नई दिल्ली। खाद्य सुरक्षा की बुनियादी वैश्विक अवधारणा का उल्लेख करते हुए उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि इसके लिए स्पष्ट प्रावधान नहीं होने की सूरत में मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार, भोजन का अधिकार और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं को संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीवन के अधिकार में शामिल होने की व्याख्या की जा सकती है।
शीर्ष अदालत ने 3 कार्यकर्ताओं की याचिका पर कई निर्देश जारी करते हुए यह टिप्पणी की और कहा, अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त जीवन का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं तक पहुंच के साथ गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है। बेहतर जीवन के लिए खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराना सभी राज्यों और सरकारों का कर्तव्य है।
कार्यकर्ताओं अंजलि भारद्वाज, हर्ष मंदर और जगदीप छोकर ने उन प्रवासी श्रमिकों के लिए कल्याणकारी उपाय लागू करने का अनुरोध किया था, जिन्हें कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान एक बार फिर देश के विभिन्न हिस्सों में लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंधों के चलते दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
राज्यों को गरीब लोगों को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने के लिए बाध्यकारी करार देते हुए पीठ ने कहा कि इस तरह की सुरक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से संसद ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 को लागू किया था।
पीठ ने अपने फैसले में कहा, राज्य के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के तहत सभी लोगों को शामिल करने के लिए निवासियों की कुल संख्या को फिर से निर्धारित करने के वास्ते केंद्र सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की धारा 9 के तहत कदम उठा सकती है।(भाषा)