साल भर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने वाला देश का मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाला यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन),भाजपा और उसके गठबंधन एनडीए का मुकाबला करने के लिए अब नए साल में नए सिरे से एकजुट होते हुए दिखाई दे सकते है। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में नेतृत्व संकट और राहुल गांधी की राजनीति को लेकर उठते सवालों के बीच महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ दल शिवसेना की एनसीपी प्रमुख शरद पवार को यूपीए अध्यक्ष बनाने की मांग ने नए समीकरण बनाना शुरु कर दिए है।
यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की अस्वस्थता ने मुख्य विपक्षी गठबंधन के लिए नए अध्यक्ष की सुगबुगाहट अचानक से तेज कर दी है। इस बीच मोदी सरकार के सामने चुनौती बनकर आए किसान आंदोलन के नेताओं की शरद पवार से मुलाकात और मुलाकात में शरद पवार का उनको इस बात का भरोसा देना कि वह विपक्षी दलों को उनके समर्थन में खड़ा करेंगे,नए साल में शरद पवार की नई भूमिका के साथ विपक्षी गठबंधन में नए समीकरण बनने के संकेत दे रहे है।
कांग्रेस की राजनीति के साथ ही यूपीए गठबंधन के सहयोगी दलों पर करीब से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई कहते हैं कि यूपीए अध्यक्ष को लेकर उठ रहे सवाल वर्तमान में एक कोरी कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं है। जहां तक शरद पवार की यूपीए अध्यक्ष की दावेदारी का सवाल है तो शरद पवार का नाम शिवसेना आगे बढ़ा रही है। शिवसेना और कांग्रेस का सहयोग केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित है और वह यूपीए में शामिल नहीं है।
“वेबदुनिया” से बातचीत में राशिद किदवई कहते हैं कि उनको लगता है कि शरद पवार का नाम यूपीए अध्यक्ष के लिए आगे बढ़ाना नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ एक तरह का षड़यंत्र है,जिसमें सोनिया गांधी को पहले यूपीए की चेयरपर्सन का पद छोड़ने के लिए बाध्य किया जाए और जब वह यूपीए चेयरपर्सन पद छोड़ेगी तब अगली मांग होगी कि नेहरू-गांधी परिवार का सदस्य कांग्रेस का अध्यक्ष ना बनें।
राशिद किदवई कहते हैं कि शरद पवार कांग्रेस में रहते हुए आखिरी बार जब 1995 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे। 1998 में कांग्रेस छोड़ने के बाद उनकी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस अब तक महाराष्ट्र में 282 सीटों में से 75 सीटें भी कभी नहीं जीत सकी। पिछले 22 साल के राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के इतिहास को देखे तो वह महाराष्ट्र में भी अब तक सबसे अधिक एक चौथाई सीटें (72 सीटें) ही जीत सकी है।
महाराष्ट्र में एनसीपी सरकार में सहयोगी दल की भूमिका में रहा है। जहां पहले वह कांग्रेस के साथ और आज शिवसेना के साथ सत्ता में है। शरद पवार की पार्टी की वैल्यू महाराष्ट्र के बाहर शून्य है। ऐसे में शरद पवार के यूपीए अध्यक्ष बनने की बात एक चाय की प्याली में उफान जैसी बात है। ऐसे में जब सोनिया गांधी को इस बात का एहसास है कि जब तक राहुल गांधी राजनीति में नहीं जम जाते तब तक उनकी जरूरत है। ऐसे में यूपीए अध्यक्ष पद पर बने रहना पूरी तरह उनके विवेक पर निर्भर है।
राशिद आगे कहते हैं कि यूपीए अध्यक्ष प इस तरह के फ्रंट (गठबंधन) तब बनते है जब लोकतंत्र में संख्या बल की कमी होती है,इसी तरह यूपीए का गठन भी 2004 में उस वक्त हुआ था जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई थी। ऐसे फ्रंट जब सत्ता से बाहर होते है तो उसमें पार्टियों आने जाने का सिलसिला चलता रहता है। सामान्य तौर पर ऐसे फ्रंट में जो सबसे बड़ा दल होता है,जैसे यूपीए के मामले में कांग्रेस है तो उसी मनमानी चलती है और अगर दूसरे दल उसको नहीं पंसद करते है तो वह गठबंधन को छोड़कर जाने में स्वतंत्र है। जहां तक इस समय यूपीए अध्यक्ष बदलने की बात है तो यह पूरी तरह सोनिया गांधी के विवेक पर है कि वह यूपीए की बागडोर को देना चाहती है या नहीं।
राशिद किदवई कहते हैं कि अगर आज एनडीए के मुकाबले यूपीए की बात करें तो वह बहुत ही कमजोर और निराशावादी स्थिति में दिखाई देता है। अगर नीतीश कुमार जैसे लोग आज यूपीए में शामिल होते और यूपीए की देश के कई राज्यों में सरकारें होती तो स्थिति अलग होती औ यूपीए का अपना एक दबदबा होता। ऐसे में यूपीए एक बहुत ही ज्यादा कमजोर स्थिति में दिखाई दे रही है। ऐसे में यूपीए की मजबूती के लिए जरूरी है कि कांग्रेस अपने पुराने दमखम में लौटे और किसी भी राज्य में सत्ता में आए और लोकसभा सीटें जीतें लेकिन अभी जब कोई ऐसा चुनाव हो नहीं रहा तब यूपीए में बहुत मजबूती की संभावना भी नजर नहीं आ रही।