नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) अत्याचार निवारण कानून मामले में केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका की सुनवाई 16 मई तक मुल्तवी कर दी, लेकिन अपने फैसले पर फिलहाल रोक लगाने से इंकार कर दिया।
केंद्र सरकार की ओर से पेश एटर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की पीठ के समक्ष दलील दी कि एससी/एसटी कानून के संबंध में दिए गए फैसले पर पीठ को रोक लगा देनी चाहिए, क्योंकि न्यायालय इस तरह नया कानून नहीं बना सकता। यह उसका अधिकार क्षेत्र नहीं है।
संविधान ने न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के अधिकारों का बंटवारा किया है।
एटर्नी जनरल ने कहा कि कोर्ट के इस आदेश के बाद 200 से ज़्यादा वर्षों से दलित लोगों के आत्मविश्वास पर असर पड़ा है। उन्होंने इस फैसले पर विचार के लिए मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने तथा फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध किया।
न्यायालय ने अपने फैसले पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार करते हुए सुनवाई 16 मई तक मुल्तवी कर दी और सभी पक्षों को उस दिन अपनी जिरह पूरी कर लेने को कहा। न्यायालय ने इससे पहले सुनवाई के दौरान कहा कि उसका फैसला यह नहीं है कि किसी मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए या दोषी को सजा न मिले, बल्कि उसने सिर्फ यह कहा है कि किसी को गिरफ्तार करने से पहले जांच की जाए और अगर जरूरत हो तभी गिरफ्तारी की जाए।