न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि दृष्टिहीनता सहित दिव्यांगता वाले लोगों और तेजाब हमले के पीड़ितों के लिए डिजिटल केवाईसी दिशानिर्देशों में बदलाव जरूरी है, क्योंकि वे केवाईसी प्रक्रिया पूरी करने और बैंक खाते खोलने जैसी सुविधाओं का लाभ उठाने तथा कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने में असमर्थ हैं।
अदालत ने ऐसे लोगों की केवाईसी प्रक्रिया को पूरा करने में असमर्थता पर भी गौर किया, जिसके लिए उन्हें ऐसे कार्य करने होते हैं जैसे कि अपना सिर हिलाना और चेहरे को सही स्थिति में रखना - ये ऐसे कार्य हैं जिन्हें वे नहीं कर पाते।
इसके परिणामस्वरूप दिव्यांगजनों को देरी का सामना करना पड़ता है या वे अपनी पहचान स्थापित करने, बैंक खाते खोलने, आवश्यक सेवाओं तक पहुंच बनाने या सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में असमर्थ होते हैं।
पीठ ने दिव्यांगजनों के समक्ष आने वाली कठिनाइयों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों, पर प्रकाश डालते हुए कहा कि चूंकि स्वास्थ्य सेवा जैसी आवश्यक सेवाएं तेजी से डिजिटल मंचों के माध्यम से उपलब्ध हो रही हैं, इसलिए अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार की व्याख्या तकनीकी वास्तविकताओं के प्रकाश में की जानी चाहिए।