मध्यप्रदेश और राजस्थान में 33 मासूम बच्चों की मौत से राज्य सरकारों के स्वास्थ्य विभाग की कार्यशेली पर सवाल उठ रहे हैं, इस बीच नागरिकों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाला एक और बेहद चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है।
दरअसल, केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने जिन दवाओं पर प्रतिबंध लगा रखा है, मध्यप्रदेश की हेल्थ एजेंसी ने उन्ही दवाओं को खरीद लिया और वितरित कर दिया। कैग (CAG) (नियंत्रक महालेखाकार) की रिपोर्ट में इस चौंकाने वाले कारनामे का खुलासा हुआ है। इन प्रतिबंधित दवाओं को स्वास्थ्य मंत्रालय ने मानव के इस्तेमाल के लिए पूरी तरह से निषिद्ध माना था।
देश की सर्वोच्च लेखा संस्था ने अपनी 2024-25 की (CAG) रिपोर्ट में खुलासा किया है कि मध्यप्रदेश की सरकारी एजेंसी मध्यप्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने ऐसी प्रतिबंधित और खतरनाक दवाइयां खरीदीं और बांट दीं, जिन्हें भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इंसानों के लिए नुकसानदायक बताकर पूरी तरह बैन कर रखा था। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब कफ सिरप कोल्ड्रिफ की वजह से मध्यप्रदेश और राजस्थान दोनों स्टेट को मिलाकर 33 बच्चों की मौत से हड़कंप मचा हुआ है।
कैग रिपोर्ट में खुलासा : ऐसे डाला मानव स्वास्थ्य को खतरे में : कैग की 2024-2025 की रिपोर्ट में ये साफ बताया गया है कि जिन 518 दवाओं को भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने प्रतिबंधित कर रखा था, 2017 से 2022 के बीच में निगम ने इन्ही प्रतबंधित दवाओं के लिए इन दवा कंपनियों से 153.46 लाख का अनुबंध तय किया और जिला स्तर पर लोकल टेंडर के जरिए 22.96 लाख रुपए की दवाओं की खरीद भी कर डाली। यानी कुल 1.76 करोड़ की प्रतिबंधित दवाएं राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था में पहुंचाई गईं। ये वही दवाएं थीं जिन्हें भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने पूरी तरह मानव उपयोग के लिए प्रतिबंधित घोषित कर दिया था।
518 दवाओं की बिक्री और डिस्ट्रिब्यूशन पर था बैन : बता दें कि कैग रिपोर्ट बताती है कि सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट- 1940 के तहत नवंबर 2021 में 518 दवाओं और उनके संयोजनों की सूची जारी की थी, जिनका निर्माण, बिक्री और वितरण देशभर में प्रतिबंधित था। इसके बावजूद मध्यप्रदेश की इस सरकारी एजेंसी ने न केवल इन्हीं दवाओं के लिए टेंडर जारी किए बल्कि अस्पतालों को उनकी सप्लाई भी कर दी।
करोड़ों का सौदा सरकारी दस्तावेज़ों में दर्ज : चौंकाने वाली बात ये है कि जिन दवाओं को केंद्र सरकार ने सालों पहले बैन किया था, उन्हीं का करोड़ों का सौदा सरकारी दस्तावेज़ों में दर्ज है। यानी मेट्रोनिडाजोल + नॉरफ्लॉक्सासिन को 10 मार्च 2016 को गजट अधिसूचना के जरिए बैन किया गया था, लेकिन इसके बावजूद 27 अक्टूबर 2016 और 1 जुलाई 2017 को इसके रेट कॉन्ट्रैक्ट किए गए और 32.14 लाख की खरीद हुई। इसी तरह एज़िथ्रोमाइसिन + सेफिक्सिम, जो उसी तारीख को बैन हुआ था, को 2018 और 2020 में फिर खरीदा गया, जिसकी कीमत 1.21 करोड़ से ज्यादा थी।
कैग : लापरवाही नहीं, अपराध है : कैग की रिपोर्ट ने प्रदेश के ड्रग कंट्रोल सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि छिंदवाड़ा कफ सिरप जिसमें 23 बच्चों की जान चली गई, वो किसी एक कंपनी की गलती नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की लापरवाही का नतीजा है। चाहे प्रतिबंधित एंटीबायोटिक की बात हों या जहरीले कफ सिरप की, ऐसा लगता है कि ऊपर से लेकर नीचे तक पूरे कुएं में भांग घुली हुई है। रिपोर्ट : नवीन रांगियाल