सबसे खास बात यह है कि आरती के समय नियमित रूप से आने वाले इस भालू ने आज तक कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया। वह रोज आता था और प्रसाद खाने के बाद पुन: जंगल लौट जाया करता था। न तो यह भालू हिंसक हुआ और न ही भालुओं का दूसरा कुनबा, जो नवरात्र में यहां आया करता था।
पूरे इलाके में बहुचर्चित इस मंदिर में दक्षिणमुखी देवी मां चंडी की प्राकृतिक रूप से बनी 23 फीट ऊंची प्रतिमा है। नवरात्र के दिनों में यहां पर श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है। इस मेले में कई भालू आते हैं जिनमें मृतक भालू भी शामिल था। भालुओं का यह झुंड कभी हिंसक नहीं हुआ। आसपास के रहने वाले लोग मानते हैं कि यह जामवंत का परिवार है, जो देवी के दर्शन बिना नहीं रह सकता।
यहां के पुजारी का भी कहना है कि मंदिर आने वाले भालू कभी हिंसक नहीं हुए और न ही किसी भक्त को नुकसान पहुंचाया। यहां पर भक्त भी इन भालुओं को खाने-पीने की चीजें देते हैं। यही नहीं, कई लोग तो उनके साथ यादगार के लिए तस्वीरें भी खिंचवाते हैं।