जोशीमठ। उत्तराखंड के इस कस्बे में भगवान नृसिंह का मंदिर है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि मौजूदा भगवान नृसिंह भगवान की मूर्ति में हर साल 'हैरतअंगेज' बदलाव हो रहा है। प्राचीन मान्यता है कि जब आठवीं वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य शंकराचार्य ने लोगों को सृष्टि की रचना से लेकर देव उत्पत्ति के बारे में बताया था और तब शंकराचार्य ने जोशीमठ में विष्णु के अवतार नृसिंह भगवान की प्रतिमा स्थापित की थी। इस प्रतिमा की दाहिनी भुजा पतली है जो धीरे-धीरे और अधिक पतली होती जा रही है।
केदारखंड के एक प्राचीन ग्रंथ में कहा गया है कि जब भगवान नृसिंह की मूर्ति से उनका हाथ टूटकर गिर जाएगा तो विष्णुप्रयाग के समीप पटमिला नामक स्थान पर स्थित जय व विजय नाम के पहाड़ आपस में मिल जाएंगे और बदरीनाथ के दर्शन नहीं हो पाएंगे। तब जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में स्थित भविष्य बदरी मंदिर में भगवान बदरीनाथ के दर्शन होंगे। केदारखंड के सनतकुमार संहिता में भी इसका उल्लेख मिलता है।
बताते हैं कि आठवीं सदी में आदि गुरू शंकराचार्य ने ही भविष्य बदरी मंदिर की स्थापना की थी। भविष्य बदरी मंदिर के समीप ही एक पत्थर पर शंकराचार्य ने एक भविष्य वाणी भी लिखी है, लेकिन जिस भाषा में भविष्य वाणी लिखी गई है, उसे आज तक कोई नहीं पढ़ पाया है।