Bangladesh relations: दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक माहौल में एक नया तनाव उभरा, जब भारत ने बांग्लादेश को दी जाने वाली महत्वपूर्ण India ट्रांस-शिपमेंट सुविधा को वापस ले लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कड़ा कदम उठाकर बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस को बड़ा झटका दिया है। इस निर्णय से बांग्लादेश को भारतीय सीमा शुल्क स्टेशनों के माध्यम से तीसरे देशों में माल निर्यात करने में बड़ी चुनौतियां झेलनी पड़ेंगी। अब तक बांग्लादेश को भारत के कस्टम स्टेशनों के जरिए अपने सामानों को विदेशी बंदरगाहों और हवाई अड्डों तक भेजने की सहूलियत थी। यह कदम मोहम्मद यूनुस की हालिया चीन यात्रा और उनके बयानों के बाद आया है।
ट्रांस-शिपमेंट सुविधा वापसी का कारण : मोदी सरकार का यह फैसला तब सामने आया, जब मोहम्मद यूनुस ने चीन यात्रा के दौरान भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को 'लैंड लॉक्ड' (चारों ओर से भूमि से घिरा) बताते हुए बांग्लादेश को इस क्षेत्र में 'समुद्र का एकमात्र संरक्षक' करार दिया। उन्होंने इसे चीन के लिए आर्थिक प्रभाव बढ़ाने का एक सुनहरा अवसर बताया। यूनुस का यह बयान भारत के लिए संवेदनशील माना गया, क्योंकि पूर्वोत्तर भारत की भौगोलिक स्थिति और उसकी समुद्र तक पहुंच सीमित है। बांग्लादेश के चटगांव और मोंगला बंदरगाहों के जरिए इस क्षेत्र को समुद्री व्यापार से जोड़ा जाता है और भारत इन बंदरगाहों का उपयोग अपनी जरूरतों के लिए भी करता है। ALSO READ: भारत ने दिया बांग्लादेश को बड़ा झटका, बंद की ट्रांसशिपमेंट सुविधा
यूनुस के बयान को भारत ने क्षेत्रीय संतुलन और अपनी संप्रभुता पर टिप्पणी के रूप में देखा, खासकर तब जब यह चीन के संदर्भ में आया। चीन पहले से ही बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है, जिसमें बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत बंदरगाह और बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शामिल हैं। भारत ने इसे अपनी सुरक्षा और आर्थिक हितों के लिए चुनौती के रूप में लिया और मोदी के नेतृत्व में ट्रांस-शिपमेंट सुविधा को रद्द करने का कड़ा कदम उठाया। ALSO READ: क्या है Chicken Neck Corridor, भारत- बांग्लादेश विवाद के बीच क्या चीन कर सकता है इसके जरिए भारत की घेराबंदी?
हालांकि, भारत के विदेश मंत्रालय ने इसे विशुद्ध रूप से तकनीकी और लॉजिस्टिक कारणों से लिया गया फैसला बताया। मंत्रालय के अनुसार, बांग्लादेश के ट्रांस-शिपमेंट से भारतीय निर्यात में देरी और लागत बढ़ रही थी, जिससे बैकलॉग की समस्या पैदा हो रही थी। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कदम बांग्लादेश के नेपाल और भूटान को होने वाले निर्यात को प्रभावित नहीं करेगा, जो भारत के साथ त्रिपक्षीय समझौतों के तहत संचालित होता है।
बांग्लादेश पर प्रभाव : बांग्लादेश के लिए मोदी का यह फैसला एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। उसकी अर्थव्यवस्था काफी हद तक निर्यात पर निर्भर है, खासकर रेडीमेड गारमेंट्स पर, जो वैश्विक बाजारों में उसकी पहचान है। भारतीय सीमा शुल्क स्टेशनों के जरिए माल को तीसरे देशों में भेजने की सुविधा से बांग्लादेश को समय और लागत में बचत होती थी। अब इस सुविधा के खत्म होने से बांग्लादेश को वैकल्पिक रास्ते तलाशने होंगे, जो महंगे और समय लेने वाले हो सकते हैं। ALSO READ: पीएम मोदी को सता रही है बांग्लादेशी हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर चिंता, मोहम्मद यूनुस से क्या कहा?
