उमा भारती की गुरु बहन एवं आचार्य बालकृष्ण की धर्ममाता मां सुभद्रा ब्रह्मलीन

निष्ठा पांडे

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021 (23:42 IST)
हरिद्वार। पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती की गुरु बहन एवं पतंजली संस्थान के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण की धर्ममाता मां सुभद्रा उर्फ तपोवानी माता हरिद्वार में ब्रह्मलीन हो गईं। शुक्रवार को उत्तरकाशी के गंगोरी क्षेत्र में असी गंगा घाट स्थित आश्रम में उन्हें भू-समाधि दी जाएगी।
 
89 वर्ष की उम्र में उन्होंने हरिद्वार के रामकृष्ण मिशन हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। कई वर्षों तक हिमालय क्षेत्र के तपोवन में कठोर तपस्या करने के कारण उनको तपोवानी माता भी कहते थे। देर सायं 7:30 बजे पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती रामकृष्ण मिशन अस्पताल पहुंचीं और गुरु बहन सुभद्रा मां की पार्थिव देह देख रो पड़ीं। उमा अपनी गुरु बहन के चेहरे को निहारती रहीं।
 
उमा भारती कर्नाटक के उडुपी के पेजावर मठ के पीठाधीश्वर स्वामी विश्वेश्वर तीर्थ की शिष्या हैं और उन्होंने सुभद्रा मां से ही शिक्षा-दीक्षा ली थी। मां सुभद्रा उमा भारती की बड़ी गुरु बहन थीं, जो उन्हें बहुत प्यार-दुलार करती थीं। सुभद्रा मां का संन्यासी पूर्व नाम वारिजा था और वे मूल रूप से कर्नाटक के उडुपी की रहने वाली थीं। आचार्य बालकृष्ण ने भी उनके अवसान पर ट्वीट किया है कि मेरे आध्यात्मिक जगत की मां जो साधना व तपस्या की प्रतिमूर्ति थीं, सेवा एवं दयालुता ही जिनके जीवन का पर्याय था, बाह्य आडंबरों से कोसों दूर, स्नेह, वात्सल्य, संवेदनाओं से भरपूर, ऐसी मां हम सबको छोड़कर आज मोक्षधाम को प्रस्थान कर गई हैं।
 
उमा भारती अपनी गुरु दीदी सुभद्रा मां का हालचाल लेने जब रामकृष्ण हास्पीटल गईं तो दयाधिपानंद महाराज के समक्ष मां सुभद्रा ने उमा भारती से वचन लिया था कि वह उनका अंतिम संस्कार करेंगी। जब मां सुभद्रा के ब्रह्मलीन होने की खबर हॉस्पिटल वालों ने सुश्री उमा भारती को दी तो वह दिल्ली से सीधे हरिद्वार पहुंचीं। 
सुभद्रा मां को शुक्रवार को उत्तरकाशी के गंगोरी क्षेत्र में असी गंगा घाट के पास स्थित आश्रम में भू समाधि दी जाएगी। सुश्री उमा भारती के अलावा आचार्य बालकृष्ण भी उनके अंतिम संस्कार में भाग लेने उत्तरकाशी जाएंगे। 
तपोवन में पहुंचने की कहानी ब्यान करते हुए एक बार माता सुभद्रा ने बताया था कि इस क्षेत्र में जब वे पहली दफा पहुंची तो यहां का सम्मोहन ऐसा था कि उनको यहां से कहीं और जाने को मन ही नहीं हुआ।
 
उनका स्पष्ट मानना था कि यहां गुफा में तप के दौरान इसके अंदर रुकने से ऊर्जा का संचार होता है। ऐसी उर्जा जिससे न तो यहां की नीरवता में कोई डर उन्हें लगा न ही कभी अकेलेपन का एहसास हुआ। लोगों का कहना था कि इस क्षेत्र में हिम तेंदुए, भूरे भालू जैसे हिंसक जंगली जानवरों का खतरा हमेशा रहता है लेकिन प्रभु की ऐसी कृपा हमेशा रही कि उन्हें कभी ऐसे हिंसक जानवरों ने परेशान नहीं किया।
 
आचार्य बालकृष्ण की भेंट भी माता तपोवनी से पहली बार वर्ष 1994 में तपोवन में ही हुई थी। उन्होंने 12 वर्ष तक रात दिन तपोवन आसपास के क्षेत्र में अपना जीवन व्यतीत किया। आचार्य बालकृष्ण का भी हिमालय से वर्षों का नाता रहा है। उन्होंने पतंजलि संस्थान की स्थापना से पूर्व बाबा रामदेव के साथ गंगोत्री धाम की गुफाओं व आश्रमों में योग विद्या की साधना की है।

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