इस बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने की। बैठक के दौरान जम्मू-कश्मीर में प्रस्तावित पनबिजली परियजोनओं के कार्य को तेज करने और भंडारण क्षमता सहित जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार करने पर विचार-विमर्श किया गया, ताकि सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों के पानी का इस्तेमाल किया जा सके।
इस बैठक में पंजाब के मुख्य सचिव ने भी भाग लिया, क्योंकि इस प्रक्रिया में रावी, ब्यास और सतलुज जैसी नदियों के कारण इस पूरी प्रक्रिया में पंजाब की भागीदारी काफी अहम है।
उल्लेखनीय है कि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु जल समझौते के तहत, तीन 'पूर्वी' नदियों - ब्यास, रावी और सतलुज का नियंत्रण भारत को, तथा तीन 'पश्चिमी' नदियों - सिंधु, चिनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया।
संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है। इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी कि नदियों का आधार (बेसिन) भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े।