PM मोदी ने अदालतों में स्थानीय भाषाओं के इस्तेमाल पर दिया जोर

Webdunia
रविवार, 1 मई 2022 (00:48 IST)
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अदालतों में स्थानीय भाषाओं के इस्तेमाल और सरल शब्दों में कानूनों को समझाने पर जोर देते हुए शनिवार को कहा कि इससे न्याय प्रणाली में आम नागरिकों का विश्वास बढ़ेगा और वे इससे अधिक जुड़ाव महसूस करेंगे।

यहां छह साल के अंतराल पर हुए मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि उन्होंने इस संभावना को तलाशने के लिए एक समूह गठित किया है कि क्या कानूनों को स्थानीय भाषाओं में बनाया जा सकता है और क्या ऐसे सरल शब्दों में बनाया जा सकता है जो आम आदमी को आसानी से समझ आ सके।

उन्होंने कहा, मैंने एक समूह गठित किया है जो यह देख रहा है कि क्या दोनों संस्करणों को विधानसभा या संसद द्वारा पारित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि विभिन्न देशों में यह प्रचलन में है और दोनों प्रारूपों को कानूनी रूप से स्वीकार्य माना जाता है।

प्रधानमंत्री ने कहा, यहां तक कि हमारे शास्त्र भी कहते हैं कि न्याय सुशासन का आधार है। इस वजह से न्याय का संबंध आम लोगों से होना चाहिए और इसे उनकी भाषा में होना चाहिए। जब तक आम आदमी न्याय के आधार को नहीं समझेगा तब तक उसके लिए न्याय और शासकीय आदेश के बीच कोई अंतर नहीं होगा।

उन्होंने मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से अपील की कि वे जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों से संबंधित मामलों को प्राथमिकता दें और उन्हें मानवीय संवेदनाओं के आधार पर कानून के अनुसार रिहा करें। प्रधानमंत्री ने कहा कि न्यायिक सुधार केवल एक नीतिगत मामला नहीं है।

मोदी ने कहा कि मानवीय संवेदनाओं को सभी चर्चाओं के केंद्र में रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि 3.5 लाख से अधिक विचाराधीन कैदी जेलों में बंद हैं। उन्होंने कहा कि हर जिले में जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति होती है, ताकि इन मामलों की समीक्षा की जा सके और जहां भी संभव हो ऐसे कैदियों को जमानत पर रिहा किया जा सके।

उन्होंने कहा, मैं सभी मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से मानवीय संवेदनशीलता और कानून के आधार पर इन मामलों को प्राथमिकता देने की अपील करता हूं। अदालती सुनवाई के मुद्दे पर मोदी ने कहा, हमें अदालतों में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इससे न केवल आम नागरिकों का न्याय प्रणाली में विश्वास बढ़ेगा, बल्कि वे इससे अधिक जुड़ाव भी महसूस करेंगे।

प्रधानमंत्री के बोलने से पहले, प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने कहा कि अदालतों में स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल करने के लिए एक कानूनी व्यवस्था की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों से न्याय प्रदान करने को आसान बनाने के लिए पुराने कानूनों को निरस्त करने की भी अपील की।

उन्होंने कहा, 2015 में हमने लगभग 1800 कानूनों की पहचान की, जो अप्रासंगिक हो चुके थे। इनमें से केंद्र के ऐसे 1450 कानूनों को समाप्त कर दिया गया। लेकिन राज्यों ने केवल 75 ऐसे कानूनों को समाप्त किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जब भारत स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, तो एक ऐसी न्यायिक प्रणाली के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, जहां न्याय आसानी से उपलब्ध, त्वरित और सभी के लिए हो।

उन्होंने कहा, हमारे देश में जहां न्यायपालिका की भूमिका संविधान के संरक्षक की है, वहीं विधायिका नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। मेरा मानना ​​​​है कि इन दोनों का संगम एक प्रभावी व समयबद्ध न्यायिक प्रणाली के लिए रोडमैप तैयार करेगा।

प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि सरकार न्याय देने में विलंब को कम करने के लिए कठिन परिश्रम कर रही है और न्यायिक क्षमता बढ़ाने तथा न्यायिक बुनियादी ढांचे में सुधार लाने के प्रयास चल रहे हैं।

उन्होंने कहा कि मामले के प्रबंधन के लिए सूचना प्रौद्योगिकी लाई गई है और न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों पर रिक्तियों को भरने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों को इसे आगे ले जाने की अपील की। ई-अदालतें परियोजना मिशन मोड में लागू की जा रही है।

मोदी ने कहा कि ब्लॉकचेन, इलेक्ट्रॉनिक खोज, साइबर सुरक्षा, रोबोटिक्स, कृत्रिम मेधा और जैव नैतिकता जैसे विषय कई देशों में विधि विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, यह हमारी जिम्मेदारी है कि हमारे देश में भी कानूनी शिक्षा इन अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि अदालतों खासतौर से स्थानीय स्तर पर लंबित मामलों के निपटारे के लिए मध्यस्थता एक अहम हथियार है। उन्होंने कहा, हमारी समृद्ध कानूनी विशेषज्ञता के साथ हम मध्यस्थता के जरिए समाधान के क्षेत्र में वैश्विक नेता बन सकते हैं। हम पूरी दुनिया को एक मॉडल दे सकते हैं।(भाषा) 

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