इसके अलावा, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पहले से ही आंतरिक अस्थिरता से जूझ रही है। मोदी के इस कदम को वहां की जनता और विपक्षी दल यूनुस सरकार की कूटनीतिक नाकामी के रूप में पेश कर सकते हैं। बांग्लादेश के लिए भारत एक महत्वपूर्ण पड़ोसी और व्यापारिक साझेदार है, और इस फैसले से दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ सकता है।
दक्षिण एशिया की भू-राजनीति पर असर
भारत-बांग्लादेश संबंध : भारत और बांग्लादेश के बीच ऐतिहासिक रूप से मधुर संबंध रहे हैं, खासकर 1971 के युद्ध के बाद। लेकिन हाल के वर्षों में बांग्लादेश का चीन की ओर झुकाव भारत के लिए चिंता का विषय बन गया है। मोदी का यह निर्णय दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी को उजागर करता है।
चीन की बढ़ती भूमिका : बांग्लादेश में चीन का निवेश और प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। यूनुस का बयान और मोदी का जवाबी कदम इस बात का संकेत है कि दक्षिण एशिया में चीन एक बड़े खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है। भारत इसे अपने प्रभाव क्षेत्र में अतिक्रमण के रूप में देखता है, खासकर पूर्वोत्तर भारत और बंगाल की खाड़ी के संदर्भ में।
पूर्वोत्तर भारत की स्थिति : पूर्वोत्तर भारत की समुद्र तक पहुंच के लिए बांग्लादेश महत्वपूर्ण है। अगर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता है, तो भारत को अपने इस क्षेत्र के लिए वैकल्पिक मार्ग तलाशने पड़ सकते हैं, जैसे म्यांमार के सितवे बंदरगाह का उपयोग।
क्षेत्रीय संतुलन : दक्षिण एशिया में पहले से ही भारत-पाकिस्तान तनाव और श्रीलंका का आर्थिक संकट जैसे मुद्दे मौजूद हैं। बांग्लादेश के साथ यह नया विवाद क्षेत्रीय स्थिरता को और प्रभावित कर सकता है।
भारत की रणनीति और भविष्य : मोदी का यह कदम एक मजबूत संदेश है कि भारत अपने हितों और क्षेत्रीय प्रभाव को लेकर कोई समझौता नहीं करेगा। यह फैसला न केवल बांग्लादेश, बल्कि चीन को भी चेतावनी है कि भारत दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति को कमजोर नहीं होने देगा। हालांकि, भारत ने यह भी सुनिश्चित किया है कि नेपाल और भूटान जैसे छोटे पड़ोसियों पर इसका असर न पड़े, जिससे उसकी 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति बरकरार रहे।
लेकिन यह कदम भारत के लिए भी चुनौतियां ला सकता है। अगर बांग्लादेश पूरी तरह चीन के पाले में चला गया, तो भारत के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र में लॉजिस्टिक और सुरक्षा चुनौतियां बढ़ सकती हैं। इसके अलावा, भारत को बांग्लादेश के साथ व्यापार और कनेक्टिविटी पर भी असर पड़ेगा, जो दोनों देशों के लिए फायदेमंद रहा है।
मोदी ने बांग्लादेश के मुहम्मद यूनुस को ट्रांस-शिपमेंट सुविधा वापस लेकर जो झटका दिया है, वह दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह कदम भारत के अपने हितों को सुरक्षित करने की कोशिश को दर्शाता है, लेकिन यह क्षेत्रीय रिश्तों में नई जटिलताएं भी ला सकता है। बांग्लादेश के लिए यह एक आर्थिक झटका है, जबकि चीन के लिए यह अपने प्रभाव को बढ़ाने का अवसर है। आने वाले दिनों में भारत और बांग्लादेश के बीच कूटनीतिक बातचीत इस तनाव को कम करने में अहम होगी। दक्षिण एशिया का यह भू-राजनीतिक परिदृश्य न केवल भारत और बांग्लादेश, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक नई चुनौती बन सकता है।