शीर्ष न्यायालय ने कहा कि बलात्कार संबंधी कानून में अपवाद अन्य अधिनियमों के सिद्धांतों के प्रति विरोधाभासी है और यह बालिका के, अपने शरीर पर उसके खुद के संपूर्ण अधिकार और स्व निर्णय के अधिकार का उल्लंघन है।
न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने देश में बाल विवाह की परंपराओं पर भी चिंता जताई। पीठ ने कहा कि संसद द्वारा सामाजिक न्याय का कानून जिस भावना से बनाया गया, उसे उसी रूप में लागू नहीं किया गया।
अलग और समवर्ती फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि सभी कानूनों में विवाह की आयु 18 वर्ष है और भारतीय दंड संहिता के तहत बलात्कार संबंधी कानून में दी गई छूट या अपवाद एकपक्षीय, मनमाना है और बालिका के अधिकारों का उल्लंघन करता है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि यह अपवाद संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है।