धीमी व दर्दनाक मौत मंडरा रही है दिल्ली और भारत के कई शहरों पर...
देश के कई शहरों में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। दिवाली पर पटाखों को चलाने के बाद यह और भी बढ़ जाता है। दिवाली पर दिल्ली और देश के शहर गैस चेंबरों में तब्दील हो जाते हैं। सांसों के जरिए शरीर में जाता यह धीमा जहर व्यक्ति को दर्दनाक मौत के करीब ले जाता है।
राजधानी दिल्ली की बात करें तो 10 दिन में यहां की हवा जानलेवा बन चुकी है। अब दिवाली पर पटाखों का धुआं खतरे के तौर पर आगे बढ़ ही रहा है। उधर, पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा जलाई जा रही पराली का धुआं अब तक नहीं थमा है। इन दोनों के एकसाथ आ जाने पर दिल्ली-एनसीआर में रहने वालों का जीना दूभर हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने तय किया पटाखे चलाने का समय : पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली के करीब आते ही पटाखों की बिक्री और खरीद पर रोक लगा दी थी, लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने बीच का रास्ता निकालते हुए दिवाली, क्रिसमस और नए साल पर पटाखे फोड़ने के लिए समय निर्धारित कर दिया है। कोर्ट ने दिवाली पर 8 से 10 बजे तक पटाखे जलाने का समय निर्धारित किया है। क्रिसमस और न्यू ईयर पर सिर्फ 20 मिनट ही पटाखे जला सकते हैं। बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए कोर्ट ने लोगों को ग्रीन और ईको-फ्रेंडली पटाखे चलाने के लिए सुझाव दिया है।
बड़ा सवाल, लोग मानेंगे कोर्ट का आदेश? : सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए आदेश तो दे दिया, लेकिन सवाल यह है कि बढ़ते पर्यावरण असंतुलन को देखते हुए देशवासी कोर्ट के इस ऑर्डर का कितनी गंभीरता से पालन करते हैं? उज्जैन से भाजपा सांसद चिंतामणि मालवीय ने तो फेसबुक पर ऐलान कर दिया है कि वे तो 10 बजे बाद ही पटाखे फोड़ेंगे।
एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) बताता है प्रदूषण का स्तर : सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) से हवा की क्वालिटी को बताता है। इंडेक्स बड़े पॉल्यूटेंट PM2.5 और PM10 को मापती है। अगर इनकी वैल्यू 0 से 50 के बीच है, तो यह सामान्य है। 51 से 100 के बीच संतोषजनक, 101 से 200 के बीच हल्का प्रदूषण, 201 से 300 के बीच बुरा, 301 से 400 के बीच बहुत बुरा, 401 से 500 लेवल पर बेहद खतरनाक स्तर माना जाता है।
गैस चैंबर बनी दिल्ली : ETEnergyworld की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 दिनों में दिल्ली-एनसीआर में हवा की गुणवत्ता में बहुत उतार-चढ़ाव आए हैं। पिछले 10 दिनों में दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है। आशंका जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में हालात और बिगड़ने वाले हैं। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के डेटा के मुताबिक इस बार 21 अक्टूबर को दशहरे के त्योहार के बाद से दिल्ली-एनसीआर में हवा की गुणवत्ता बहुत तेजी से खराब हुई है। भिवंडी में एक्यूआई 412, फरीदाबाद में 310, गुडगांव में 305, गाजियाबाद में 297, ग्रेटर नोएडा में 295 और दिल्ली में 292 रहा।
क्या है दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का कारण : आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में हवा में खतरनाक प्रदूषण के लिए 60 प्रतिशत गाड़ियां और 40 प्रतिशत पराली जिम्मेदार है। पिछले 10 दिनों में दिल्ली-एनसीआर में खतरनाक स्थिति के कई कारण हैं। पंजाब और हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्यों में ये किसानों के खेतों में पड़ी पराली को जलाने का समय होता है जिसके कारण वातावरण में धुआं, धुंध और प्रदूषक तत्व फैल जाते हैं। इसके अतिरिक्त लगातार चल रहे कंस्कट्रक्शन वर्क्स भी प्रदूषण के स्तर को बढ़ाते हैं।
दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में 10 भारत के : इस समय भारत विश्व की सबसे तेजी से विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था है। हालांकि चीन की अर्थव्यवस्था भारत से 5 गुना बड़ी है। भारत में अब भी विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है इसलिए प्रदूषण बढ़ने की आशंकाएं हैं। ब्लूमबर्ग में छपी रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में सबसे तेजी से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था वाला देश भारत भी प्रदूषण की मार झेल रहा है। दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 10 भारत के हैं।
ऑड-ईवन से प्रदूषण पर रोक की कोशिश : गाड़ियों से बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली सरकार ने 2016 में ऑड-ईवन की योजना शुरू की। एक सर्वे के मुताबिक इस स्कीम से वायु प्रदूषण में कोई कमी नहीं आई। यह योजना वर्ष 2016 में 2 बार- 1 से 15 जनवरी और फिर 15 से 30 अप्रैल तक लागू की गई थी। इस योजना के तहत सम और विषम संख्या वाले वाहन सम-विषम तारीखों वाले दिनों में सड़कों पर चलते हैं।
अस्थमा और कैंसर जैसी बीमारियां : हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण अस्थमा और लंग कैंसर जैसी बीमारियां पैदा कर रहे हैं। ब्लूमबर्ग की इस रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में इन बीमारियों के कारण 11 लाख लोगों की मौत हुई। शिकागो यूनिवसिर्टी के प्रोफेसर माइकल ग्रीनस्टोन का कहना है कि भारत में वायु प्रदूषण कम करने की मांग प्रभावी रूप से न उठना एक बड़ी चुनौती है। भारत में वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों के अध्ययन की आवश्यकता है।