राष्ट्रपति मुर्मू ने बताया, इस तरह पड़ा उनका नाम द्रौपदी...

Webdunia
सोमवार, 25 जुलाई 2022 (15:28 IST)
भुवनेश्वर। भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी का नाम महाकाव्य 'महाभारत' के एक चरित्र के नाम पर उनके स्कूल के एक शिक्षक ने रखा था।एक साक्षात्‍कार में मुर्मू ने बताया था कि उनका संथाली नाम पुती था, जिसे स्कूल में एक शिक्षक ने बदलकर द्रौपदी कर दिया था। शिक्षक को मेरा पुराना नाम पसंद नहीं था और इसलिए बेहतरी के लिए उन्होंने इसे बदल दिया।

एक ओडिया वीडियो पत्रिका को कुछ समय पहले दिए एक साक्षात्‍कार में मुर्मू ने बताया था कि उनका संथाली नाम पुती था, जिसे स्कूल में एक शिक्षक ने बदलकर द्रौपदी कर दिया था। मुर्मू ने पत्रिका से कहा था, द्रौपदी मेरा असली नाम नहीं था। मेरा यह नाम अन्य जिले के एक शिक्षक ने रखा था, जो मेरे पैतृक जिले मयूरभंज के नहीं थे।

उन्होंने बताया था कि आदिवासी बहुल मयूरभंज जिले के शिक्षक 1960 के दशक में बालासोर या कटक दौरे पर जाया करते थे। यह पूछे जाने पर कि उनका नाम द्रौपदी क्यों है उन्होंने कहा था, शिक्षक को मेरा पुराना नाम पसंद नहीं था और इसलिए बेहतरी के लिए उन्होंने इसे बदल दिया।

उन्होंने कहा कि उनका नाम दुरपदी से लेकर दोर्पदी तक कई बार बदला गया। मुर्मू ने बताया कि संथाली संस्कृति में नाम पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते रहते हैं। उन्होंने कहा,  अगर एक लड़की का जन्म होता है, तो उसे उसकी दादी का नाम दिया जाता है और लड़का जन्म लेता है तो उसका नाम दादा के नाम पर रखा जाता है।

द्रौपदी का स्कूल और कॉलेज में उपनाम टुडू था। उन्होंने एक बैंक अधिकारी श्याम चरण टुडू से शादी करने के बाद मुर्मू उपनाम अपना लिया था। द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को संसद के केंद्रीय कक्ष में देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने उन्हें राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई।

देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर निर्वाचित होने से बहुत पहले मुर्मू ने राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण पर अपने विचार स्पष्ट किए थे। उन्होंने पत्रिका से कहा था, पुरुष वर्चस्व वाली राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण होना चाहिए। राजनीतिक दल इस स्थिति को बदल सकते हैं क्योंकि वहीं हैं जो उम्मीदवार चुनते हैं और चुनाव लड़ने के लिए टिकट बांटते हैं।

मुर्मू ने 18 फरवरी 2020 को ‘ब्रह्माकुमारी गॉडलीवुड स्टूडियो’ को दिए एक अन्य साक्षात्कार में अपने 25 वर्षीय बड़े बेटे लक्ष्मण की मृत्यु के बाद के अनुभव को साझा किया था।

उन्होंने कहा, अपने बेटे के निधन के बाद मैं पूरी तरह टूट गई थी। मैं दो महीने तक तनाव में थी। मैंने लोगों से मिलना बंद कर दिया था और घर पर ही रहती थी। बाद में मैं ईश्वरीय प्रजापति ब्रह्माकुमारी का हिस्सा बनी और योगाभ्यास किया तथा ध्यान लगाया।

भारत की 15वें राष्ट्रपति मुर्मू के छोटे बेटे सिपुन की भी 2013 में एक सड़क हादसे में जान चली गई थी और बाद में उनके भाई तथा मां का भी निधन हो गया था। मुर्मू ने कहा,  मेरी जिंदगी में सुनामी आ गई थी। छह महीने के भीतर मेरे परिवार के तीन सदस्यों का निधन हो गया था।

मुर्मू के पति श्याम चरण का निधन 2014 में हो गया था। उन्होंने कहा,  एक समय था, जब मुझे लगा था कि कभी भी मेरी जान जा सकती है... मुर्मू ने कहा कि जीवन में दुख और सुख का अपना-अपना स्थान है।(भाषा)

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