History of Delhi Assembly elections: भारत की राजधानी दिल्ली। देश की राजनीति का सबसे बड़ा अड्डा दिल्ली। दिल्ली एक बार फिर सुर्खियों में है। दरअसल, दिल्ली में विधानसभा चुनाव (Delhi assembly election 2025) बिसात एक बार फिर बिछ गई है। दिल्ली में पहली राज्य विधानसभा का गठन 1952 में हुआ था। उसी वर्ष पहली बार विधानसभा चुनाव भी हुआ। पहली विधानसभा में 48 सदस्य थे। बाद में इनकी संख्या बढ़कर 70 हो गई। 1952 के बाद अगले विधानसभा चुनाव के लिए दिल्ली को करीब 37 वर्ष तक इंतजार करना पड़ा था। दिल्ली विधानसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो यहां सबसे लंबे समय तक कांग्रेस ने शासन किया है।
34 साल के ब्रह्म प्रकाश बने मुख्यमंत्री : दिल्ली में विधानसभा का पहला चुनाव 1952 में हुआ था। पहले चुनाव में कांग्रेस विजयी रही थी। कांग्रेस को बहुमत मिलने के बाद महज 34 वर्ष की उम्र में ब्रह्म प्रकाश यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 1955 में यादव के स्थान पर गुरमुख निहाल सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। वे 1956 तक इस पद पर रहे। इसी साल राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के बाद दिल्ली का राज्य का दर्जा समाप्त कर इसे केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। इसके बाद यहां विधानसभा भी समाप्त कर दी गई। दिल्ली पर केंद्र सरकार का प्रत्यक्ष शासन लागू हो गया।
दिल्ली में 1956 में विधानसभा तो खत्म कर दी गई, लेकिन बीच-बीच में फिर से विधानसभा की मांग उठती रही। सितंबर 1966 में विधानसभा की जगह 56 निर्वाचित और 5 मनोनीत सदस्यों वाली एक मेट्रोपोलिटन काउंसिल अस्तित्व में आई। दिल्ली के शासन में इस परिषद की भूमिका केवल एक सलाहकार की थी। परिषद के पास कानून बनाने की कोई शक्ति नहीं थी। बालाकृष्णन समिति की सिफारिश के बाद संसद ने संविधान (69वां संशोधन) अधिनियम, 1991 पारित किया। जिसमें दिल्ली में विधानसभा स्थापित करने की बात भी कही गई थी। 1992 में परिसीमन के बाद दिल्ली में एक बार फिर विधानसभा चुनाव का रास्ता साफ हो गया।
1993 में विधानसभा की फिर से स्थापना : दिल्ली में करीब 37 साल के अंतराल के बाद एक बार फिर विधानसभा चुनाव हुए। दूसरी विधानसभा के लिए हुए इस चुनाव में भाजपा ने जीत हासिल की। लेकिन, 5 साल के कार्यकाल में भाजपा ने 3 मुख्यमंत्री दिए। भाजपा के पहले मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना बने। उनके बाद साहब सिंह वर्मा की ताजपोशी हुई। 1998 के चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने अपनी दिग्गज महिला नेता सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन बावजूद इसके पार्टी को सफलता नहीं मिली।
शीला का सबसे लंबा कार्यकाल : 1998 के चुनाव में दिल्ली की राजनीति पूरी तरह बदल गई। कांग्रेस की जीत के बाद शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं। इसके बाद वे लगातार (2003, 2008) दो बार और दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। शीला दीक्षित के कार्यकाल में दिल्ली मेट्रो परियोजना समेत अन्य विकास कार्य हुए। मेट्रो ने राजधानी की यातायात व्यवस्था को सुधारने में अहम भूमिका निभाई। हालांकि, 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़े घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों ने शीला सरकार की छवि को धूमिल किया। इसका सीधा असर 2013 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला।
केजरीवाल युग की शुरुआत : भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन से उपजी अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने 2013 के विधानसभा चुनाव में बड़ी सफलता हासिल की। आप ने पहले ही चुनाव में 28 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस (8) का पूरी तरह सफाया हो गया। भाजपा 32 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन कांग्रेस के सहयोग से केजरीवाल मुख्यमंत्री बन गए। हालांकि यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई।
आप की आंधी : 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दल आप की आंधी में उड़ गए। इस चुनाव में केजरीवाल की पार्टी ने 67 सीटें जीतकर राजनीतिक पंडितों को भी अचरज में डाल दिया। कांग्रेस एक सीट भी नहीं जीत पाई, जबकि भाजपा 3 सीटों पर सिमट गई। केजरीवाल एक बार फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। 2020 में एक बार फिर आप की आंधी चली। आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव में 62 सीटें जीतीं। कांग्रेस एक बार फिर शून्य से आगे नहीं बढ़ पाई। भाजपा ने जरूर 8 सीटें जीतीं।
दिल्ली विधानसभा के इतिहास में मुख्यमंत्री के रूप सबसे लंबा कार्यकाल कांग्रेस नेता शीला दीक्षित के नाम पर है। वे 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं, जबकि सबसे कम सुषमा स्वराज का कार्यकाल रहा। दूसरे नंबर पर अरविन्द केजरीवाल हैं, जो करीब 10 साल तक मुख्यमंत्री पद पर रह चुके हैं। यदि 2025 के चुनाव में भी आप चुनाव जीतने में सफल रहती है तो केजरीवाल शीला दीक्षित का भी रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala