पहले उद्धव ठाकरे गुट ने कोर्ट से मांग की थी कि शिंदे गुट के 16 विधायकों को अयोग्य घोषित किया जाए। सिब्बल ने कहा कि जिस तरह से महाराष्ट्र सरकार को गिराया गया था, वह लोकतंत्र का मजाक था। उन्होंने कहा कि यह सरकार गैरकानूनी है और इसे बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। सिब्बल ने कहा कि इस तरह राज्य सरकारों को गिराया जाता है तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा है। वहीं शिंदे गुट का मानना था कि यह मामला दलबदल जैसा नहीं है। यह तो पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र का मसला है।