"कुछ नहीं बचता है!"
अजीत भाई के ये चार शब्द और उनके आसूं आज भारत के हर मेहनतकश गरीब और मध्यमवर्गीय की कहानी बयां कर रहे हैं।
नाई से लेकर मोची, कुम्हार से लेकर बढ़ई - घटती आमदनी और बढ़ती महंगाई ने हाथ से काम करने वालों से अपनी दुकान, अपना मकान और स्वाभिमान तक के अरमान छीन लिए… pic.twitter.com/1gYGdui2ll