Ramnavmi festival in Ayodhya: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में दोपहर 12 बजे भगवान श्री रामलला का 'सूर्य तिलक' हुआ। रामनवमी पर अयोध्या में आस्था का जनसैलाब दिखाई दे रहा है। शाम तक भगवान राम की नगरी में 30 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है। इस अवसर सुरक्षा का भी कड़ा इंतजाम किया गया है।
मंदिर के प्रवक्ता प्रकाश गुप्ता ने बताया कि सूर्य तिलक लगभग चार-पांच मिनट के लिए किया गया था जब सूर्य की किरणें सीधे राम लला की मूर्ति के माथे पर केंद्रित थीं। मंदिर प्रशासन ने भीड़भाड़ से बचने के लिए सूर्य तिलक के समय भक्तों को गर्भगृह में प्रवेश करने से रोक दिया।
अयोध्या में 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के बाद नए मंदिर में भगवान राम की मूर्ति की प्रतिष्ठा के बाद यह पहली रामनवमी है।
'सूर्य तिलक परियोजना' के तहत वैज्ञानिकों ने भगवान राम के सूर्याभिषेक को संभव बनाया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी असम में चुनावी रैली में जय श्रीराम के नारे लगाएं। उन्होंने कहा कि 500 वर्षों के इंतजार के बाद भगवान राम अपने भव्य मंदिर में विराजमान हुए हैं।
क्या है सूर्य तिलक परियोजना : वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR)-CBRI रुड़की के वैज्ञानिक डॉ एसके पाणिग्रही के अनुसार, सूर्य तिलक परियोजना के तहत रामनवमी के दिन दोपहर के समय भगवान राम के मस्तक पर सूर्य की रोशनी लाई गई।
इस परियोजना के तहत हर साल चैत्र माह में श्री रामनवमी पर दोपहर 12 बजे से भगवान राम के मस्तक पर सूर्य की रोशनी से तिलक किया जाएगा और हर साल इस दिन आकाश पर सूर्य की स्थिति बदलती है। विस्तृत गणना से पता चलता है कि रामनवमी की तिथि हर 19 साल में दोहराई जाती है।
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)-केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई), रुड़की के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार, नियोजित तिलक का आकार 58 मिमी है। रामलला के मस्तक के केंद्र पर तिलक लगाने की सही अवधि लगभग तीन से साढ़े तीन मिनट है, जिसमें दो मिनट पूर्ण रोशनी होती है।
इस बीच, सूर्य तिलक के लिए ऑप्टो-मैकेनिकल सिस्टम के बारे में बताते हुए, पाणिग्रही ने कहा कि ऑप्टो-मैकेनिकल सिस्टम में चार दर्पण और चार लेंस होते हैं जो झुकाव तंत्र और पाइपिंग सिस्टम के अंदर फिट होते हैं।
उन्होंने कहा कि दर्पण और लेंस के माध्यम से सूर्य की किरणों को गर्भगृह की ओर मोड़ने के लिए झुकाव तंत्र के लिए एपर्चर के साथ पूरा कवर शीर्ष मंजिल पर रखा गया है। अंतिम लेंस और दर्पण सूर्य की किरण को पूर्व की ओर मुख किए हुए श्रीराम के माथे पर केंद्रित करते हैं।
उन्होंने कहा कि कि झुकाव तंत्र का उपयोग प्रत्येक वर्ष श्रीराम नवमी पर सूर्य तिलक बनाने के लिए सूर्य की किरणों को उत्तर दिशा की ओर भेजने के लिए पहले दर्पण के झुकाव को समायोजित करने के लिए किया जाता है।
पाणिग्रही के मुताबिक सभी पाइपिंग और अन्य हिस्से पीतल सामग्री का उपयोग करके निर्मित किए जाते हैं। जिन दर्पणों और लेंसों का उपयोग किया जाता है वे बहुत उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं और लंबे समय तक चलने के लिए टिकाऊ होते हैं।
पाणिग्रही ने कहा कि सूरज की रोशनी के बिखरने से बचने के लिए पाइपों, कोहनियों और बाड़ों की भीतरी सतह पर काले पाउडर का लेप लगाया गया है। इसके अलावा, शीर्ष एपर्चर पर, आईआर (इन्फ्रा रेड) फिल्टर ग्लास का उपयोग सूर्य की गर्मी की लहर को मूर्ति के मस्तक पर पड़ने से रोकने के लिए किया जाता है। (भाषा/वेबदुनिया)