जगत प्रकाश नड्डा निर्विरोध भाजपा के 11वें राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। बतौर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की ताजपोशी जितनी आसानी से हुई उनकी आगे की सियासी राह उतनी ही चुनौतीपूर्ण होने वाली है। नड्डा ने ऐसे समय पार्टी की बागडोर संभाली है जब उसे राज्यों में लगातार हार का सामना करना पड़ा है वहीं उसके गठबंधन के सालों पुराने साथी उससे छिंटक कर विरोधी खेमे में जाने लगे है। इसके साथ ही नड्डा के कार्यकाल के दौरान भाजपा का उन राज्यों में विधानसभा चुनाव का सामना करना पड़ेगा, जहां भाजपा को अपने विरोधियों से कांटे की चुनौती मिलने जा रही है।
अमित शाह के एजेंडे को आगे बढ़ाना : नए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने सबसे बड़ी चुनौती निर्वतमान पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की उपलब्धियों को दोहराना है। बतौर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यों में पार्टी को जो साम्राज्य खड़ा किया है उसको बनाए रखना नड्डा की पहली और बड़ी चुनौती है।
अगर अमित शाह के बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष कार्यकाल की बात करें तो अपने लगभग 6 साल के कार्यकाल में उन्होंने पार्टी को विश्व में सबसे अधिक कार्यकर्ताओं वाली पार्टी के रूप में स्थापित किया इसके साथ ही राज्यों में भाजपा ने ऐतिहासिक सफलता दर्ज की।
अमित शाह को उनकी संगठनात्मक क्षमता के चलते भाजपा को इलेक्शन विनिंग पार्टी के रुप में बदल दिया। शाह के नेतृत्व में ही भाजपा ने पहले रिकॉर्ड संख्या में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने के साथ ही 2019 में लगातार दूसरी बार केंद्र में सरकार बनाने के साथ ही लोकसभा में 300 का आंकड़ा भी पार कर लिया। ऐसे में अब पार्टी के नए अध्यक्ष के सामने अमित शाह की चमत्कारिक सफलता को दोहरना किसी चुनौती से कम नही होगा।
राज्यों में कमजोर होती पकड़ को मजबूत करना : पार्टी के नए अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने सबसे बड़ी चुनौती राज्यों में कमजोर होती पार्टी को पकड़ मजबूत करना है। 2018 की शुरुआत में भाजपा जो अकेले और अपने सहयोगियों के साथ देश के 21 राज्यों में अपना कब्जा जमा चुकी थी वह लगातार हार के बाद अब 15 राज्यों में सिमट चुकी है।
दिसंबर 2018 में पार्टी ने जिस तरह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता गंवाई वह भाजपा के रणनीतिकारों के लिए बड़ा झटका माना गया।
बतौर पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा की शुरुआत बहुत अच्छी नहीं रही। नड्डा के बतौर कार्यकारी अध्यक्ष रहते हुए पार्टी महाराष्ट्र और झारखंड में भी सत्ता गवां बैठी वहीं हरियाणा में पार्टी ने गठबंधन कर किसी तरह सत्ता को बचाए रखा।
गठबंधन के सहयोगियों का विश्वास जीतना : बतौर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने सबसे बड़ी चुनौती गठबंधन के सहयोगियों को एकजुट भी रखना है। आज एनडीए के सहयोगी दल एक-एक कर उससे दूरी बनाने लगे हैं।
महाराष्ट्र में तो उसकी सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना ने भाजपा का साथ छोड़ कांग्रेस का हाथ थाम लिया जिसके चलते सूबे की सत्ता से पार्टी को बेदखल होना पड़ा, वहीं दूसरी ओर बिहार में उसकी पुरानी सहयोगी जेडीयू के साथ उसका गठबंधन रह-रहकर भंवरजाल में फंसता दिखाई देता है।
ऐसे में भाजपा के नए अध्यक्ष के सामने चुनौती अपने पुराने सहयोगियों को एकजुट रखने के साथ ही नए साथियों की तलाश करना भी है। वैसे बतौर कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हरियाणा में हार के बाद भी दुष्यंत चौटाला की पार्टी के साथ गठबंधन कर अपने कुशल रणनीतिक क्षमता का परिचय दे दिया है।