सफल अरस्टेड लैंडिंग के साथ ही यह सफलता प्राप्त करने वाला छठा देश बन गया है। इससे पहले अमेरिका, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और चीन द्वारा निर्मित कुछ विमानों में ही अरेस्टेड लैंडिंग की तकनीक रही है। तेजस की अरेस्टेड लैंडिंग सफल होने के साथ ही विमान को नौसेना में शामिल किए जाने का एक चरण पूरा हो गया है। अब इसकी अगली परीक्षा आईएनएस विक्रमादित्य पर होगी, यहां तेजस को एक बार फिर अरेस्टेड लैंडिंग करके दिखाना होगा।
कैसे होती है अरेस्टेड लैंडिंग : अरेस्टेड लैंडिंग के लिए विमानों के पीछे के हिस्से में स्टील वायर से जोड़कर एक हुक लगाया जाता है। लैंडिंग के दौरान पायलट को यह हुक युद्धपोत या शिप में लगे स्टील के मजबूत केबल्स में फंसाना होता है। जैसे ही प्लेन रफ्तार कम करते हुए डेक पर उतरता है, हुक तारों में पकड़कर उसे थोड़ी दूरी पर रोक लेता है।
क्यों होती है अरेस्टेड लैंडिंग : नौसेना में शामिल होने के लिए विमानों के हल्का होने के साथ ही उसे अरेस्टेड लैंडिंग में भी सक्षम होना चाहिए। युद्धपोत एक निश्चित भार ही उठा सकता है, इसलिए विमानों का हल्का होना जरूरी है। युद्धपोत पर बने रनवे की लंबाई निश्चित होती है। ऐसे में विमानों को लैंडिंग के दौरान रफ्तार कम करते हुए रनवे पर जल्दी रुकना पड़ता है। ऐसे में उसे अरेस्टेड लैंडिंग करना होती है।
विमान को INS विक्रमादित्य के डेक पर पहुंचाने के लिए LCA-N के इंजीनियरों और पायलटों ने इस बाद के लिए आश्वस्त किया कि विमान को 7.5 मीटर प्रति सेकंड (1,500 फुट प्रति मिनट) के 'सिंक रेट' (नीचे आने की गति) से क्षतिग्रस्त हुए बिना पोत पर पहुंचाया जा सकता है।