Allahabad High Court judgement: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज राम मनोहर ने एक केस में अपराधियों को जमानत देते हुए अपनी ओर से एक विशेषज्ञ टिप्पणी जारी की जिसके बाद पूरे देश में बवाल मच गया। जज साहब ने कहा था कि 'किसी पीड़िता के निजी अंग को छूना, कपड़े उतारने की कोशिश करना...... दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता। उनकी इस टिप्पणी के बाद कई लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर कोर्ट चाहती क्या है। क्या इस तरह की टिप्पणियों से अपराधियों के क्रूर इरादों को और हवा नहीं मिलेगी।
कानून की किताब कहती है कि आईपीसी की धारा 375 के तहत अठारह वर्ष से कम उम्र की महिला के साथ उसकी सहमति से या उसके बिना संबंध बनाना बलात्कार का अपराध बनता है। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि पीड़िता के प्राइवेट पार्ट्स को छूना और पायजामी की डोरी तोड़ने को रेप या रेप की कोशिश के मामले में नहीं गिना जा सकता है। अब कोर्ट की इस टिप्पणी को लेकर सवाल उठ रहे हैं। लोग सोशल मीडिया के ज़रिए इस असंवेदनशील बात को कहने के लिए सुप्रीम कोर्ट से एक्शन की भी मांग कर रहे हैं।
क्या कहा था इलाहाबाद हाईकोर्ट ने, जिस पर हुआ विवाद
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि पीड़िता के प्राइवेट पार्ट्स को छूना और पायजामी की डोरी तोड़ने को बलात्कार या बलात्कार की कोशिश के मामले में नहीं गिना जा सकता है। हालांकि, कोर्ट ने ये कहा कि ये मामला गंभीर यौन हमले के तहत आता है। कोर्ट ने इस मामले में अपराध की तैयारी और अपराध के बीच अंतर बताया। कोर्ट का कहना था कि यह साबित करना होगा कि मामला तैयारी से आगे बढ़ चुका था। यह केस उत्तर प्रदेश के कासगंज इलाके में 2021 का है, जब कुछ लोगों ने 11 साल की नाबालिग बच्ची को लिफ्ट देने के बहाने उसके साथ जबरदस्ती की थी।
जज साहब की टिप्पणी के बाद फूटा लोगों का गुस्सा
हाई कोर्ट जज की टिप्पणी के बाद लोग काफी नाराज हैं। इस मामले ने सोशल मीडिया पर भी काफी गर्मी बढ़ा दी है। लोग पोस्ट करके इस मामले में सफाई की मांग कर रहे हैं। एक यूजर ने सवाल किया- कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से क्या यौन अपराधियों को पीड़ितों के साथ अन्याय करने की छूट नहीं मिल जाएगी?'।
एक दूसरे यूज़र ने लिखा 'जब सुप्रीम कोर्ट पहले ही तय कर चुका है कि बच्चों के अंगों को छूना भी 'यौन हमला' माना जाएगा, तो इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में इतनी संवेदनहीन टिप्पणी क्यों दी?'
वहीं एक और यूजर ने सवाल किया 'क्या हाई कोर्ट के इस फैसले से यह साबित नहीं होता की नाबालिक बच्चियों के साथ यौन शोषण कोई गंभीर अपराध नहीं है?' निश्चित ही लोग हाई कोर्ट की इस संवेदनहीन टिप्पणी से आहत और क्रोधित हैं।
जब तक हत्या करके लटका न दिया जाए…आँखें निकाल न ली जायें…तब तक बलात्कार भी नहीं माना जाना चाहिये…है न जज साहब!
ये मत भूलियेगा कि यही फ़ैसले नज़ीर बनेंगे और आगे के फ़ैसलों का आधार बनेंगे.
पॉक्सो हो या आईपीसी, ज्यादा कठोर सजा का है प्रावधान
इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा है कि यदि कोई आरोपी पॉक्सो एक्ट और IPC के तहत रेप मामले में दोषी पाया जाता है तो जिन कानूनी प्रावधान में अधिकतम सजा होगी वही लागू होगी। निश्चित ही अदालत का मकसद ये संदेश देना था कि रेप जैसे गंभीर अपराधों में कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए।
इससे पहले मेघालय हाईकोर्ट ने साल 2022 में एक मामले में फैसला देते हुए विशेष टिप्पणी देते हुए कहा था कि कपड़ों के ऊपर से महिला के प्राइवेट पार्ट को छूना रेप माना जाएगा। मेघालय हाईकोर्ट ने रेप की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा था कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के तहत रेप के मामलों में सिर्फ पेनिट्रेशन जरूरी नहीं है। आईपीसी की धारा 375 (बी) के मुताबिक किसी भी महिला के प्राइवेट पार्ट में मेल प्राइवेट पार्ट का पेनिट्रेशन रेप की श्रेणी में आता है। ऐसे में पीड़िता ने भले ही घटना के समय अंडरगारमेंट पहना हुआ था, फिर भी इसे पेनिट्रेशन मानते हुए रेप कहा जाएगा।'
क्या कहते हैं पॉक्सो के आंकड़े
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों पर यदि नजर डालें तो, पॉक्सो के तहत दर्ज होने वाले मामलों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में पॉक्सो एक्ट के तहत देशभर में करीब 54 हजार मामले दर्ज किए गए थे। जबकि, साल 2020 में ये संख्या 47 हजार थी. वहीं 2017 से 2021 के बीच पॉक्सो एक्ट के 2.20 लाख से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। इन आंकड़ों पर यदि गौर फरमाएं तो मालूम होता है कि पांच साल में 61,117 आरोपियों का ट्रायल पूरा हो पाया, जिनमें से 21,070 को सजा मिली और 37,383 आरोपियों को बरी कर दिया गया।