हालांकि उस पार से आने का सिलसिला जोर भी पकड़ रहा है पर वे भी बरास्ता नेपाल वापस आ रहे हैं जिस कारण सरकार उन्हें पुनर्वास नीति का लाभ देने को राजी नहीं है क्योंकि नेपाल को चिन्हित स्थानों में नहीं रखा गया है। हालांकि इन 5 हजार के लगभग युवकों की वापसी को सुरक्षा एजेंसियां जोखिमभरा बता रही हैं। सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इन हजारों युवाओं की वापसी देश और सेना के लिए खतरा बन सकती है। अधिकतर युवा कश्मीर घाटी, चिनाब घाटी और बॉर्डर पर बसे राजौरी और पुंछ जिले से ताल्लुक रखते हैं। इन युवाओं की घुसपैठ विरोधी नीति के चलते वतन वापसी मुश्किल है।
इन युवाओं को भारत में घुसपैठ कराने के लिए तैयार किया गया था, लेकिन एलओसी पर बाढ़ लगाने और घुसपैठ विरोधी अभियानों के कारण ये सफल नहीं हो सके। कुछ युवा अभी भी आतंकवादी संगठनों के साथ हैं। जम्मू कश्मीर के तीन सौ से लेकर चार सौ युवा पीओके में सैन्य शिविरों में हथियारों की ट्रेनिंग ले रहे हैं। कई युवाओं ने वहां अपने घर परिवार भी बसा लिए हैं। अधिकतर नब्बे के दशक में गए ये युवा वहां हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा, अल-बदर, जैश-ए-मोहम्मद और हरकत-एल-जेहाद जैसे इस्लामिक आतंकवादी संगठनों में सक्रिय हैं। दूसरी ओर यूं तो राज्य की गठबंधन सरकार के नेता आतंकियों के वाया नेपाल कश्मीर में आने पर खुशी प्रकट करते हैं परंतु वापस लौटने वाले आतंकियों को कोई खुशी नहीं है।
उनमें से कई फिलहाल पुलिस स्टेशनों में कैद हैं तो कइयों को परिवारों से अलग रखा जा रहा है। कई अपनी नई जिन्दगी शुरू करना चाहते हैं पर कहीं से कोई मदद नहीं मिल रही है। नतीजा भी सामने है। अधिकारी स्वीकार करते हैं कि लौटने वालों में से कुछेक ने आतंकवाद की राह थाम ली है। दरअसल वर्ष 2010 में राज्य की गठबंधन सरकार ने नई सरेंडर और पुनर्वास नीति जारी की थी। इसे अनुमोदन के लिए केंद्र सरकार के पास भी भिजवाया गया। नई नीति के अनुसार, वाघा बार्डर, चक्कां दा बाग तथा अमन सेतू के रास्ते वापस लौटने वाले आतंकियों का पुनर्वास करते हुए उन्हें एक आम नागरिक की तरह जिन्दगी बसर करने की अनुमति दी जाएगी।
पर केंद्र सरकार ने इस नीति को आधिकारिक तौर पर स्वीकृत करने से इंकार कर दिया। वह अभी भी तत्कालीन पीडीपी सरकार की वर्ष 2004 में घोषित नीति पर ही टिकी हुई है। परिणाम सामने है। पाक कब्जे वाले कश्मीर में रूके हुए करीब 4-5 हजार भ्रमित युवकों अर्थात आतंकियों का भविष्य खतरे में है। उनमें से करीब 1100 के परिवारों ने उन्हें वापस लाने का आवेदन तो किया है पर नीति पर केंद्र व राज्य सरकार के टकराव के बाद वे भी अनिश्चितता के भंवर में हैं।
यही नहीं नेपाल के रास्ते अपने परिवारों के साथ लौटने वाले आतंकियों की दशा को देखकर भी इन 1100 आतंकियों के अभिभावक असमंजस में हैं कि वे अपनों को वापस लौटने के लिए कहें या नहीं। सबसे बड़ी दिक्कत निर्धारित रास्तों से वापसी की है, क्योंकि पाक सेना इन रास्तों से किसी को लौटने नहीं दे रही और नेपाल से चोरी-छुपे आने वालों को पुनर्वास नीति का हकदार ही नहीं माना जा रहा है।