राहुल को किस्मत से समाजवादी पार्टी से गठबंधन के चलते अप्रत्याशित प्रचार मिला साथ ही, उन्हें कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बहुत बड़े तबके तक पहुंचने का मौका भी मिला है, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।
चुनावों के बाद कांग्रेस का यूपी और उत्तराखंड में हार ने सिद्ध कर दिया कि राहुल गांधी कांग्रेस के तारणहार सिद्ध नहीं हो सके। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को जितनी भी सीटें मिलीं, वे समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के कारण मिल सकी हैं। गोवा में भी कांग्रेस कोई चमत्कार नहीं हो सका और यह भी माना जा रहा है कि अगर पंजाब में राहुल गांधी का हस्तक्षेप होता तो शायद कांग्रेस को एक मात्र राज्य में भी जीत नसीब नहीं हो पाती।
यह कहना गलत न होगा कि राहुल के सामने कांग्रेस का नेतृत्व संभालने का यह आख़िरी मौका था जिसे उन्होंने गंवा दिया। हालांकि कांग्रेसियों में इतनी हिम्मत नहीं वे यूपी और उत्तराखंड की करारी हार के लिए राहुल को जिम्मेदार ठहरा सकें। यूपी में कांग्रेस के प्रदर्शन ने यह दर्शा दिया है कि भले ही राहुल को पार्टी प्रमुख बना दिया जाए, वे कांग्रेस की दशा और दिशा को सुधार नहीं पाएंगे। नेतृत्व करने के मामले में वे पूरी तरह से जीरो साबित हुए हैं।
दूसरी ओर भाजपा का मुस्लिम बहुल इलाकों में जीतना साबित करता है कि पार्टी जनाधार तेजी से बढ़ रहा है। इसका उदाहरण है कि भाजपा को प्रदेश में सबसे पहली जीत विश्व के प्रसिद्ध इस्लामिक शिक्षा केन्द्र देवबंद में मिली। यहां से बृजेश सिंह ने भाजपा के टिकट पर चुनाव जीता। बृजेश ने यहां सपा-कांग्रेस गठबंधन के माविया अली और बसपा के माजिद अली को हराया है। गौरतलब है कि एक इस्लामिक शिक्षा केन्द्र में भाजपा के मुकाबले पर दो मुस्लिम उम्मीदवार भी थे, जिन्हें मुस्लिमों के कथित भाजपा विरोध के नाम पर वोट मिलना था लेकिन ऐसा हुआ नहीं।