नेहरू का दृष्टिकोण समावेशी था, विपक्ष को भी साथ लेकर चलते थे : मल्लिकार्जुन खरगे
सोमवार, 18 सितम्बर 2023 (18:35 IST)
Mallikarjun Kharge's statement regarding Nehru : विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने सोमवार को भारतीय लोकतंत्र में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के योगदान को याद करते हुए कहा कि उनका दृष्टिकोण समावेशी था क्योंकि वह विपक्ष को साथ लेकर चलते थे और उन्होंने संविधान की नींव रखी थी।
संविधान सभा से शुरू होने वाली 75 साल की संसदीय यात्रा- उपलब्धियां, अनुभव, यादें और सीख विषय पर राज्यसभा में चर्चा में भाग लेते हुए खरगे ने देश में बेरोजगारी और मणिपुर में जातीय हिंसा के मुद्दों को लेकर भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने सरकार से पूछा कि संसदीय कार्यवाही को नए भवन में स्थानांतरित करने से क्या बदलने वाला है?
सत्ता पक्ष पर हमला करते हुए विपक्ष के नेता ने कहा, बदलना है तो अब हालात बदलो, ऐसे नाम बदलने से क्या होता है? युवाओं को रोजगार दो, सबको बेरोजगार करके क्या होता है? दिल को बड़ा करके देखो, लोगों को मारने से क्या होता है? कुछ कर नहीं सकते तो कुर्सी छोड़ दो, बात-बात में डराने से क्या होता है? अपनी हुक्मरानी पर तुम्हें गुरूर है, लोगों को डराने-धमकाने से क्या होता है?
उन्होंने कहा कि यहां (पुराने भवन) से वहां नए (संसद भवन) जाने से क्या बदलने वाला है? उन्होंने कहा, इतनी मेहनत से जो हमने कमाया है, उसे हम गंवाना नहीं चाहते। खरगे ने केंद्र सरकार पर एक मजबूत विपक्ष को केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल के जरिए कमजोर करने का आरोप लगाया और साथ ही यह कहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा कि वह कभी-कभार संसद में आते हैं और जब आते भी हैं तो उसे इवेंट बनाकर चले जाते हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल के दौरान किए गए विभिन्न कार्यों का हवाला देते हुए कहा कि उनकी पार्टी ने 70 सालों में लोकतंत्र को मजबूत किया और भारत को मजबूत बनाने की नींव डाली। प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कसते हुए खरगे ने नेहरू की कार्यशैली का भी जिक्र किया और कहा कि एक तरफ वह जहां सभी को साथ लेकर चलते थे वहीं आज के प्रधानमंत्री हमारी छाया भी नहीं देखना चाहते।
उन्होंने कहा, नेहरू जी प्रमुख मुद्दों पर सभी से बात करते थे। विपक्ष के साथियों से भी बात करते थे, सबकी राय लिया करते थे लेकिन आज होता क्या है? हमारी बात सुनने को कोई नहीं आता। खरगे ने कहा, नेहरू जी मानते थे कि मजबूत विपक्ष ना होने का अर्थ है कि व्यवस्था में महत्वपूर्ण खामियां हैं। अगर मजबूत विपक्ष नहीं है तो वह ठीक नहीं है।
खरगे ने कहा, आज जबकि एक मजबूत विपक्ष है तो ध्यान इस बात पर है कि उसे ईडी (प्रवर्तन निदेशालय), सीबीआई (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो)...से कमजोर कैसे करना है... उन्हें साथ ले लेना (अपनी पार्टी में शामिल करना) और फिर वाशिंग मशीन में डालना...जब वे धुल जाते हैं तो उन्हें स्थाई बना लेना (अपनी पार्टी में)...। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि नेहरू संसद में सभी की बातें ध्यान से सुनते थे लेकिन यहां तो प्रधानमंत्री आते ही नहीं।
उन्होंने कहा, संसद में प्रधानमंत्री साहब कभी-कभार आते हैं और जब आते हैं तो इवेंट बनकर चले जाते हैं। मणिपुर में तीन महीने से दंगे हो रहे हैं, लोगों के घर जल रहे हैं... इसके बारे में एक बयान देने की मांग की गई थी। वह भी नहीं। प्रधानमंत्री देश के कोने-कोने में जाते हैं लेकिन मणिपुर क्यों नहीं जाते? प्रधानमंत्री को मणिपुर जाना चाहिए था। वहां के लोगों के दुख-दर्द को देखना था। यह अच्छा नहीं है। (प्रधानमंत्री का मणिपुर ना जाना)।
खरगे ने कहा कि नेहरू सभी को साथ लेकर चलते थे और उन्होंने अपनी पहली मंत्रिपरिषद में कांग्रेस के बाहर के और दूसरे विचारधारा वाले पांच योग्य लोगों को भी शामिल किया। उन्होंने कहा, नेहरू जी के बारे में भाजपा के लोग बहुत बोलते हैं, यह बोलना छोड़ दीजिए। वह 14 साल जेल में रहे, सब कुछ सहन कर देश की बुनियाद रखी। बड़े-बड़े कारखाने बनाकर और सरकारी क्षेत्रों में नौकरियां देकर मजबूत बुनियाद डालने का काम किया और फिर देश आगे बढ़ा।
उन्होंने कहा कि नेहरू जब प्रधानमंत्री थे तब राष्ट्र की बुनियाद रखने का काम हो रहा था और बुनियाद में जो पत्थर रखे जाते हैं तो वह दिखते नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने इन सालों में लोकतंत्र को मजबूत किया लेकिन सत्ता सक्ष की ओर से बार-बार सवाल उठाया जाता है कि 70 साल में कांग्रेस ने क्या किया।
उन्होंने कहा, तो 70 साल में हमने यही किया। इसको मजबूती दी। लोकतंत्र को बचाया है हमने। हमारे यहां सत्ता का हस्तांतरण बंदूक के बल पर नहीं हुआ। महात्मा गांधी ने जो हमें आजादी दिलाई वह अहिंसा से दिलवाई है। इसलिए हमारे जो आदर्श सामने हैं उनकी वजह से लोकतंत्र मजबूत हुआ है।
खरगे ने पुराने संसद भवन का उल्लेख करते हुए कहा कि इसी भवन में 75 सालों के दौरान देश की किस्मत बदली है, देश की सूरत बदलने वाले तमाम कानून बने हैं और जमींदारी प्रथा खत्म करने, छुआछूत मिटाने, अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण के भी कानून बने हैं।
उन्होंने कहा, यह भवन आजाद भारत के सभी बड़े फैसलों का गवाह है। इसी भवन में हमारी संविधान सभा 11 सत्रों में 165 दिन बैठी। संविधान बना...आजादी के बाद से 75 सालों की यात्रा में सारे महत्वपूर्ण फैसले इसी में हुए। इसमें भारतीय वास्तुकला की छाप है। इसे नफरत से नहीं देखना चाहिए। इस सदन में नेहरू जी, आंबेडकर जी और सरदार पटेल जैसे लोग बैठे थे।
खरगे ने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा विभिन्न विषयों पर संसद में दिए गए 21 और मनमोहन सिंह द्वारा दिए गए 30 बयानों का उल्लेख किया और कहा कि मौजूदा प्रधानमंत्री साहब ऐसे हैं जो सदन में नौ सालों में कस्टमरी बयानों को छोड़कर केवल दो बार बोले हैं।
उन्होंने कहा, आज यह लोकतंत्र है। संसद और विधानसभाओं को जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्थाएं बताते हुए नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि इनके माध्यम से जन आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति मिलती है और बदलते समय में जनता की अपेक्षाएं भी बढ़ रही हैं। उन्होंने सदनों में स्तरीय चर्चा की जोरदार वकालत भी की और कहा कि संसद का सबसे बेहतरीन कामकाज पहली लोकसभा में 1952 से 1957 के बीच को माना जाता है, जिसमें 677 बैठकर हुईं, 319 विधेयक पारित हुए।
उन्होंने विधेयकों को बेहतर बनाने के लिए उन्हें संसद की विभिन्न समितियों में भेजे जाने के चलन में आई कमी की ओर भी सदन का ध्यान आकर्षित किया और कहा कि 2009 से 2014 के दौरान 71 प्रतिशत विधेयकों को समितियों में भेजा गया जबकि लोकसभा में 2014 से 2019 के बीच इसका प्रतिशत घटकर 27 प्रतिशत हो गया है।
उन्होंने कहा, साल 2019 के बाद इसमें इतनी गिरावट आ गई की यह 13 प्रतिशत रह गया है। उन्होंने सत्ता पक्ष से कहा, आप हमसे बार-बार पूछते हो कि 70 सालों में क्या किया तो हमने ये किया। उन्होंने कहा कि आज तो विधेयक बुलेट ट्रेन से भी ज्यादा गति से पारित हो रहे हैं।
उन्होंने कहा, आज आलम यह है कि सरकार सदनों की बैठक कम से कम करने की कोशिश कर रही है। इस कारण कानून की गुणवत्ता वैसे नहीं रहती जो व्यापक विचार मंथन या छानबीन से गुजरे कानून की होती है। आज आलम यह भी है कि 2021 में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि बिना व्यापक बहस के जल्दबाजी में संसद में कानून बनाने से गंभीर खामियां रह जाती हैं और कई पहलू और अस्पष्ट रह जाते हैं।
उन्होंने इस शेर के साथ अपने भाषण का समापन किया। हमारी वतनपरस्ती की अनगिनत तारीखें हैं, बेशुमार किस्से हैं। हों भी क्यों ना। वतन से मोहब्बत... यह तो हमारे ईमान का हिस्सा है।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)